छप्पन कली का लहंगा
छप्पन कली का लहंगा
हल्की शरद ऋतु का आगमन त्योहारों का मौसम.. हर्षोल्लास का संचार ..।
कुदरत भी अपने वस्त्र बदल रही थी, हृदय में नवीन ऊर्जा का संचार हो रहा था, ग्रीष्म की निष्ठुरता धीरे- धीरे ठंडी बयार से अंतिम विदाई ले रही थी ..।
मोहिना..
एक मध्यम वर्गीय परिवार की एक लड़की..बात पुरानी उन दिनों नवरात्रि की थी ,जब उसकी मां उसे जन्म देते ही चल बसी ..। दादी के गोद में पली मोहिना ने दादी को ही मां समझा ..जब से उसने होश सम्हाला तब से उसने दादी के दुलार को पाया..।
उस दिन :
दादी की आंखों में आँसू भर आए जब उन्हें उसके जन्म की बात याद आई ,जब उन्होंने नन्ही मोहिना को पहली बार गोद में लिया था ,जब उस दिन हास्पिटल की आया उनके पास आई और बोली ,"--मुबारक हो ..! आपके घर देवी मां साक्षात आईं हैं ..!"
पूरे पन्द्रह साल बाद बहू की सूनी गोद में देवी मां का आशीर्वाद समझा ..। दादी ने नर्स को अपने हाथों में पहने हुए स्वर्ण के कंगन का जोड़ा उतार खुशी- खुशी उसे दे दीं..।
लेकिन, वह खुशी थोड़ी देर भी ना टिक पाई जब पता चला कि, बहू को काल ने अपना ग्रास बना लिया है ..।
किसी ने 'अपशकुनी कहा तो किसी ने कलंकनी ' लेकिन दादी मां ने उस अबोध लाड़ली को अपने सीने से लगा लिया ।
उधर बेटे के जीवन की बहार तो जैसे पतझड़ बन गई ..। अच्छी पदवी पर सरकारी मुलाजिम के लिए कई रिश्ते आने लगे किन्तु, उन्होंने सभी को ठुकरा दिया ।
वक्त की तहों में गुजरते जिंदगी के पल पंछियों की तरह उड़ रहे थे , मोहिना आकर्षक युवती बन गई ..।
कुछ दिन बाद :
नवरात्रि के स्वागत की तैयारियां जोरों पर थीं ..उमंग से भरा प्रकृति का निखार उभर रहा था ।
उस दिन :
जन्मदिवस पर मोहिना को इक्कीस वर्ष पूरे हो रहे थे ..।
दादी ने उसे अपने पास बुलाया और कहा ,"---आज तुम इक्कीस वर्ष की होने जा रही हो , जीवन के सच को पहचानती हुई एक सुंदर युवती ,तुम्हें आज एक कहानी सुना रही हूं ..।
"सुनो ..! एक समय की बात है :
एक बार एक गुजराती स्त्री थीं , वह सामाजिक कार्यों में काफी दिलचस्पी लेतीं, वे कहीं भी जातीं यही कहती ," नई पीढ़ी को कुछ ना कुछ अनोखी कला सीखनी चाहिए ताकि, वे धरोहर को आने वाली पीढ़ियों को कुछ दे सके ..।" खुद भी उनका सधा हाथ कारीगरी में दक्ष था, उनका हुनर बोलता था ..।
एक बार अपने पुत्र के लिए बहू ढूंढने वह गुजराती स्त्री कच्छ जिले में पहुंची , उन्होंने वहां कई लड़कियां देखीं, सभी एक से बढ़कर एक सुंदर , किंतु, गुणी कौन हों इसकी परख उनके लिए आवश्यक हो गई ..? उन्होंने एक अनोखी शर्त रखी जो इस नवरात्रि में दस दिनों में नवरात्रि वाली डांडिया- गरबा नृत्य में लहंगे को अपने हाथों से तैयार करेगा, उसे मैं अपनी पुत्रवधू सहर्ष स्वीकार करुंगी ...। और हां ..! लहंगा छप्पन कली का होना जरूरी है ..।"
अनोखी शर्त वो भी दस दिनों में उद्देश्य असम्भव ..।
