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दुब्रोव्स्की - 17

दुब्रोव्स्की - 17

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वह जागी और पहला ही ख्याल जो उसके मन में आया, वह था अपनी स्थिति की भयानकता का एहसास। उसने घंटी बजाई, नौकरानी आई और उसके प्रश्नों के उत्तर में बोली, कि किरीला पेत्रोविच शाम को अर्बातवो गए थे और देर रात गए वापस आए, और उन्होंने कड़े आदेश दिए हैं कि माशा को अपने कमरे से बाहर न निकलने दिया जाए और यह भी ध्यान रखा जाए कि कोई उससे बात न करने पाए; यह भी, कि घर में शादी की कोई ख़ास तैयारियाँ नहीं दिखाई दे रही हैं, सिवाय इसके कि पादरी को आज्ञा दी गई है कि किसी भी बहाने से गाँव से बाहर न जाए। इन ख़बरों के बाद नौकरानी ने मारिया किरीलव्ना को अकेले छोड़ दिया और दुबारा दरवाज़ा बंद कर लिया।


उसके शब्दों ने कैद की गई युवती को क्रोधित कर दिया। उसका सिर गुस्से से मानो उबलने लगा, खून उत्तेजनापूर्वक बहने लगा, उसने इस सबकी ख़बर दुब्रोव्स्की को देने का निश्चय किया और सोचने लगी कि किस तरह उसकी अँगूठी ख़ास चीड़ के कोटर तक पहुँचाई जाए, इसी समय उसकी खिड़की पर एक छोटा-सा पत्थर गिरा, शीशा झनझनाया और मारिया किरीलव्ना ने आँगन की ओर देखा तो वहाँ नन्हे साशा को पाया, जो उसकी ओर रहस्यमय इशारे कर रहा था। उसे अपने प्रति उसके लगाव का ज्ञान था और वह ख़ुश हो गई। उसने खिड़की खोली।


“नमस्ते, साशा”, उसने कहा, “मुझे क्यों बुला रहे हो?”


“मैं आपसे यह पूछने आया हूँ, बहना, कि आपको किसी चीज़ की ज़रूरत तो नहीं है। पापा बहुत गुस्से में हैं और उन्होंने घर में सबको आपकी बात सुनने से मना कर दिया है, मगर आपकी कोई इच्छा हो तो मुझे बताइए, मैं आपके लिए सब कुछ करूँगा"


“धन्यवाद, मेरे प्यारे साशा, सुनो : तुम्हें कोटरवाला चीड़ मालूम है, जो कुंज के पास है?”


“मालूम है, बहना"


“तो, अगर तुम मुझसे प्यार करते हो, तो जल्दी से वहाँ भागकर जाओ और कोटर में यह अँगूठी रख दो, हाँ, देखना, तुम्हें कोई देख न पाए"


इतना कहकर उसने साशा की ओर अँगूठी फेंक दी और खिड़की बंद कर ली।

बच्चे ने अँगूठी उठाई और पूरी रफ़्तार से दौड़ा और तीन ही मिनट में नियत स्थल पर पहुँच गया। यहाँ वह रुका, गहरी साँसें लेते हुए चारों ओर देखा और अँगूठी को कोटर में रख दिया। काम सही-सलामत पूरा करने के बाद वह उसी समय उसकी सूचना मारिया किरीलव्ना को देना चाहता था, मगर अचानक भूरे बालों वाला, भेंगी आँखोंवाला, खरोंचों से भरा बालक कुंज के नीचे से चीड़ के पेड़ तक आया और उसने कोटर में हाथ डाल दिया। साशा गिलहरी-सी फुर्ती से उस पर झपटा और उसके दोनों हाथों से लिपट गया।


“तुम यहाँ क्या कर रहे हो?” उसने गरजते हुए कहा।


“तुम्हें इससे क्या?” बालक ने स्वयम् को छुड़ाने की कोशिश करते हुए कहा।


“यह अँगूठी छोड़ो, भूरे ख़रगोश!” साशा चीख़ा, “वरना मैं तुम्हें अपने तरीके से सबक सिखाऊँगा"


जवाब देने के बदले उसने उसके चेहरे पर मुट्ठी तानकर मारी, मगर साशा ने उसे नहीं छोड़ा और ज़ोर से चीख़ा, “चोर, चोर, यहाँ, यहाँ आओ..."


