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द्वंद्व युद्ध - 10

द्वंद्व युद्ध - 10

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बसंत की सुनहरी मगर ठंडी सुबह थी। बर्ड चेरी महक रही थी।

रमाशोव , जिसने अपनी जवाँ नींद पर क़ाबू पाना नहीं सीखा था, हमेशा की तरह सुबह की ट्रेनिंग क्लासेस पर देर से पहुँचा और शर्म और उत्तेजना की अप्रिय भावना लिए परेड ग्राउंड की ओर आया, जहाँ उसकी रेजिमेंट की ट्रेनिंग चल रही थी। इन भावनाओं में जिनका वह आदी हो चुका था, हमेशा बहुत कुछ अपमानित करने वाला होता था; और रेजिमेंट-कमांडर, कैप्टेन स्लीवा, इन्हें और भी ज़्यादा तीखा और अपमानकारक बना देता था।

यह अफ़सर पुराने, अत्यंत कठोर अनुशासन के युग का एक रूखा और कठोर अंश था, जिसके अंतर्गत आते थे शारीरिक दंड, यूनिफॉर्म आदि पर बारीकी से नज़र, तिगुनी मार्च, और मुष्टि-युद्ध। रेजिमेंट में भी, जहाँ इस जंगली कस्बाई जीवन शैली के कारण मानवीय भावनाओं के लिए कोई जगह नहीं थी, वह इस प्राचीन, वहशी सैनिक-सेवा के एक जंगली स्मारक जैसा था, और उसके बारे में कई अजीब अजीब, अविश्वसनीय चुटकुले सुनाए जाते थे। उसके लिए हर उस चीज़ का, जो सेना के क्षेत्र, उसके नियमों और रेजिमेंट के दायरे के बाहर थी, और जिसे वह ‘बकवास’ और ‘सड़ियल’ कहता था, कोई अस्तित्व नहीं था। ज़िन्दगी भर सैनिक-सेवा के गंभीर, भारी जोखड़ में जुते रहने के कारण उसने न कभी कोई किताब पढ़ी थी, न ही कोई अख़बार, सिवाय ‘इन्वालिद’ के सैनिक-सेवा संबंधी अंश को छोड़कर। मनोरंजन के हर साधन से, जैसे नृत्य-समारोह, नाटक आदि से वह अपनी समूची, रूखी हो चुकी आत्मा से नफ़रत करता था, और अपने सैनिक शब्द-कोष का ऐसा कोई गंदा और ओछा शब्द न होगा जो उसने इनके लिए प्रयोग न किया हो। उसके बारे में यह कहा जाता था – और यह सच भी हो सकता है,- कि एक ख़ुशनुमा बसंती रात में, जब वह खुली खिड़की के पास बैठा था और रेजिमेंट के हिसाब देख रहा था, उसकी बगल में झाड़ियों से एक नाइटेंगल गाने लगी। स्लीवा सुनता रहा, सुनता रहा और अचानक से चिल्लाकर बोला:

 “ज़sssखार्चुक! भsssगा दो इस पंsssछी को पsssत्थर मार के। डिsssस्टर्ब कर रहा है। ”

यह मरियल, देखने में ढीला-ढाला आदमी सैनिकों के साथ काफ़ी सख़्त था और न केवल वह अंडर-ऑफ़िसर्स को आपस में लड़ने की इजाज़त देता था, बल्कि ख़ुद भी बड़ी निर्दयता से, खून निकलने तक उन्हें मारता था, यहाँ तक कि दोषी सैनिक उसकी मार से लड़खड़ाकर नीचे गिर पड़ता था। मगर सिपाहियों की ज़रूरतों का वह बड़ी बारीकी से ख़याल रखता था: गाँव से आए हुए उनके मनीऑर्डर वह नहीं रोकता था और हर रोज़ रेजिमेंट के खाने का इंस्पेक्शन करता था, हाँलाकि अन्य कामों के लिए सैनिकों को मिलने वाले धन का अपनी मर्ज़ी से हिसाब करता था। उसकी रेजिमेंट के मुक़ाबले में सिर्फ पाँचवी रेजिमेंट के ही सैनिक खाए-पिए और ख़ुश नज़र आते थे।

