अब पछताए होत
अब पछताए होत
हॉस्पिटल की कुर्सी में बैठे -बैठें मीनाक्षी की कब आँख लग गयी, पता ही नहीं चला। आँख खोली तो सामने अनिरूद्ध को देख कर समझ गयी, वह भी रात भर सोया नहीं होगा। मीनाक्षी को हॉस्पिटल आये, आज चौथा दिन था। अनिरुद्ध रोज़ अस्पताल के विजिटिंग समय से पहले ही पहुँच जाता था।
“अरे! तुम फिर इतनी जल्दी आ गए। अनि तुम मेंरी बात नहीं मानते हो, तुमको इतनी सुबह उठने की आदत नहीं है, कहीं बीमार हो जाओगे तो कौन देखेगा” कहते कहते वह चुप हो गयी
“तुम्हारी बात सुनता होता, तो आज इतना मजबूर न होता” अनिरूद्व की आँखे बह रही थीं।
दुर्गापुर से जब मास्टर्स करने कलकत्ता आया तो कॉलेज में नया मौहोल था। क्लास ख़त्म होते ही लडके बाहर भागते हुए जाते और फिर दूसरे टीचर के आने तक कभी-कभी बाद में लौटते। एक दिन उसने अपने बग़ल वाले से पूछ ही लिया, “सब लड़के कहाँ जाते हैं ?”
शशांक ने कहा “तुम खुद चल कर देख लो” और उसे अपने साथ पीछे की ओर बनी बालकनी में ले गया। वहां सबके सब सिगरेट का मज़ा ले रहे थे
“वेलकम टू आवर ग्रुप” एक ने सिगरेट पकड़ा दी।
“मैं सिगरेट नहीं पीता”
“अरे बेटा यहाँ पापा नहीं आ रहे“ दूसरे ने कहा
“वह बात नहीं....”
उसकी जवाब को अर्पण ने बीच में ही टोक दिया “छोटे शहर का छोटा सा बच्चा“ और सब उसकी मज़ाक बना रहे थे। उस दिन से जो सिगरेट की आदत लगी तो आज तक न छोड पाया।
मीनाक्षी को उसी दिन उसने फोन पर बता दिया था। वह बहुत नाराज हुई थी। शादी न करने की धमकी भी दी थी, पर उसको तो जैसे लत सी लग गयी थी। शादी के बाद जब बेंगलूरू जॉब करने आया तो अब छिपकर पीने की जरुरत नहीं थी, क्योंकि मीनाक्षी तो पहले से ही जानतीं थी। मीनाक्षी भी मना करते करते हार गयी थी।
और फिर वही हुआ जिसका डर था। मीनाक्षी का छह मास के गर्भ में भ्रूण खत्म हो गया था। मीनक्षी के फेफड़ो में भी धुंए का असर आ चूका था। अपनी आँखों के सामने, अपने अजन्मे बच्चे का दर्द और अपना पहला प्यार मीनाक्षी को तडपते देख रहा था। सिगरेट को तो उसने छोड़ दिया पर... “अब पछतावै होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत”