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Bharat Bhushan Pathak

Drama

4.1  

Bharat Bhushan Pathak

Drama

नन्हीं कलि

नन्हीं कलि

5 mins
336


"नन्हीं कली " एक ऐसी कहानी है जिसमें आप पुरुष प्रधान समाज से मुखातिब होंगे ।एक ऐसा समाज जिसमें सम्भवत: नारी का कोई अस्तित्व ही नहीं दिखता।

कहीं दूर बसा एक गाँव गंगाधारा ।जहाँ रहता था रामनरेश का परिवार सारा।रामनरेश के परिवार में उसकी पत्नी सौम्या ,उसकी माँ और केवल वह ही था।रामनरेश की अभी हाल ही में शादी हुई थी।आज सभी लोग अस्पताल आए हुए हैं,सम्भवत: रामनरेश की पत्नी सौम्या का प्रसवकाल निकट है।अस्पताल में रामनरेश परेशान होकर चक्कर लगा रहा है और उसकी बूढ़ी माँ बेन्च पर बैठी हुई है।रामनरेश को समझाने के उद्देश्य से उसकी बूढ़ी माँ उससे कह रही है-"अरे तू परेशान क्यों हो रहा है ?देखना बहू को बेटा ही होगा।

रामनरेश की माँ जो खूद भी एक महिला है उसके ये शब्द सोचने को बरबस ही मजबूर कर जाते हैं ........कि........क्या बेटियों का कोई महत्व नहीं ?रामनरेश परेशान होकर चक्कर लगाया जा रहा है कि तभी वहाँ पर नर्स आकर कहती है-बधाई हो !आप पिता बन गए हैं।आपकी पत्नी ने एक फूल सी बच्ची को जन्म दिया है।यह सुनकर रामनरेश और उसकी बूढ़ी माँ उदास हो जाती है और नर्स से ये कहते हैं कि :-हे भगवान ! ये तुमने क्या सुना दिया नर्स जाओ उसे कहीं फेंक आओ।नर्स यह सुनकर वहाँ से चली जाती है।

खैर जैसे-तैसे ही सही रामनरेश भारी मन से ही उस बच्ची को लेकर घर आता है।आज दीपावली है ,लोग इस त्योहार को बड़े आनन्द के साथ मना रहे हैं,परन्तु रामनरेश के घर पर तो आज श्मशान की सी शान्ति दिख रही है।कहीं भी एक मोमबत्ती तक न जलाई गयी है।रामनरेश और उसकी बूढ़ी माँ एक कोने में माथा पकड़ कर बैठे हैं और अन्दर के कमरे में वह "नन्हीं कली " अपनी माँ की गोद में लेटी हुई चारों और एकटक देखे जा रही है,मानो वह कहना चाह रही हो कि मेरे पिताजी मुझसे नाराज क्यों हैं।आखिर मेरा गुनाह क्या है ? यह कि मैं एक लड़की हूँ...

समय ने फिर से कुछ सालों बाद करवट बदली।इस समय तक वह बच्ची थोड़ी बड़ी हो गयी है। माँ ने लाड़ प्यार से उसका नाम लक्ष्मी रख दिया है।आज रामनरेश फिर से अस्पताल में है और साथ में है उसकी बूढ़ी माँ। लक्ष्मी बेचारी घर पर ही रह गयी है।

आज फिर से उसकी पत्नी सौम्या माँ जो बनने वाली है।वह परेशान होकर चक्कर लगा ही रहा था कि इतने में ही नर्स आकर उसे फिर बतलाती है कि बधाई हो ! आपको बेटा हुआ है।इस बार दोनों फूले नहीं समा रहे ।रामनरेश अपने बेटे को देखकर अति प्रसन्न हो जाता है और वे लोग अपने घर आ जाते हैं।मासूम लक्ष्मी अपने छोटे भईया को देखकर उसे छूने के लिए दौड़ती है कि तभी उसके दादी के ये स्वर :-दूर रह मनहूस ! अपनी काली छाया मेरे लाल पर डालेगी क्या ? दूर हट यहाँ से।उसके ये स्वर लक्ष्मी के बढ़ते कदमों को पीछे कर जाते हैं और वो बाहर जाकर रोने लगती है।आज रामनरेश के घर में दीपावली मनाई जा रही है।लोग आ रहे हैं ।छप्पन प्रकार के भोग खा रहे हैं पर किसी ने मासूम लक्ष्मी के बारे में नहीं पूछा।

समय का पहिया अपने द्रुत गति से चलता है अब लक्ष्मी बड़ी हो गयी है।उसकी दादी का अब देहान्त हो चुका है ।रामनरेश ने लक्ष्मी की शादी एक मामूली लड़के से कर दी है।अब वह लड़का रामदीन भी बड़ा हो गया है।रामनरेश उसका भी शादी एक धनाढ्य परिवार में कर देता है।यह सोचकर कि बहू और बेटा दोनों खूब सेवा करेंगे ।परन्तु यह क्या आते ही दूसरे ही दिन बहुरानी ने अपना अद्भुत रूप प्रकट कर दिया और अनोखे अन्दाज में रामनरेश के पास चाय ले जाकर देते हुए दोनों से अपितु चाय पास के टेबुल पर पटकते हुए कहती है कि डाॅन्ट माईन्ड पापाजी अब आपलोग यहाँ नहीं रह सकते।कहीं और चले जाइए।

रामनरेश थोड़ी देर बाद बेटे को बुलाकर कहता है कि बेटे बहू ये क्या कह रही थी हमें यहाँ से जाने को कह रही है।परन्तु रामदीन झल्ललाते हुए अपनी पत्नी का पक्ष रखते हुए कहता है ओहो पिताजी ! आकृति ठीक ही तो कह रही है,अब आपलोग यहाँ नहीं रह सकते बस।मैं कल ही सुबह आपलोगों को आपके नये घर में छोड़ के आ जाऊँगा ।दूसरे ही दिन वे दोनों वृद्धधाश्रम में थे।

उधर अब बेचारी लक्ष्मी राजलक्ष्मी बन गयी है क्योंकि अब उसका मामूली कर्मचारी पति उसी कम्पनी का मालिक बन गया ह और वह अब मजे में है।

एक दिन लक्ष्मी को कहीं से पता चलता है कि उसके माता-पिता कहीं चले गए हैं ।वो और उसका पति अनिरुद्ध उनके बारे में पता लगाने के लिए रामदीन के पास जाते हैं।वहाँ से उन्हें सारी बातों की जानकारी होती है और वो उन दोनों से मिलने चले जाते हैं।

माँ को देखते ही वह भागकर उनके गले लग जाती है।अपने पिता से उसकी बात करने की हिम्मत न होती है।

उधर रामनरेश भी सोच रहा है कि वह अपनी उस बेटी से कैसे आँखें मिला पाए,जिसे उसने कभी अपनी सन्तान न समझा।अन्त में वह चुप्पी तोड़ते हुए लक्ष्मी के पैरों की तरफ गिरते हुए कहता है कि... बेटी मुझे माफ कर दे ! मैं तेरा गुनाहगार हूँ।

लक्ष्मी अब हिम्मत करके अपने पिता से कहती है ....पिताजी ये आप क्या कह रहे हैं।आप बड़े हैं।आप मुझसे क्षमा न माँगें ।मैं आपसे क्षमा माँगती हूँ कि....

***ईश्वर ने मुझे आपकी बेटी बनाकर भेज दिया।मैं आपका बेटा जो न बन पाई**।

लक्ष्मी के ये शब्द ही इस पुरुष प्रधान समाज को उसका एक करारा जवाब था।




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