मगर नौजवान अफ़सरों को स्लीवा खूब सताता था और उनकी जम के खिंचाई करता था, बड़े अभद्र, तेज़ तर्रार तरीकों का इस्तेमाल करता, जो उसके तीखे, कुँआरे व्यंग्य की बदौलत और भी ज़हरीले हो जाते थे। अगर, मान लीजिए, ट्रेनिंग के दौरान यदि कोई सबाल्टर्न-अफ़सर क़दम ग़लत कर देता, तो वह आदत के मुताबिक हकलाते हुए चीखता, “ओय, सु-नो। पूरी रेजिमेंट, शै-शैतान ले जाए, ग़लत क़दमों से चल रही है। सिर्फ एक से-सेकंड लेफ्टिनेंट ठीक चल रहा है। ”

कभी कभी पूरी की पूरी रेजिमेंट को माँ-बहन की गालियाँ देते हुए, वह फ़ौरन, मगर ज़हरीली आवाज़ में जोड़ देता, “सि-सिर्फ अ-अफ़सरों और सेकंड लेफ्टिनेंट्स को छोड़कर। ”

मगर ख़ास तौर से कठोर और बेदर्द वह तब हो जाता था जब कोई जूनियर अफ़सर रेजिमेंट में देर से पहुँचता था, और इसका अनुभव रमाशोव को बहुत बार हो चुका था। रमाशोव को दूर से ही आते देख कर स्लीवा ने अपनी रेजिमेंट को ‘अटेंशन” का आदेश दिया, मानो देर से आने वाले का सादर-व्यंगात्मक स्वागत करने जा रहा हो; और स्वयँ बिना हिले डुले, हाथ में घड़ी पकड़े, निरीक्षण करता रहा कि रमाशोव कैसे शर्म से लड़खड़ाते हुए और अपनी तलवार से उलझते हुए, देर तक अपनी जगह न ढूँढ़ सका। कभी कभी वह तैशपूर्ण शराफ़त से पूछता, इस बात से हिचकिचाए बिना कि सिपाही सुन रहे हैं, “ मेरा ख़्याल है, सेकंड लेफ्टिनेंट, कि आप हमें ड्रिल जारी रखने की इजाज़त देंगे?” कभी चेतावनीपूर्ण चिता से, मगर जानबूझकर ज़ोर से पूछता कि सेकंड लेफ्टिनेंट ठीक से सोया या नहीं और उसने सपने में क्या देखा। इनमें से कोई भी एक चीज़ करने के बाद ही अपनी मछली जैसी गोल गोल आँखों से उलाहनाभरी नज़र डालते हुए वह रमाशोव को एक ओर करता, और उसे कड़े शब्दों में चेतावनी देता।

ऐह, कोई बात नहीं, हमेशा ही ऐसा होता है!’ रेजिमेंट के निकट आते हुए रमाशोव ने अनमनेपन से सोचा। ‘यहाँ भी हालत ख़राब है, वहाँ भी ख़राब है,- एक से बढ़कर एक। मेरी ज़िन्दगी तो तबाह हो चुकी है!’

रेजिमेंट कमांडर, लेफ्टिनेंट वेत्किन, ल्बोव और सार्जेंट-मेजर परेड ग्राउंड के बीचोंबीच खड़े थे और वे सब एक साथ आते हुए रमाशोव की ओर मुड़े। सिपाहियों ने भी सिर घुमाकर उसकी ओर देखा। इस समय रमाशोव ने स्वयँ को एक परेशान, टिकी हुई अनेक नज़रों के बीच अटपटी चाल से चलते हुए व्यक्ति के रूप में अनुभव किया, और उसे और भी बुरा लगा।

