हमसफ़र या दोस्त
हमसफ़र या दोस्त
जया और सुमेश दोनों हाथों में हाथ डालकर पार्क की एक बेंच पर बैठे थे। कुछ सोच रहे थे शायद, दोनों एक दूसरे से कुछ कहना चाहते थे पर कह नहीं पा रहे थे। आज पहली बार नहीं बैठे थे। ये तो पिछले दो सालों से साथ बैठ रहे हैं। रोज नियम से दोनों ही सुबह की सैर के लिए आते हैं। पार्क में तो नहीं पर पार्क के बाहर जो मक्खन ब्रेड वाला है और उसके पास चाय की छोटी सी टपरी, वही दोनों की मुलाकात हुई। मुलाकात क्या दोनों रोज एक दूसरे को देखते। लगभग एक ही समय पर दोनों पार्क में आते। सुमेश पार्क के तीन चक्कर लगाते और इसी बेंच के पास आकर थोड़ी कसरत, योगा जैसा कुछ करते। जया इसी बेंच पर बैठकर सूर्य की नवोदित किरणों का स्वागत करती। उससे पहले जया अपनी मंथर चाल से पार्क का चक्कर लगाती, फूलों से बतियाती, पत्तियों के हालचाल पूछती। वो बॉटनी ( वनस्पति विज्ञान) की टीचर थी ना। क्या पूछ रहे हैं, थी क्यों ? अरे भाई रिटायर हो गई है ना। ओह क्षमा चाहती हूँ। मैंने आपको जया और सुमेश के बारे में तो बताया ही नहीं।जया बॉटनी की शिक्षिका थीं, अब रिटायर हो चुकीं है। पाँच साल पहले उनके पति की मृत्यु के बाद से वह आजकल के सभी वृद्ध लोगों की तरह बच्चें होने के बावजूद भी अकेले ही रहती हैं अपने पति की यादों के साथ। आज के हर दूसरे बुजुर्ग की कहानी। जी हाँ बुजुर्ग आप को कहीं यह तो नहीं लगा कि जया व सुमेश एक किशोर युगल है। खैर सुमेश भी कुछ सालों पहले रिटायर हुए हैं। पत्नी का साथ तो पचास की उम्र में ही छूट गया था, पर जिंदा दिल इंसान है। परिवार के साथ जोश व उमंग से जीते हैं। परिवार में बेटा, बहू, बेटी, जमाई उनके बच्चे सभी बहुत अच्छे हैं i सुमेश जी की एक नियमित दिनचर्या है। घर के छुटपुट काम और दोस्तों के साथ गप्पे। मजे की जिंदगी I
सुमेश तो वर्षों से इस पार्क में आ रहे हैं। पर जया ने अभी दो साल से डॉक्टर के कहने पर आना शुरू किया। अब उन्हें यहाँ पार्क में अच्छा लगता है। दिन के दो-तीन घंटे आराम से कट जाते हैं। नाश्ते चाय का सिरदर्द भी नहीं। मस्त चाय और सफेद मक्खन ब्रेड उन्हें शुरू से ही पसंद है। वैसे तो पार्क में बहुत लोग आते हैं और चाय भी पीते हैं पर पता नहीं कैसे साधारण से औपचारिक अभिवादन के बाद उन दोनों की मित्रता हो गई। अब उन दोनों का थोड़ा ज्यादा समय पार्क में बीतने लगा। पोते पोतियों से बातों की शुरुआत हुई। बातें बच्चों कैरियर से होकर कॉलेज और युवावस्था के दिनों की यादों तक पहुंच गई। अपनी युवावस्था व बचपन को याद करना किसे नहीं अच्छा लगता। अब दोनों बातें करते गप्पे मारते, एक दूसरे की युवावस्था के क्रश के नाम लेकर एक दूसरे को चिढ़ाते। उन्हें देखकर लगता ही नहीं था कि वह दोनों अनजान है, जो सिर्फ दो वर्ष पहले मिले थे। लगता बचपन के दोस्त हैं जो कभी बिछड़ गए थे और फिर मिल गए।
