स्वच्छ भारत
स्वच्छ भारत
"आक्च्चच्च्च्छी..." बार-बार छीक आ रही थी विश्वास को, रूमाल की रगड़ से नाक भी लाल हो गई थी। "देख लिया ना जिद का नतीजा, यहीं रूको, यहीं रूको की रट लगा रखी थी। पर अब मैं नहीं रूकने वाला यहाँ। है भी क्या यहाँ, हर तरफ गंदगी के ढेर, धूल, मिट्टी ", अपनी भड़ास माँ पर निकाल रहा था विश्वास।
"जाने दो इसे शगुन, इसे मिट्टी की कीमत नहीं पता, रही बात गंदगी की, तो कोई भी देश गंदा नहीं होता, उसे गंदा करते हैं वहाँ के वासी ! हमारा भारत भी स्वच्छ है उसे तुम जैसे लोग गंदा करते हैं, कभी विदेशों से तुलना करके, इसे कम आँककर। देश के लिए देश के युवा काम करते हैं तभी वह देश तरक्की करता है पर हमारे युवा तो जैसे ही पढ़ लिख जाते हैं बाहर का रूख कर लेते हैं। देश को साफ रखने की जिम्मेदारी हम सबकी है, आलोचना के लिए मुँह खोलना बड़ी बात नहीं। बड़ी बात कुछ करके दिखाना है।"
माँ पर भड़ास निकालने वाले विश्वास की पिता के तर्को के सामने बोलती बंद हो चुकी थी।