हो सकता है, यह सब इतना शर्मनाक नहीं है?’ उसने अनेक लजीले स्वभाव के व्यक्तियों की भाँति ख़यालों में स्वयँ को सांत्वना देने की कोशिश की। ‘ हो सकता है कि सिर्फ़ मुझ को ही यह बड़ा पैना लगता है, और दूसरों को, शायद, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। मिसाल के तौर पर मान लीजिए, मैं कल्पना करता हूँ कि मैं नहीं, बल्कि ल्बोव देर से आया है, और मैं अपनी जगह पर खड़ा होकर देखता हूँ कि वह कैसे आ रहा है। और, कोई ख़ास बात नहीं देखता :ल्बोव – ल्बोव जैसा ही आ रहा है, सब बकवास है। ’ उसने आख़िरकार निश्चय किया और कुछ शांत हुुुुआ। मान लीजिए, शर्म आती है। मगर यह भावना एक महीने तक तो नहीं न चलेगी, न ही एक हफ़्ते, एक दिन भी नहीं। और सारी ज़िन्दगी ही इतनी छोटी सी है, कि इसमें हर चीज़ बिसर जाती है। ’

आदत के विपरीत, स्लीवा ने उसकी ओर क़रीब क़रीब ध्यान ही नहीं दिया और अपने तरकश से कोई तीर भी नहीं निकाला। सिर्फ़, जब रमाशोव उससे एक क़दम दूर, सम्मानपूर्वक हाथ को कैप पर रखकर और दोनों पैरों को जोड़कर खड़ा हो गया, तो उसने हाथ मिलाने के लिए पाँच ठंड़ॆ सॉसेज जैसी अपनी उंगलियाँ उसकी ओर बढ़ा दीं: “लेफ्टिनेंट कृपया याद रहे, कि आपको रेजिमेंट में सीनियर सबाल्टर्न-ऑफिसर से पाँच मिनट पहले और रेजिमेंट कमांडर से दस मिनट पहले पहुँचना चाहिए। ”

 “क़ुसूरवार हूँ, कैप्टेन महोदय,” काठ जैसी आवाज़ में रमाशोव ने जवाब दिया। ”

 :बस, माफ़ कीजिए, - क़ुसूरवार हूँ! बस, सोते रहते हो। नींद में तो ओवरकोट सिलेंगे नहीं। अफ़सरों, अपनी अपनी प्लैटून में जाइए। ”

पूरी रेजिमेंट छोटे छोटे समूहों में परेड ग्राउंड में बिखर गई। हर प्लैटून में मॉर्निंग एक्सरसाइज़ की जा रही थी। सिपाही पंक्तियों में खड़े हो गए, एक दूसरे से एक एक क़दम की दूरी पर, एक्सरसाइज़ में रुकावट न हो इसलिए उन्होंने कोटों के बटन खोल लिए थे। रमाशोव की आधी रेजिमेंट का स्मार्ट अंडर-ऑफिसर बबिलेव निकट आते अफ़सर की ओर आदरपूर्वक कनखियों से देखते हुए अपने निचले जबड़े को आगे करके ज़ोर से आदेश देने लगा:

 “पंजों के बल खड़े होएगा, धीरे से बैठेगा। हा—थ..जांघों पर!”

और फिर नीची आवाज़ में खींचते हुए बोला:

 “शु-रू—कर!”

 “ए-क!” सिपाही एकसुर में बोले और हौले से पंजों के बल बैठ गए, और बबीलेव ने भी पंजों के बल बैठकर कठोर, चौकन्नी नज़र पंक्ति पर डाली।

बगल में ही छोटा सा, चंचल लान्स कार्पोरल सेरोश्तान पतली, तीखी और फटी फटी, जवान मुर्गे जैसी आवाज़ में चिल्ला रहा था:

 “बाँया और दाहिना पैर बाहर, हाथ भी बाहर। तोव्स! शुरू कर। एक-दो, एक-दो!” 

और दस तंदुरुस्त, जवान आवाज़ें अलग अलग सुर में प्रयत्नपूर्वक चीखीं: “हाउ, हाउ, हाउ, हाउ!”