बालक उससे छिटकने की कोशिश कर रहा था। वह साशा से दो वर्ष बड़ा था और उससे काफ़ी ताकतवर भी था, मगर साशा फुर्तीला था। कुछ मिनटों तक वे लड़ते रहे, आख़िरकार भूरा बालक उस पर भारी पड़ा। उसने साशा को ज़मीन पर पटक दिया और उसका गला पकड़ लिया।


मगर उसी समय एक मज़बूत हाथ ने उसके भूरे, उलझे हुए बालों को पकड़ कर खींचा और माली स्तिपान ने उसे ज़मीन से ऊपर उठाया।


“आह, तुम, भूरे शैतान!” माली बोला, “तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई छोटे मालिक को मारने की..."


साशा उछल कर संभल गया था।


“तुमने मुझे ज़बर्दस्ती पकड़ लिया,” उसने कहा, “वर्ना तुम मुझे गिरा न पाते। अँगूठी दे दो और दफ़ा हो जाओ"


“बिल्कुल नहीं,” भूरे बालक ने जवाब दिया और अचानक अपनी जगह पर पलटी खाकर स्तिपान के हाथ से अपने बाल छुड़ा लिए। अब वह भागने ही वाला था, कि साशा ने उसे पकड़ लिया, पीठ को धक्का दिया और बच्चा चारों ख़ाने चित गिर गया, माली ने उसे दुबारा पकड़ लिया और उसके हाथ-पैर बाँध दिए।


“अँगूठी दो,” साशा चिल्लाया।


“रुको, मालिक" स्तिपान ने कहा, “हम इसका फैसला हरकारे से करवाएँगे"


माली कैदी को मालिक के आँगन में ले आया, साशा साथ-साथ चला, वह परेशानी से अपनी सलवार को देख लेता जो फट गई थी, और जिस पर हरी काई चिपक गई थी। अचानक तीनों किरीला पेत्रोविच के सामने पड़े, जो अपने अस्तबल का निरीक्षण करने आ रहा था।


“यह क्या है?” उसने स्तिपान से पूछा। स्तिपान ने संक्षेप में सारी घटना सुनाई। किरीला पेत्रोविच ने बड़े ध्यान से उसकी बात सुनी।


“तुम, शैतान,” वह साशा की ओर मुड़कर बोला, “तुम उससे उलझे क्यों?”


“उसने कोटर से अँगूठी चुराई! पापा, उससे कहिए कि वह अँगूठी वापस करे"


“कौन-सी अँगूठी? कौन-सा कोटर?”


“वो मुझे मारिया किरीलव्ना...वो, अँगूठी.."


साशा घबरा गया, गड़बड़ा गया। किरीला पेत्रोविच ने नाक-भौंह चढ़ा लिए और सिर हिलाते हुए बोला:


“यहाँ मारिया किरीलव्ना बीच में कहाँ से आ गई? सारी बात सच-सच बता दो, वर्ना तुम्हें चाबुक से इतना मारूँगा कि तुम किसी को पहचानोगे भी नहीं"


“ऐ ख़ुदा, पापा, मेरे प्यारे पापा।।।मुझे मारिया किरीलव्ना ने कुछ भी नहीं कहा, पापा"


“स्तिपान, जाओ तो, बर्च के पेड़ की पतली टहनी तो तोड़ लाओ..."


“रुकिए पापा, मैं आपको सब बता दूँगा। आज मैं आँगन में भाग-दौड़ कर रहा था, और बहना, मारिया किरीलव्ना ने खिड़की खोली, और मैं खिड़की के निकट भागा और बहना ने जानबूझ कर अँगूठी नीचे नहीं गिराई, और मैंने उसे कोटर में छुपा दिया और... और यह भूरा अँगूठी चुराना चाहता था"


“जानबूझ कर नहीं गिराई, और तुम छुपाना चाहते थे।।।स्तिपान, छड़ी लाओ!”


