वो गली

वो गली

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आज भी जब जाता हूं शहर में, तो उस गली से जरूर गुजरता हूं। जिस गली में मैंने अपना खुद का चांद बसाया था। मैंने उस गली को अपना दोस्त बनाया था। हां गली- मोहल्ला तो उस तरह का नहीं रहा जो आज से दस साल पहले रहा करता था, लेकिन फिर भी उस जगह की खुशबू और उसके रंग आज भी मुझे अपनी ओर खींच लेते हैं। मैं आज भी चाहता हूं कि वो दिन लौट आए, जब इन्हीं गलियों में गरिमा जोशी होती थी। कितने अच्छे दिन होते थे वो । स्कूल के बाद मैं उसी गली से जाता था। मुझे पता था कि उस गली से होकर जाऊं तो मेरा घर बहुत दूर पड़ेगा, लेकिन फिर भी उस रास्ते से जाता था। क्योंकि आधे रास्ते ही सही मैं गरिमा के साथ सफर करना चाहता था। उन चंद पलों में मैं सारी जमाने की खुशी जी लेना चाहता था। आज जब जाता हूं गलियों में तो एक पल ठहर कर देखता हूं गलियों को , देखता हूं उन सड़कों को, उन बिजली के खंभे को और सोचता हूं किस तरह स्कूल से आते वक्त कभी गलती से मेरे हाथ उसके हाथ में रगड़ खा जाते थे तो कुछ अजीब सा होता था हमारे दिल में। सारी रात हम उनको याद करते रह जाते थे। कितने सारे वादे किए थे कि हमेशा साथ रहेंगे। लेकिन आज वो कहां है? ना मेरी उसे खबर है ना उसको मेरी पता। सिर्फ मुझे इतना पता है कि वह मुझसे कभी मिलने नहीं आएगी । मैं आज भी इंतजार करता हूं उसका। शायद उस गली में वह मुझे दिखा जाए लेकिन मुझे पता है कि वह अब कभी नहीं आने वाली। उसने खुद का घर खुदा के पास बना लिया है। जहां से मैं उसे अपनी दुनिया में ला ही नहीं सकता। पूरे साल में एक बार या दो बार मैं अपने शहर आता हूं। और जब भी आता हूं मैं उस गली में जरूर जाता हूं। मुझे बहुत दुख होता है उस गली में जाने के बाद लेकिन फिर भी यह दिल नहीं मानता है। बेवजह मैं वहां पहुंच जाता हूं, बेवजह जीने की वजह ढूंढता हूं। लेकिन दिल मानने को तैयार ही नहीं होता कि वह वजह कब कि मेरी सजा बन चुकी है । इसी सड़क पर जो आज शायद दस साल पहले एक सिर्फ गली थी वहां हम लोग टिप्पी खेला करते थे। मुझे याद है मेरा निशाना कभी नहीं लगता था लेकिन फिर भी मैं उस गली में खेलने जाता था सिर्फ गरिमा के कारण। आज उस जगह पर बहुत बदलाव आ चुका है। वह हमारी मिट्टी की गली एक सड़क बन चुकी है। बिजली के खंभे अब एक पौल में बदल चुके हैं। और बगल में छोटी-छोटी मकान ,बहुत बड़ी बड़ी बिल्डिंग बन चुकी हैं। काश मेरा दर्द भी बदल जाता। क्यों मेरा दर्द वही का वही रह गया। क्यों मै उसे नहीं भूल गया? क्यों आज भी वह मेरे जहन में इस कदर रहती है जैसे मुझे लगता है कि आज भी जाओ उस गली में तो मैं उसे उसी तरह पाऊंगा जैसे उस वक्त पाया करता था।


 कभी-कभी स्कूल से आते वक्त जब रास्ते में आइसक्रीम का ठेला मिल जाता था तो मैं बहुत खुश होता था। लेकिन वही ठेला उसके घर के बाद मिलता था तो मुझे बहुत गुस्सा आता था। मैं मन ही मन उसे कहता था कि मिलना ही था मुझे तो उसके घर के रास्ते से पहले मिलता। कम से कम आइसक्रीम खाते खाते उसके साथ सफर तो करता। बहुत बचपने के दिन थे वो, सच कहूं तू पागल हुआ पड़ा था मैं उस पर।

 ठंडी के दिनों में हम उस गली से गुजरते वक्त अक्सर सुरज की बात किया करते थे। क्योंकि ठंडी में तो सूरज आता ही नहीं । बहुत कम ही देखने को मिलता है। मुझे याद है एक बार उसने कहा था कि अगर मिल गया ना सूरज तो उसे वह दो तमाचा लगाएगी। सिर्फ इसलिए कि गर्मी के दिनों में बहुत ज्यादा गर्मी कर देता है और ठंडी के दिनों में आता ही नहीं। तो इसका जवाब मैंने दिया था अगर मुझे मिला तो मैं उसे टॉफी दूंगा। वह इसलिए क्योंकि वो ठंडी के दिनों में नहीं आता है जिसके कारण ठंडी में छुट्टी हो जाती है। और गर्मी के दिनों में बेशर्म की तरह मुंह उठाकर चला आता है और बहुत गर्मी करता है, तो भी गर्मी की छुट्टी होती है ।

इसी तरह हम हजारों पागलों की बातें किए जाते थे। आज उस गली में मेरा कोई नहीं है। सिर्फ और सिर्फ वहां की मिट्टी और वहां के दर्द मेरे नाम के हैं।


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