 “रुको!” पैनी आवाज़ में सेरोश्तान चिल्लाया। “ला-प्शिन! तू ये डंडे की तरह क्या कर रहा है, बेवकूफ़! मुठ्ठियाँ नचा रहे हो, जैसे र्‍याज़ान की बुढ़िया करती है:खाउ, खाउ! मेरे पास गतिविधियाँ साफ़ साफ़ होनी चाहिए, तेरी माँ !”

फिर अंडर ऑफिसर दौड़ाते हुए अपनी प्लैटूनों को कसरत करने की मशीनों के पास ले गए जो परेड ग्राउंड की सीमा पर अलग अलग जगहों पर रखी हुई थीं। सेकंड लेफ्टिनेंट ल्बोव ने, जो ताकतवर, फुर्तीला जवान और बढ़िया जिम्नास्ट था, जल्दी से अपना ओवरकोट और फौजी कोट उतारा और एक नीली फूलदार कमीज़ में सबसे पहले पॅरलल बार्स की तरफ भागा। हाथों से उन्हें पकड़कर झूलते हुए तीन कोशिशों में अचानक पूरे शरीर से गोल चक्र बनाते हुए, इस तरह कि एक पल के लिए उसके पैर सिर के एकदम ऊपर आ गए, वह तेज़ी से बार्स को छोड़ते हुए आधा फर्लांग दूर उड़ा, फिर हवा में मुड़ा और हौले से, बिल्ली के समान, ज़मीन पर बैठ गया।   

 “सेकंड लेफ्टिनेंट ल्बोव! फिर से नखरे कर रहे हो!” झूठ मूठ कठोरता से स्लीवा उस पर चिल्लाया। बूढ़े खडूस ‘बुर्बोन के दिल की गहराई में सेकंड लेफ्टिनेंट के लिए एक कमज़ोरी की भावना थी, जैसी एक बेहतरीन फ्रंट लाइन सिपाही के लिए और बारीक़ी से क़ायदे क़ानून जानने वाले के लिए होती है। “वही दिखाइए, जिसकी कमांडर माँग करता है। ये कोई पवित्र सप्ताह में होने वाली नौटंकी नहीं है। ”

 “सुन रहा हूँ, कैप्टेन महोदय!” प्रसन्नता से ल्बोव चहका, “सुन रहा हूँ, मगर करूँगा नहीं,” उसने रमाशोव को आँख मार कर दबी ज़ुबान में आगे जोड़ा।

चौथी प्लेटून तिरछी, झुकी हुई सीढ़ी पर प्रैक्टिस कर रही थी। एक के बाद एक सिपाही उसके पास आते, उस पर लगा डंडा पकड़ते, अपने स्नायुओं को खींचते हुए हाथों से ऊपर चढ़ते। अंडर ऑफिसर शापोवालेन्का नीचे खड़ा होकर निर्देश दे रहा था। “लात मत झाड़ो। पंजे ऊपर!”

अब बारी आई बाईं पंक्ति के सिपाही ख्लेब्निकोव की, जो रेजिमेंट में सबके उपहास का पात्र था। अक्सर उसकी ओर देखते हुए रमाशोव को ताज्जुब होता था कि इस दयनीय, दुर्बल, मुट्ठी जितने गंदे, बिना मूँछों के चेहरे वाले, इस बौने आदमी को फौज में ले कैसे लिया। और जब सेकंड लेफ्टिनेंट उससे मिलता तो उसे लगता जैसे ख्लेब्निकोव की आँखों में जैसे उसके जन्म से ही हमेशा के लिए एक कुंद, आज्ञाकारी भय जम गया है, और उसके दिल में उकताहटभरी, आत्मा को कचोटती एक अजीब सी भावना हिलोरें लेने लगती।

ख्लेब्निकोव हाथों पर लटका हुआ था, भौंडा सा, आकारहीन, गठरी की तरह।

 “अपने जिस्म को खींचो, कुत्ते का थोबड़ा, खींचो-ओ!” अंडर ऑफिसर चीख़ा, “ ओह, ऊपर!”

