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Aprajita 'Ajitesh' Jaggi

Inspirational

4.6  

Aprajita 'Ajitesh' Jaggi

Inspirational

समझदारी

समझदारी

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आज उनकी शादी की तीसरी सालगिरह है। अभी अभी मेहमान घर वापस गए हैं। पति के दिए नए कंगनों पर हाथ फिराते -फिराते कब वो बीते समय में पहुँची उसे पता ही नहीं चला। पुरानी बातें याद आ गयीं।

"तू कैसी बातें कर रही है। तलाक दे देगी विक्रम को ? अरे कैसी औरत है तू। उसे मनमर्जी करने के लिए आजाद छोड़ देगी। तुझे तो डटे रहना चाहिए अपने हक़ के लिए। तू नहीं मानेगी तो देखना कभी न कभी वो खुद ही उस सलोनी से पीछा छुड़ाएगा ही छुड़ाएगा। सुधर जाएगा। थोड़ा धीरज तो रख। "

विक्रम की माँ अमृता को समझदारी सिखा रही थी। काश वो खुद समझदार रही होतीं, विक्रम अपने साथ काम करने वाली सलोनी से शादी करना चाहता था लेकिन माता पिता के दबाव में मजबूर हो अमृता से कर लिया। तीन जिंदगियां अब बर्बादी के कगार पर थीं।

न विक्रम सलोनी को छोड़ना चाहता था और न सलोनी विक्रम को। अमृता को समझ नहीं आ रहा था विक्रम और उस के माता पिता की गलती की सजा को आखिर क्यों अब उसे, विक्रम को और सलोनी को हमेशा झेलते रहना होगा। एक दूसरे से जलते, चिढ़ते और कुढ़ते हुए अपनी जिंदगी गुजारने में कैसी समझदारी ?

सच है कि अमृता के साथ बहुत बड़ा धोखा किया गया था। विक्रम को माता -पिता के आगे न झुक सलोनी से ही शादी करनी चाहिए थी। या फिर अगर अमृता से शादी कर ही ली थी तो सलोनी को भूल अमृता को ही पत्नी का हक़ देना चाहिए थे। पर उस एक धोखे की सजा विक्रम को देने के लिए अपनी जिंदगी नर्क बना देने में क्या समझदारी थी ?

उस वक्त, उसे शादी बनाये रखने और विक्रम को किसी कीमत पर तलाक न देने की सलाह देने वालों की कोई कमी नहीं थी पर उसने अपनी समझ पर ही अमल किया। शादी के तीन माह के बाद ही अमृता ने विक्रम से तलाक लेने का निर्णय ले लिया। ये तीन माह ये समझने के लिए काफी थे की उनका रिश्ता कभी भी पति-पत्नी के प्यार और विश्वास की पवित्र डोर से नहीं बंध पायेगा।

उस समय वो कितने असमंजस में थी, पर आज वो जान चुकी थी की तलाक लेने और फिर से शादी कर जीवन को नए सिरे से सजाने -सँवारने का उसका निर्णय ही सही था।

"अरे भई, हमें भी बता दो की कौन सी सोच में डूब गयी हो। देखो मुन्ना भी तुम्हें टुकुर टुकुर निहार रहा है।"

पति विवेक की बात सुन अमृता वापस वर्तमान में आ गयी। मुन्ने को उठा गोद में लिया और विवेक के पास आ बैठ मुस्कुराने लगी।

"बस सोच रही थी कि आप से शादी कर कितना समझदारी का काम किया मैंने।"

इतना कह कर, अमृता ने विवेक के कंधे पर अधिकार से अपना सर टिका लिया। चैन, सुकून और खुशी, इन सब से उसका चेहरा दमकने लगा।



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