उसकी कमी
उसकी कमी
रात बहुत लंबी लगने लगी थी। और दिन की उदासी आसमान में छाई रहती थी। आज भी वही शाम थी जब मैं उस बगीचे में बैठा हुआ था। आज भी छोटे बच्चे फुटबॉल खेल रहे थे और आज भी सूरज बिस्तर बांधे जाने की तैयारी में था। अगर कुछ कमी थी तो वह मेरे साथी कि, मेरी गरिमा की।
आज से 3 दिन पहले देहरादून में एक बुक रीडिंग थी, उस दुख की रीडिंग जो गरिमा ने लिखा था। उस किताब में उसने अपनेी मोहब्बत की जिंदगी उतार दी थी- जो उसने मेरे साथ गुजारे थी। उस कहानी की शुरुआत हमारे कॉलेज की जिंदगी से थी, कि किस तरह से हम दो विपरीत सोच वालों की दोस्ती हुई और कैसे वह दोस्ती इश्क में तब्दील हो गई। बहुत ही कम समय में मुझे उससे बेहद लगाव हो गया था। उसने मेरा दिल चुरा लिया था और मैंने उसका। उससे मैं दूर नहीं जा पाता था, ना जाने कितनी बार मैंने कोशिश भी की थी लेकिन क्या करूं? इंसान अपने दिल के बिना नहीं रह सकता, तो मैं कैसे जीता? मेरा तो दिल गरिमा के पास था। जरा सा भी दूरी बनाता था तो मेरे सीने में मौजूद उसका दिल मुझसे बगावत करता था - कि ये तुम उसे तकलीफ देकर अपने ही दिल को क्यों तड़पा रहे हो? उसको पता था कि हम दोनों बिना एक-दूसरे के नहीं जी सकते है, तो फिर क्यों मुझे आज इस तरह अकेला कर गई है? क्या दोबारा लौटेगी वह मेरी जिंदगी में?
उस दिन वो मना कर रही थी बुक रीडिंग में जाने से। उसका मन नहीं था देहरादून जाने का, लेकिन ऑर्गेनाइजर के रिक्वेस्ट करने के कारण मैंने उसे कहा था कि चली जाओ। बड़ी मुश्किल से मनाया था मैंने उसे। मुझे क्या पता था कि वह फिर कभी लौटेगी ही नहीं। उसका ट्रेन एक्सीडेंट हो चुका था।
उस दिन की पिछली रात को मुझे वह किताब सुना रही थी। वह अध्याय जिसमें उसने हमारे कोहैबिटेशन यानी लिव इन रिलेशन के बारे में लिखा था। हां, हर सुबह मुझे अलार्म से ज्यादा उसकी आवाज से जागना पसंद था। उसको मेरे साथ कंबल में छुप कर पढ़ना और मुझे तंग करना बेहद पसंद था। मैं पढ़ता रहता था और वह मेरे बालों से खेलती थी। मैं तंग आ जाता था तो वह मेरे नाक दबा देती थी। यह भी उसकी पागलपन्ती ही थी। ना जाने कितनी दफा मेरे पैरों पर बैठकर उसने कितनी कहानियां लिखी है। यहां तक कि उसने यह भी लिखा है कि पार्क में हम साथ जाते थे और वह बैठकर कहानियां मुझे सुनाती थी और मैं उसे निहारता था। सच कहूं तो शायद मुझसे ज्यादा उसने मुझसे प्यार किया है।
उसने यह भी लिखा है कि एक बार हम कैफ़े में गए थे। जहां हम दोनों ने एक-दूसरे की कॉफी को बार बार जूठा किया था। मैं एक घूंट अपनी कप से लेता और दूसरा घूंट उसके कप से। और वह भी यही करती थी।
बहुत ही बेहतरीन ढंग से उसने मेरे प्यार को सफेद पन्नों पर नीली स्याही से उतारा है। और ना जाने कितनी बार अपनी पीली ड्रेस पर लीखे मेरे नाम का जिक्र भी किया है। उसको पसंद था पीले वस्त्र पहनना क्योंकि पीले वस्त्रों में मैं उसकी तारीफ किया करता था। और उसको पसंद था मेरा उससे प्यार करना।
उस दिन भी वह मेरी पसंदीदा पीली ड्रेस पहनकर गई थी। तो क्यों उस पर लाल रंगो ने अपनी दस्तक दे दी। एक्सीडेंट के बारे में सुनने के बाद मैं भी गया था उसे ढूंढने। लेकिन वह मुझे नहीं मिली। मेरे हाथों की लकीर धुंधली हो गई थी। उस एक्सीडेंट में कुछ ऐसे भी लोग थे जिनके बारे में कुछ पता ना चला है। मुझे उम्मीद है कि मेरी गरिमा मुझे वापस मिलेगी। हो जाएगी गरिमा जोशी मेरे नाम। मैं नहीं चाहता खोना अपने प्यार को। मैं नहीं चाहता खोना अपनी जिंदगी को। मुझे उन पलों से बिल्कुल नफरत है जिन्हें मैं उसके बिना गुजारता हूं। दूर दूर तक सपनों से मुंह मोड़ता हूं जिनमें उसकी मौजूदगी नहीं होती है।
उसको खोने का डर मेरी रूह को सताता है,
उसको पाने की खुशी मेरी आत्मा को लुभाता है,
उसको मैं खुदा के दरवाजे से भी ला लूंगा,
क्योंकि उसके बिना जिंदगी जंगल सी नजर आती है!