ख्लेब्निकोव ने उठने की कोशिश की, मगर असहाय की भाँति सिर्फ अपनी टाँगें हिला दीं और इधर से उधर हिलने लगा। एक पल के लिए उसने अपने छोटे से भूरे चेहरे को नीचे एक ओर मोड़ा, जिस पर ऊपर को मुड़ी नाक गंदगी और दयनीयता से ऊपर को झांक रही थी। और अचानक, डंडे से छूटकर वह बोरे की तरह ज़मीन पर गिर गया।

 “आ-आ! जिम्नास्टिक्स नहीं करना चाहते!” अंडर ऑफिसर गरजा। “तू, कमीने, मेरी पूरी प्लैटून को ख़राब कर रहा है! मैं तो तु-झे-!”

शापोवालेन्का, मार पीट करने की हिम्मत न करना!” क्रोध और शर्म से फटते हुए रमाशोव चिल्लाया। “ऐसा कभी भी मत करना!” वह भाग कर अंडर ऑफिसर के पास गया और उसका कंधा पकड़ लिया।

शापोवालेन्का सीधा तनकर खड़ा हो गया और अपना हाथ कैप के पास ले गया। मगर उसकी आँखों में, जो एकदम सिपाही की आँखों की तरह भावहीन हो गई थीं, मुश्किल से नज़र आने वाली व्यंग्यपूर्ण मुस्कान लहरा रही थी।  

 “सुन रहा हूँ, हुज़ूर। सिर्फ आपको इतना बतलाने की इजाज़त दें: इससे किसी भी तरह की कोई उम्मीद नहीं की जा सकती। ”

ख्लेब्निकोव बगल में ही खड़ा था, झुक कर; वह कुंद आँखों से अफ़सर की ओर देखकर हथेली के पिछले भाग से नाक पोंछ रहा था। पैनी और बेकार की सहानुभूति के भाव से रमाशोव मुड़ा और तीसरी प्लैटून की ओर बढ़ा।

जिम्नास्टिक्स के बाद जब लोगों को दस मिनट का विश्राम दिया गया था, सारे अफ़सर दुबारा परेड़-ग्राउंड के बीचोंबीच, पॅरलल रॉड्स के निकट जमा हो गए। अगली मई में होने वाली परेड के बारे में बातें चल पड़ीं।

 “तो, हमें पता करना है कि हमारी कमज़ोरी कहाँ है!” स्लीवा ने हाथ नचाते हुए और अचरज से अपनी पनीली आँखें बाहर निकालते हुए कहा। मतलब ये कि, मैं आपको बताता हूँ कि हरेक जनरल की अपनी अपनी सनक होती है। मुझे याद है, हमारे यहाँ एक लेफ्टिनेंट-जनरल ल्वोविच था, कोर-कमांडर। वह इंजीनियरिंग ब्रांच से हमारे यहाँ आया था। तो उसके समय में हम बस खुदाई का ही काम करते थे। नियम, तरीक़े, मार्च – सब एक ओर रख दिया था। सुबह से शाम तक बस इमारतें ही बनाते थे, उनकी तो! गर्मियों में मिट्टी से और सर्दियों में बर्फ से। पूरी रेजिमेंट कीचड़ में लथपथ रहती थी। दसवीं कम्पनी का कमांडर अलैनिकोव, भगवान उसकी आत्मा को शांति दे, का नाम आन्ना-मेडल के लिए भेजा गया था क्योंकि उसने कोई ल्युनेट-बार्बेट बनाया था। ”

 “आसान है!” ल्बोव ने पुश्ती जोड़ी।

 “फिर, यह तो आपको भी याद होगा, पावेल पाव्लीच, जनरल अरागोंस्की के ज़माने की बन्दूकबाज़ी। ”

