गुलफाम नगर की पारो
गुलफाम नगर की पारो
पारो की तलाश में निकले देवदास का गुलफाम नगर में आना उतना ही आश्चर्यचकित कर देने वाला था जितना कि उसका गुलफाम नगर के ढक्कन प्रसाद उर्फ़ डिप्पी से मिलना।
एक हफ्ते पहले जब तूफान मेल गुलफाम नगर के रेलवे स्टेशन पर रुकी तो ट्रेन में सवार और शराब के नशे में धुत्त देवदास को स्टेशन के प्लेटफार्म पर खड़ी पारो दिखाई दी, पारो को देखते ही देवदास पगला गया गया और ट्रेन से उतर कर स्टेशन पर भटकने लगा। उसे पारो तो न मिली लेकिन एक जेबकतरा उसकी जेब से नोटों से भरा पर्स निकाल कर उड़न छू हो गया। नोटों की तो कोई परवाह न थी लेकिन पर्स में रखी पारो की फोटो भी वो जेबकतरा ले उड़ा था। फोटो के जाने से देवदास के मुँह से चीखे निकलने लगी, "अरे बचाओ, कोई मेरी पारो को बचाओ।"
देवदास की चीखे इतनी भयंकर थी कि जेबकतरा घबरा कर दौड़ता हुआ डेढ़ कुंतल के ढक्कन प्रसाद उर्फ़ डिप्पी से जा टकराया जो इस समय अपनी चाची पारो को लेने स्टेशन पर आया था। टक्कर कुछ इस तरीके से हुई कि जेबकतरा डिप्पी को भी लेकर इस तरह से गिरा कि डेढ़ पसली का जेबकतरा स्टेशन के उबड़-खाबड़ फर्श पर और डेढ़ कुंतल का डिप्पी उसके ऊपर। जेबकतरे के मुँह से भयानक चीखे निकल रही थी, चीखे सुनकर कुछ लोगों ने डिप्पी को जेबकतरे के ऊपर से उठाया लेकिन तब तक जेबकतरा बेहोश हो चुका था।
देवदास ने दौड़ कर अपना पर्स बेहोश पड़े जेबकतरे से छीन कर उसमे पड़ी पारो की फोटो को निकाल कर फोटो को पागलो की तरह निहारने लगा। फोटो को भी लोग देखने लगे जिनमें सबसे ज्यादा आश्चर्यचकित डिप्पी था।
तभी वहाँ एक भारी-भरकम पुलिस वाला आ पहुँचा और ढेर हुए जेबकतरे को देखकर गुर्रा कर बोला, "क्यों बे कर दिया क़त्ल इस छोकरे का?"
"हुजूर ये मरा नहीं बेहोश है।" डिप्पी रिरिया कर बोला।
"बकवास बंद, तुम दोनों ये लाश उठाकर थाने चलो वही होगा इसके जीने मरने का हिसाब।" पुलिस वाला अपनी खूंखार आवाज में बोला।
जैसे ही देवदास और डिप्पी उस जेबकतरे को उठाने के लिए झुके वैसे ही वो जेबकतरा उछल कर उठा और तीर की तरह रेलवे स्टेशन से भाग गया।
"मुलजिम भगाना बहुत बड़ा जुर्म है, इस जुर्म में तुम दोनों को जेल की चक्की न पिसवा दी तो मेरा नाम क्रूर सिंह नहीं।" पुलिस वाला गुर्रा कर बोला और उन दोनों की गर्दन पकड़ कर थाने की तरफ चल पड़ा। थाने में दोनों के तन के कपडे छोड़कर सब छीनकर दोनों को थाने से बाहर निकाल दिया।
"अबे भाई कौन है तू, तूने तो अपने साथ-साथ मुझे भी लुटवा दिया........और मेरी चाची का फोटो लिए क्यों घूम रहा है?" डिप्पी ने गुस्से में आकर कहा।
"वो तेरी चाची नहीं मेरी पारो है।" देवदास गुस्से से बोला।
"लगता है तू चाची का कोई पुराना आशिक है......." डिप्पी चिंतित स्वर में बोला।
"हाँ मैं आशिक हूँ चल ले चल मुझे पारो के पास।" देवदास उत्साह के साथ बोला।
"भाई तेरा दिमाग खराब है क्या, उसे छोड़कर मेरा चाचा भाग गया है, तू उसके चक्कर में मत पड़........"