उनमें से कुछ युवतियां हाथों की कारीगरी में निपट अनपढ़ ,कुछ आलस्य में लिप्त तो कुछ समय का हवाला देकर, अपने को प्रतियोगिता से अलग कर लिया था ..।
समय बीत रहा था और शर्त की अवधि भी समाप्त होने की कगार पर थी । नौवां दिन की रात्रि को, वह मायूस हो रही थी, वो सोच रही थीं कि कोई होगी कि नहीं या उसे खाली हाथ जाना पड़ेगा..। प्रश्नों के ढेर व चिंता सो अलग ..।
शर्त का अंतिम दिन :
दो लड़कियां उनके पास आईं उन दोनों के लहंगे बहुत ही खूबसूरत लग रहे थे ..। उनमें से दोनों को तो हां नहीं कह सकती थीं । उन्होंने फिर एक परीक्षा लेने की सोची ।
उन्होंने कहा ,"----मैं क्या जानूं तुममें किसने यह तैयार किया है कि, नहीं ..? ये भी हो सकता है कि, आपने बाजार से खरीदा हुआ हो यदि , दोनों में से लहंगे जिसने लहंगे की विशेषता बता दी ,वहीं मेरी बहू बनेगी । "
उनमें से एक समझदार युवती ने लंहगे पर लिखी अपनी कारीगरी की विशेषता बताई ..." आदरणीया मेरे लंहगे में मैंने कढ़ाई करते हुए कुछ लिखा है यदि आप भी उसे पढ़ लें तो मैं धन्य हो जाऊंगी ..!"
यह सुनकर स्त्री ने गौर से उसके खूबसूरत कढ़े लहंगे को देखा उन रेशमी धागों की कढ़ाई में लिखा देखा .." मैं गुर्जरत्रा कच्छ की रानी , जहां लिखा दाना पानी ,मेरे लहंगे की धागों की कहानी, बनेगी मेरे सौभाग्य की निशानी "।
जैसे ही स्त्री ने उस पंक्ति को पढ़ा गुणी बहू उसे मिल गई ,चट से विवाह रचा डाला ..।
मोहिना दादी से कहानी सुन उस स्त्री से बहुत ही प्रभावित हुई ..।
तभी दादी :
उसे एक कमरे में ले गई जहां अक्सर बाहर से ताला जड़ा रहता, वह कमरा कभी -कभार सफाई के लिए खोला जाता ..।
उधर उस तरफ एक कोने में नक्काशी किया हुआ लकड़ी का बक्सा रखा था, दादी ने उसे इशारे से अपने पास बुलाया और कहा ,"--आज तुम्हारा जन्मदिन, प्यारी चुन्नी
( घर में दादी उसे इसी नाम से पुकारती ) । बिटिया ..! मैं तुम्हें कुछ देना चाहती हूं ..।" कहते हुए बक्सा खोलकर ,एक सुंदर थैला निकाला और उसकी ओर बढ़ा दिया ।
मोहिना ने अचंभित होकर दादी की ओर देखा और पूछा ,"--दादी यह क्या है ..?"
दादी इतना ही कह पाई थीं कि आंखों से आंसू गिर पड़े ।
"दादी आप रो रहीं हैं क्यों..?"मोहिना ने पूछा..।
"रो नहीं रहीं हूं तुम्हारी मां को याद कर रही हूं .. जानती हो वह लड़की कोई नहीं तुम्हारी मां रघुवंशी थी और यह उसी का लहंगा है, उसकी धरोहर मैंने कब से सम्भाल कर तुम्हारे लिए रखी थी, आज इस नवरात्रि में खास मौके पर इसे देने का सही वक्त आ गया है ..। जन्मदिन मुबारक हो..!"
सचमुच मां की कारिगरी की बेमिसाल निशानी थी । जिसे उसने अपने गले से लगा लिया ..। उसका एक आसूं लुढ़का और लहंगे के एक सितारे में जा अटक गया । उसमें नवरात्रि के कई रंग नजर आ रहे थे ।
उस छप्पन कली के घेरदार लहंगे में कितने ही रंगीन फूल झिलमिल कर रहे थे ..। जिन्हें आज जन्मदिन में खिलने का मौका मिल गया था ..।