“पापा, प्यारे, रुकिए, मैं सब बता दूँगा। बहना मारिया किरीलव्ना ने मुझे चीड़ के पेड़ तक दौड़कर जाने और उसके कोटर में अँगूठी रखने के लिए कहा, मैं भाग कर गया और अँगूठी रख दी, और यह बदमाश..."


किरीला पेत्रोविच बदमाश बालक की ओर मुड़ा और गरज कर उससे पूछा, “किसके हो तुम?”


“मैं दुब्रोव्स्की महाशय का कृषिदास हूँ,” भूरे बालक ने जवाब दिया।


किरीला पेत्रोविच का चेहरा काला पड़ गया।

“तुम, शायद, मुझे अपना मालिक नहीं मानते, ठीक है”, उसने जवाब दिया। “मगर तुम मेरे बाग में क्या कर रहे थे?”


“खुबानियाँ चुरा रहा था, “ बालक ने बड़ी उदासीनता से जवाब दिया।


“अहा, नौकर भी मालिक पर ही गया है: जैसा पादरी वैसा चाकर, और खुबानियाँ क्या मेरे चीड़ के पेड़ पर लगती हैं?”


बच्चा कुछ नहीं बोला।


“पापा, उससे कहिए, अँगूठी वापस करे”, साशा बोला।


“चुप करो, अलेक्सान्द्र,” किरीला पेत्रोविच ने जवाब दिया, “भूलो मत कि तुमसे मुझे अभी निपटना है। अपने कमरे में जाओ। तुम, भेंगे, तुम मुझे दोषी नहीं मालूम होते। अँगूठी दे दो और घर चले जाओ"


बच्चे ने मुट्ठी खोली और दिखाया कि उसके हाथ में अँगूठी नहीं है।


“अगर तुम सारी बात सच-सच बता दो, तो मैं तुम्हारी खाल नहीं खिंचवाऊँगा, बल्कि अख़रोट के लिए पाँच कोपेक भी दूँगा। वर्ना, मैं तुम्हारे साथ वह करूँगा, जिसकी तुम उम्मीद भी नहीं करते होगे। तो?”


बालक ने एक भी शब्द नहीं कहा और सिर झुकाए खड़ा रहा, बेवकूफ़ी का भाव चेहरे पर लाते हुए।


“ठीक है,” किरीला पेत्रोविच ने कहा, “इसे कहीं बन्द कर दिया जाए और यह ध्यान रखा जाए, कि वह भागे नहीं, वर्ना पूरे घर की खाल खिंचवा लूँगा।


स्तिपान बालक को कबूतरख़ाने में बन्द कर आया, बाहर से ताला लगा दिया और पंछियों की देखभाल करने वाली बूढ़ी अगाफ़िया को पहरे पर बिठा दिया।


“अभी शहर से पुलिस कप्तान को बुलाया जाए,” किरीला पेत्रोविच ने बालक को आँखों से बिदा करते हुए कहा, “हाँ, जितनी जल्दी हो सके"


"शक की कोई गुंजाइश ही नहीं है। उसने पापी दुब्रोव्स्की के साथ सम्पर्क बनाए रखा है। मगर क्या सचमुच उसने उसे मदद के लिए बुलाया है?" किरीला पेत्रोविच कमरे में चहलकदमी करते हुए सोच रहा था और बड़े गुस्से में सीटी पर “विजय भेरी..." बजाता जा रहा था।


"हो सकता है, मुझे उसका ताज़ा सुराग़ मिल जाए, और अब वह हमसे बच न पाए। हम इस मौके का फ़ायदा उठाएँगे। च् च् ! घण्टी.. ख़ुदा का शुक्र है, यह कप्तान है"


“ऐ... पकड़े हुए बच्चे को यहाँ लाओ"

अब तक गाड़ी आँगन में प्रवेश कर चुकी थी और हमारा परिचित कप्तान कमरे में घुसा, पूरी तरह धूल-धूसरित।


“अच्छी ख़बर है”, किरीला पेत्रोविच ने उससे कहा, “मैंने दुब्रोव्स्की को पकड़ लिया है"


“ख़ुदा का शुक्र है, हुज़ूर,” कप्तान ने ख़ुश होते हुए कहा, “कहाँ है वह?”


