बदलता वक्त
बदलता वक्त
गीता का मन किया की अपने हाथ में लिए हुए पेपरवेट को अपने टीम लीडर रोहन के सर में दे मारे।
अभी कुछ देर पहले ही मीटिंग शुरू हुयी थी और इतने से वक्त में रोहन ने माँ बहन की सारी गालियों का कम से कम दो तीन बार इस्तेमाल कर दिया था।
कुल आठ लोग मीटिंग में थे और उन के बीच वो एक अकेली महिला।
वो सोचने लगी की रोहन और बाकी पुरुष शायद जानबूझकर इतनी अभद्र गालियां देते हैं। उसे नीचे दिखाने के लिए या परेशान करने के लिए। क्या सिर्फ आदतवश गालियां दे देते हैं ? फिर ख्याल आया की क्या उसे भी गालियां देनी शुरू कर देनी चाहिए ? कैसा हो अगर महिलायें मिल कर नई गालियां ईजाद करें। कैसा लगेगा कहना "तेरे बाप की----" या "भाई -------" !
वो आगे कुछ सोचती इससे पहले रोहन का मोबाइल बज उठा। कितनी वाहियात रिंग टोन थी "तू चीज बड़ी ही -----"
फिर रोहन की मिमयाती आवाज कानों में पड़ी।
"जी मैडम। अच्छा मैडम।"
फ़ोन रख कर रोहन ने घोषणा की
"पांच मिनट में जनरल मैनेजर साहिबा आ रही हैं, वो मीटिंग लेंगी। "
अब सब अपनी अपनी फाइलें खंगालने लगे। मैडम जाने किससे क्या पूछ लें।
आते ही मैडम ने सबसे पहले मुस्कुरा कर गीता को देखा-
"अच्छी परफॉरमेंस है तुम्हारी। इतनी ही मेहनत से काम करोगी तो जल्द ही टीम लीडर क्या मैनेजर भी बन जाओगी। "
सुन कर रोहन ही नहीं बाकी सभी का चेहरा भी फक पड़ गया।
अगले आधे घंटे सभी बस मैडम को प्रभावित करने के जतन करते रहे। इस आधे घंटे में किसी के मुंह से एक भी गाली नहीं निकली। बदला माहौल देख अनायास ही गीता की हँसी छूट गयी।
सब आश्चर्य से उसे देखने लगे।
"किस बात पर हँसी आ रही है। हमें भी बताओ तो हम भी हँस लें। " कुछ तल्ख़ स्वर में मैडम ने पूछा।
"मैडम आप के आते ही यहाँ का तो वक्त ही ही बदल गया। पहले तो सब बस सारे वक्त एक दूसरे की माँ बहन का ही जिक्र करते रहे थे। "
गीता का उत्तर सुन अब मैडम घूर कर सभी पुरुषों को देख रही थी जो अब सर झुका कर झेंपे जा रहे थे।
गीता ने मुस्कुरा कर पेपरवेट वापस मेज पर सजा दिया।
अब उसकी कोई जरूरत नहीं थी।
वक्त बदल गया था।