 “आ! शूटिंग प्रक्टिस के समय में ?” वेत्किन हँसने लगा।

 “वह क्या है?” रमाशोव ने पूछा।

स्लीवा ने मज़ाक में हाथ हिला दिए।

 “ये ऐसा है कि तब हमारे दिमागों में बस शूटिंग से संबंधित नियम और निर्देश ही भरे रहते थे। इन्स्पेक्शन के दौरान एक सिपाही जवाब दे रहा था “विश्वास करता हूँ”, तब उसने ऐसा ही कहा, ‘पोंती पिलात के समय में’ के स्थान पर बोला ‘शूटिंग प्रॅक्टिस के समय में’। सबके दिमाग इस हद तक ठूँस ठूँस कर भरे गए थे! तर्जनी को हम तर्जनी नहीं बल्कि ट्रिगर वाली उंगली कहते थे, और दाईं आँख के बदले कहते – निशाने वाली आँख।

 “और, याद है, अफानासी किरीलिच, सिद्धांतों को कैसे रटा करते थे?” वेत्किन ने कहा। ट्रेजेक्टरी, डेरिवेशन..ओह गॉड़ , मैं ख़ुद भी कुछ भी नहीं समझ पाता था। ऐसा होता था कि सिपाही से कह रहे हो: ये रही बन्दूक, बैरेल में देखो। क्या देखते हो? ‘एक काल्पनिक रेखा, जिसे बैरेल की एक्सिस कहते हैं। ’ इसके बाद सीधे फायरिंग होती थी। याद है, अफानासी किरीलिच?”

 “हाँ, क्यों नहीं। फायरिंग के लिए तो हमारी डिविजन का नाम विदेशी अख़बारों में आया था। बेहतरीन से भी दस प्रतिशत ज़्यादा – ग़ौर फ़रमाइए। मगर, हम गुंडागर्दी भी करते थे, मेरे साथियों! बढ़िया शूटरों को एक रेजिमेंट से दूसरी में माँग लिया करते थे। वर्ना, ये होता था कि कम्पनी अपनी मर्ज़ी से कहीं भी गोलियाँ मार रही है और परदे के पीछे छिपे जूनियर अफ़सर सही सही निशाना लगा रहे हैं। एक कम्पनी ने तो इतनी योग्यता दिखाई कि जब गिनने लगे तो पता चला कि जितनी दी गई थीं उससे पाँच गोलियाँ ज़्यादा छोड़ी गई हैं। एक सौ पाँच प्रतिशत गोलियाँ निशाने पर लगी थीं। थैन्क यू, सार्जेंट-मेजर, उसने पेस्ट लगाकर अतिरिक्त छेद बन्द कर दिए। ”

 “और स्लेसारेव के समय में, श्रेबेरोव्स्की जिम्नास्टिक्स की याद है?”

 “क्यों नहीं याद होगी! वह तो यहाँ बैठी है। बैले-डांस किया करते थे। और भी बहुत कुछ होता था, ये जनरल, शैतान उन्हें उठा ले! मगर, मैं कहता हूँ, साथियों, कि यह सब आज के मुक़ाबले में बकवास था, समझो कि कुछ भी नहीं था। ये तो, क्या कहते हैं – आइए, अंतिम चुम्बन है। पहले, कम से कम यह तो मालूम था कि तुमसे किस बात की उम्मीद की जा रही है, मगर आज? आह, नर्मी दिखाओ, सिपाही – नज़दीकी इंसान है, मानवता दिखानी चाहिए। घूँ-से लगाने चाहिए उस कमीने को! आह, दिमाग़ी काबलियत बढ़ गई है, फुर्ती और ध्यान देना। सुवोरोवियन! अब तो आप जानते ही नहीं हो, कि सिपाही को क्या पढ़ाएँ। ये, नया शगूफ़ा सोचा, ‘आर पार अटैक। ”

 “हाँ, ये कोई चॉकलेट नहीं है!” वेत्किन ने सहानुभूति से सिर हिलाया।

  “आप खड़े हैं, और वह दुष्ट, और कज़ाक आपके पूरे करियर को चौपट करने पर उतारू हैं। और आरपार! और-कोशिश तो करो – थोड़ा सा इधर उधर सरक तो जाओ। फौरन निर्देश आ जाता है: “ फलाँ-फलाँ कैप्टेन बहुत कमज़ोर दिल है। उसे याद रखना चाहिए, कि कोई भी उसे फौज में ज़बर्दस्ती बाँध कर नहीं रख रहा है। ”