“मतलब, दुब्रोव्स्की को नहीं, बल्कि उसके गिरोह के एक सदस्य को। अभी उसे लाएँगे। वह मदद करेगा हमारी उनके नायक को पकड़ने में। देखिए, उसे ले आए हैं"


कप्तान, जो एक खूँखार डाकू को देखने की उम्मीद कर रहा था, तेरह वर्षीय दुबले-पतले बालक को देखकर आश्चर्यचकित रह गया। उसने अविश्वास से किरीला पेत्रोविच की ओर देखा और स्पष्टीकरण का इंतज़ार करने लगा। किरीला पेत्रोविच ने फ़ौरन सुबह की घटना का वर्णन करना आरंभ कर दिया, हाँ, मारिया किरीलव्ना का ज़िक्र उसने नहीं किया।

कप्तान बड़े ध्यान से उसकी बात सुन रहा था, हर पल उस नन्हे दुष्ट की ओर नज़र डाल लेता, जो बेवकूफ़ी का मुखौटा पहने उनकी ओर कोई ध्यान नहीं दे रहा था।


“हुज़ूर, आपसे अकेले में बात करने की इजाज़त दीजिए,” अन्त में कप्तान ने कहा।

किरीला पेत्रोविच उसे दूसरे कमरे में ले गया और उसने दरवाज़ा बन्द कर लिया।


आधे घण्टे बाद वे वापस हॉल में आए, जहाँ कैदी अपने भाग्य की प्रतीक्षा कर रहा था।

“मालिक,” कप्तान ने उससे कहा, “चाहते थे कि तुम्हें शहर की जेल में डाल दिया जाए, कोड़े बरसाए जाएँ तुम पर, फिर तुम्हें कैदियों की बस्ती में भेज दिया जाए, मगर मैंने तुम्हारी सिफ़ारिश करके तुम्हें आज़ाद करवा दिया है। उसे खोल दिया जाए"


बच्चे को बन्धनमुक्त कर दिया गया।


“मालिक को धन्यवाद दो’, कप्तान ने कहा। बच्चे ने किरीला पेत्रोविच के पास जाकर उसका हाथ चूम लिया।


“अपने घर भाग जा,” किरीला पेत्रोविच ने उससे कहा, “और आगे से कोटरों से खुबानियाँ न चुराना"


बच्चा बाहर निकला, प्रसन्नतापूर्वक ड्योढ़ी से कूदा और भाग चला, बिना इधर-उधर देखे, खेतों से होते हुए किस्तेनेव्को की ओर। गाँव के निकट आने पर वह आधी टूटी झोंपड़ी के निकट रुका, जो सीमा से लगी हुई थी, और खिड़की पर खटखट करने लगा। खिड़की का पल्ला ऊपर उठा और एक बुढ़िया दिखाई दी।

“नानी, रोटी”, बच्चा बोला, “मैंने सुबह से कुछ नहीं खाया है, भूख से मरा जा रहा हूँ"


“आह, यह तुम हो, मोत्या, तुम कहाँ गायब हो गए थे, शैतान,” बुढ़िया ने जवाब दिया।


“बाद में बताऊँगा नानी, ख़ुदा के लिए रोटी दो"


“अन्दर तो आ"


“जल्दी में हूँ, नानी मुझे अभी एक और जगह भागना है। रोटी, ख़ुदा के लिए, रोटी!”


“कैसा बेसब्रा है,” बुढ़िया भुनभुनाई, “ले, यह ले टुकड़ा”, और उसने खिड़की से काली डबलरोटी का टुकड़ा दे दिया। बच्चा गबागब उसे खाने लगा और चबाते-चबाते ही पल भर में आगे भाग चला।


अँधेरा घिरने लगा था। वह आँगनों एवम् भट्टियों के मध्य से गुज़रता हुआ किस्तेनेव्को के जंगल की ओर भाग रहा था। दो पाइन वृक्षों के निकट आकर, जो द्वारपाल की भाँति जंगल के आरम्भ में खड़े थे, वह रुका, फिर चारों ओर देखकर एक कर्णभेदी सीटी बजाने लगा और बीच-बीच में कुछ सुनने भी लगता, जवाब में उसे एक हल्की और लम्बी सीटी सुनाई दी, जंगल से कोई बाहर निकला और उसके निकट आने लगा।


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