अड़ोस पड़ोस के फ्लैट में कोई भूख और अकेलेपन से मर जाए तो दुनिया वालों को खबर नहीं होती है। पर दो बुड्ढे रोज मिल रहे हैं। खुश हो रहे हैं। तो लोगों की नजरों को अखरने लगा। लोगों को अखरा तो बातें भी बनी ,बातें उड़ी तो उनके परिवार वालों तक भी पहुँची। किसी शुभचिंतक (जो आपका शुभ होता देखकर चिंतित हो जाए) ने शायद जया जी के बच्चों को फोन भी कर दिया। पर बच्चे नए जमाने के थे। बातों पर प्रतिक्रिया करने की जगह उस पर विचार करना शुरू किया। इस बार छुट्टियों पर जब जया के बच्चे आए तो जया और सुमेश को बिना बताए सुमेश जी के बच्चों से भी मिले और निर्णय लिया कि अगर यह दोनों एक दूसरे के साथ खुश होते हैं तो चलो इनकी शादी करवा देते हैं। सुमेश के परिवार वाले तो खुशी-खुशी मान गए I क्योंकि उनके पापा ने उनके लिए अपनी जिंदगी लगा दी थी। आज उन्हें लगा यह पापा के लिए कुछ करने का अच्छा अवसर है। जया के बच्चे भी खुश थे माँ अकेली रहती है उसको परिवार मिल जाएगा। एक शाम बिना बताए जया व सुमेश दोनों परिवार के बच्चों ने घर में एक पारिवारिक सरप्राइस दावत रखी। वहाँ दावत में दोनों का हाथ एक दूसरे के हाथ में देते हुए बोले, "हमें बहुत खुशी होगी कि अगर आप दोनों शादी कर लो। आप दोनों के जीवन का अधूरापन खत्म हो जाएगा और आपको साथी मिल जाएगा"। पशोपेश में पड़ी जया जी सोच रही थी कि शायद यह सुमेश की इच्छा है। और सुमेश सोच रहे थे कि यह शायद जया की इच्छा है। दोनों उस समय तो कुछ नहीं बोले। चुपचाप कुछ सोचते हुए बच्चों के साथ दावत खाते रहे I पर दूसरे दिन सुबह जब दोनों मिले तो दोनों ही एक अजीब सी दुविधा में थे कि कहीं मन की बात कहनें से दूसरे की भावनाएँ आहत ना हो जाए।
इसीलिए दोनों बेंच पर एक दूसरे का हाथ पकड़ कर बैठे थे। आखिरकार जया ने कहा, "बच्चों के इस सरप्राइज के बारे में आपको पहले से पता था"? सुमेश चौकते हुए बोले, "नहीं बिल्कुल नहीं और तुम्हें"? जया ने भी ना में सिर हिलाया। फिर दोनों ही एक दूसरे से एक साथ बोले, "मतलब यह शादी करने की इच्छा तुम्हारी नहीं है" और दोनों ही एक साथ बोले "नहीं बिल्कुल नहीं"। दोनों ही एक दूसरे को देख कर मुस्कुराए और राहत की साँस ली। फिर सुमेश बोले तुम बहुत अच्छी हो पर मैं तुम में अपने बचपन का दोस्त देखता हूँ। सुमुखी (उनकी पत्नी) की यादों से मैं आज भी बेवफाई ना कर पाऊँगा। पत्नी का दर्जा तो मैं कभी किसी को अब ना दे पाऊँगा।जया ने भी उनके हाथों को पकड़ते हुए बोला, "शायद हमारी भावनाएँ एक है इसीलिए हम अच्छे दोस्त हैं। मैं भी अपने पति से बेवफाई ना कर पाऊँगी। मुझे साथी की जरूरत है पति की नहीं। पति के रूप में तो उनकी यादें ही काफी है।
दोनों ने एक दूसरे के हाथों को पकड़ लिया, एक नए जोश के साथ। साथ निभाने के लिए पति पत्नी होना जरूरी तो नहीं। दोस्त बनकर भी जिंदगी का सफर पूरा किया जा सकता है। वे दोनों जा रहे थे अपने बच्चों को समझाने एक नई बात। शादी ही सब कुछ नहीं होती। दोस्ती के बंधन में भी उम्र का सफर यूँ ही कट जाएगा।