 “चालाक बूढ़ा,” वेत्किन ने कहा। “उसने के, रेजिमेंट में क्या हंगामा किया था। पूरी कम्पनी को बहुत बड़े कीचड़ के गढ़े के पास ले गया और कम्पनी कमांडर को “लेट जा!” ऐसी कमांड देने पर मजबूर किया। वह हिचकिचाया, मगर फिर भी उसने आदेश दिया, “लेट जा!” सिपाही घबरा गये, सोचने लगे कि कहीं उन्होंने गलत तो नहीं सुन लिया। और जनरल निचली रैंक के अफसरों के सामने कमांडर को फटकारने लगा: “कैसे नेतृत्व करते हो कम्पनी का! सफ़ेद हाथों वाले शैतान! नाज़ुक-नखरेवाले! अगर यहाँ इस गढ़े में लेटने से डरते हैं, तो युद्ध के समय अगर वे दुश्मन की गोलियों के बीच किसी खाई में फँस गए तो तुम उन्हें कैसे उन्हें प्रेरित करोगे? तुम्हारे ये सिपाही नहीं हैं, औरतें हैं, औरतें, और कमांडर – एक बुढ़िया है! ध्यान रहे!”

”फ़ायदा क्या है? लोगों के सामने कमांडर का अपमान करते हैं, और बाद में बात करते हैं अनुशासन की! और, उसे, गुंडे-बदमाश को, मार भी नहीं सकते। न—हीं। । । माफ़ करना – वह एक व्यक्ति है, वह इन्सान है! नहीं - पुराने ज़माने में कोई व्यक्ति-बक्ति नहीं होते थे, और उनकी, जानवरों की ख़ूब धुलाई होती थी, मानो सिदोरोव की भेड़ें हों, और हमने की थीं सेवेस्तोपोल की, इटली की, और भी दूसरी कई लड़ाइयाँ। तुम चाहो तो मुझे नौकरी से बाहर कर दो, मगर मैं फिर भी, जब यह नीच गड़बड़ करेगा, तो उसे सही सही जवाब दूँगा!”

 “सिपाही को मारना बेईमानी है,” अब तक चुप बैठे रमाशोव ने धीरे से प्रतिवाद किया। “उस आदमी को नहीं मारना चाहिए, जो न सिर्फ़ तुम्हें जवाब देने की स्थिति में नहीं है, बल्कि उस मार से स्वयँ को बचाने के लिए अपने चेहरे के निकट हाथ ले जाने का भी जिसे अधिकार नहीं है। वह तो सिर को हिला भी नहीं सकता। यह बड़े शर्म की बात है!”

स्लीवा ने आँखें सिकोड़ कर और निचला होंठ आगे निकाल कर ऊपर से नीचे तक, और दाएँ-बाएँ से रमाशोव को इस तरह देखा मानो उसे नष्ट कर देना चाहता हो।

 “क्या ssss?” उसने बड़ी हिकारत से आवाज़ को खींचते हुए कहा।

रमाशोव का चेहरा फक् हो गया। सीना और पेट एकदम ठंडे पड़ गए, दिल ज़ोर ज़ोर से धड़कने लगा, मानो पूरे जिस्म में धड़क रहा हो।

 “मैंने कहा कि यह बुरी बात है.. हाँ, और फिर से दुहराता हूँ..यही कि,” उसने असंबद्धता से मगर ज़ोर देकर कहा।

 “लो, और सुनो!” स्लीवा ने पतली आवाज़ में अपनी बीन बजाई। “बहुत देखे हैं हमने, ऐसे चॉकलेट बॉय, घबराओ मत। ख़ुद ही, एक साल बाद, अगर रेजिमेंट तुम्हें निकाल बाहर नहीं करे, तो उनके थोबड़े लाल किया करोगे। अच्छी तरह करोगे। मेरे से भी बेहतर। ”

