पुर्नावृत्ती
पुर्नावृत्ती
कल्याणी अपने परिवार मे भाई बहनों में मंझली थी। गांव में प्राथमिक तक ही स्कूल था, इसलिए कल्याणी कुछ कक्षा ही पढ़ पायी थी। आगे की कक्षा में पढ़ने के लिए शहर जाना होता था, अतः वह आगे नहीं पढ़ पायी थी। पढ़ने में रूचि होने के बाद भी मन मारना पड़ा। धीरे-धीरे समय के साथ वह ढल गयी। लेकिन बाद में बहनों को अवसर मिला तो कुछ और कक्षायें पढ़ सकी। कहते है कि गांव में यह कहावत है कि ‘लड़कियां और ककड़ियां जल्दी बढ़ जाती हैं।' यही वजह है कि कम उमर में विवाह भी हो गया। बहनों के भी विवाह हो गये। पढ़ाई की वजह से बहनों का विवाह शहर में हो गया और वह कस्बा क्षेत्र में ही रह गय समय बीतता गया, सभी बहनों के परिवार में बच्चें पढ़ लिख गये। परिस्थिति फिर वैसी ही बनी, अब लोग गांव में उसकी बेटी के विवाह के लिए जल्दी करने लगे। कल्याणी पढ़ाई का महत्व समझती थी अतः उसने मन बनाया कि वह बेटी को स्वालंबी बनायेगी। उसने परिवार की बात नहीं मानी आज बेटी का विवाह हो रहा था, वर सहित बाराती दुल्हन का इंतजार कर रहे थे। बेटी अभी कॉलेज की परीक्षा देकर लौटी थी, बिदाई के समय कल्याणी की आँखों में आँसू थे, लेकिन खुशी के।