व्हाट्सएप
व्हाट्सएप
पहली बार मेरी बात गरिमा से व्हाट्सएप पर हुई थी। मैं खुद को बहुत खुशनसीब मानता हूं जो मैं इस मॉडर्न जमाने का हिस्सा हूं। अब तो मेरा हाल हो गया है कि बिना उससे बात किए, मैं लम्हे गुजार ना सकूं। मैं उससे कॉल पर बात नहीं करता, मैं उससे सिर्फ चैटिंग नहीं करता हूं।
आज से 7 महीने पहले हमारी मुलाकात व्हाट्सएप पर हुई थी। मैं बहुत सहमा सा था जब पहली बार मैंने उसको मैसेज किया था। मुझे डर लग रहा था कि वह क्या बोलेगी? क्या मुझे एक्सेप्ट करेगी या फिर मुझे ब्लॉक करेगी? लेकिन उसने मुझे ब्लॉक नहीं किया। मेरी गिनती मेरे वर्ग में होनहार बच्चों में होती थी। हां उस वक्त मैं स्कूल जाने वाला एक विद्यार्थी था और शायद होनहार होने के कारण ही उसने मुझे ब्लॉक नहीं किया था। धीरे-धीरे हमारे बीच बातों का सिलसिला बढ़ता चला गया। मुझे पता ही नहीं चला कि कब उसने मुझ से हाथ मिला कर दोस्ती की और कब अपनी दस्तक मेरी दिलों और दिमाग में दे दी।
बचपन से ही मेरे पास वो सारी सुविधाएं थी जो एक विद्यार्थी के पास होनी चाहिए। टेक्नोलॉजी को लेकर मेरे पेरेंट्स मुझे कभी कोई कमी नहीं होने दिए। और यही टेक्नोलॉजी आज मुझे एक अजनबी सी दिशा में ले जा रही है। मुझे पता है मैं उलझता चला जा रहा हूं। व्हाट्सएप पर मैं घंटों बात करते रह जाता हूं उससे। मुझे खुद को संभालना चाहिए।ऐसा नहीं है की टेक्नोलॉजी हमेशा सही ही हो। हम टेक्नोलॉजी का जिस तरह से उपयोग करते हैं उसी तरह से हमारी जिंदगी पर उसका प्रभाव होता है।