रमाशोव ने घृणा और भर्त्सनापूर्वक उसकी ओर देखा और लगभग फुसफुसाते हुए बोला:

 “ अगर आप सिपाहियों को मारेंगे, तो मैं रेजिमेंट-कमांडर से आपकी शिकायत करूंगा। ”

 “क्या” स्लीवा गरजते हुए चिल्लाया, मगर फौरन उसने बात बदल दी। “ख़ैर, यह बकवास बहुत हो चुकी,” उसने रूखेपन से कहा। “आप, सेकंड लेफ्टिनेंट, पुराने युद्धरत अफ़सरों को, जिन्होंने पच्चीस साल ईमानदारी से अपने त्सार की सेवा की है, सिखाने के लिए अभी बहुत छोटे हो। अफ़सर महोदयों से प्रार्थना करता हूँ कि वे कम्पनी- स्कूल में जाएँ,” उसने चिड़चिड़ाते हुए बात पूरी की।

उसने अफसरों की ओर झटके से पीठ फेर ली।

 “तुम्हें शौक चर्राया था उससे उलझने का?” वेत्किन ने रमाशोव की बगल में चलते हुए समझौते के स्वर में कहा। “ख़ुद भी जानते हो कि यह प्लम (स्लीवा का शाब्दिक अर्थ) मीठा नहीं है। आप उसे इतना नहीं जानते जितना मैं जानता हूँ। वह आपसे ऐसी ऐसी बातें कहेगा, कि आप समझ ही नहीं पाएँगे कि कैसे बचें। और यदि प्रतिवाद करोगे, - तो वह आपको क़ैद करवा देगा। ”

 “सुनो तो सही, पावेल पाव्लीच, यह फ़ौजी-नौकरी नहीं, बल्कि ख़तरनाक क्रूरता है!” क्रोध और अपमान के आँसुओं से भीगी आवाज़ में रमाशोव फट पड़ा। “ये पुराने ढोलों के चमड़े हमारा मखौल उड़ाते हैं! अफ़सरों से पेश आते समय वे जानबूझकर बदतमीज़ी करते हैं, अपनी बहादुरी की डींगें मार “बताओ तो, किसे ज़रूरत है इसकी; क्यों ये खिंचाई, चिल्लाना, बदतमीज़ीभरे फ़िकरे? आह, जब मैं फ़ौज में अफ़सर बना था तो मैंने इसकी ज़रा भी उम्मीद नहीं की थी। अपना पहला अनुभव मैं कभी भी नहीं भूलूँगा। मुझे कम्पनी में आए बस तीन ही दिन हुए थे, और इस लाल बालों वाले शैतान अर्चाकोव्स्की ने मुझे नोच लिया। मैंने मेस में बातें करते हुए उसे लेफ्टिनेंट कह कर संबोधित किया, क्योंकि वह भी मुझे सेकंड लेफ्टिनेंट कहता है। और वह, हाँलाकि मेरे पास ही बैठा था और हम साथ साथ वाइन पी रहे थे, मुझ पर चिल्लाया; ‘सबसे पहली बात, तुम्हारे लिए मैं लेफ्टिनेंट नहीं हूँ, बल्कि ‘लेफ्टिनेंट महाशय’ हूँ; और दूसरी बात, दूसरी बात ये कि जब बड़ी रैंक वाला अफ़सर आपको चेतावनी दे रहा हो तो उठ कर खड़े हो जाइए!’ और मैं उसके सामने उठकर खड़ा हो गया, आहत, अपमानित, जब तक कि उसके लेफ्टिनेंट कर्नल लेख ने मुझे बिठा नहीं दिया। नहीं, नहीं, कुछ भी मत कहो, पावेल पाव्लीच। इस सबसे मैं इतना उकता गया हूँ, और इतनी घृणा हो गई है मुझे इस सबसे! ”



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