"तेरी इतनी जुर्रत कि तू मुझे पारो से मिलने से रोक रहा है......" देवदास गुर्रा कर बोला।
"समझा रहा हूँ अंकल, समझ लोगे तो अच्छा, नहीं तो थोड़ी देर बाद वो आशिक नगर से आ रही ट्रेन से आने वाली है; मिल लेना।" डिप्पी ठंडी सांस भरकर बोला।
तभी ट्रेन आशिक नगर से आ रही ट्रेन के आने की सूचना हुई और दोनों लपक कर ट्रेन वाले प्लेटफॉर्म की और बढ़ चले।
"भाग जा गुरु लास्ट टाइम समझा रहा हूँ....." डिप्पी हँस कर बोला।
"बकवास बंद....." देवदास गुर्राया।
थोड़ी देर बाद ट्रैन आई और डिप्पी देवदास को लेकर उसकी चाची वाले डिब्बे में जा घुसा। पारो सामान का ढेर लिए बैठी थी, पारो को देखकर देवदास हक्का-बक्का रह गया। पारो का चेहरा तो वही था लेकिन कुछ उम्र भी बढ़ गई थी, कद भी बढ़ गया था, कुछ कद्दावर भी हो गई थी। देवदास की अक्ल काम नहीं कर रही थी लेकिन कुछ हिम्मत करके बोला, "तू है पारो मैं देवदास......."
"अच्छा तू ही है वो मशहूर देवदास, देर से मिला लेकिन मिल गया तू, आज तेरी आशिकी का भूत न उतार दिया तो मेरा नाम पारो नहीं।" पारो अपनी कर्कश आवाज में बोली।
देवदास अभी पारो की कर्कश आवाज के सदमे से उभर भी नहीं सका था कि पारो की आवाज फिर उसके कानों में पड़ी, "क्या बुत बनकर खड़ा है? चल उठा मेरा सामान।"
पाँच मिनट बाद देवदास अपने सिर पर पचास किलो वजन का सूटकेश लिए रेलवे स्टेशन के पुल पर चढ़ रहा था और उसका एयर बैग भी उसके कंधे पर टंगा हुआ था।
स्टेशन के बाहर एक खटारा कार खड़ी थी जिसमें पारो का सामान लादा गया और डिप्पी ड्राइविंग सीट पर जा बैठा। कार स्टार्ट न हुई तो डिप्पी ने मुस्करा कर कहा, "चचा ये धक्का स्टार्ट कार है, नीचे उतरो और धक्का लगा कर कार स्टार्ट कराओ।"
जलता भुनता देवदास कार से नीचे उतरा और कार को धक्का लगाने लगा। करीब एक किलोमीटर की धक्का परेड के बाद कार स्टार्ट हुई, तब तक देवदास का नशा कुछ हद तक उतर चुका था।
कार उन्हें शहर से आठ किलोमीटर दूर एक राईस मिल में ले गई। मिल के चारो तरफ पंद्रह-पंद्रह फ़ीट ऊँची दीवारों से घिरा था और लोहे का एक गेट ही मिल में जाने का एक मात्र रास्ता था।
"सुन यहाँ रहना है तो काम करना पड़ेगा......" पारो मुस्करा कर बोली।
"तुम्हे मोहब्बत करता हूँ लेकिन तुम्हारा गुलाम नहीं हूँ, मैं कोई काम नहीं करूंगा।" देवदास गुस्से में बोला।
"अबे क्यों अपनी मुसीबत बुला रहा है जो कह रही है कर ले नहीं तो जालिम सिंह, खुंखार सिंह और भयंकर सिंह आ जाएंगे।" डिप्पी फुसफुसा कर बोला।
"ये कौन हुए?" देवदास ने पूछा।
"तभी छः-छः फिट ऊँचे कद्दावर जवान जो एक बड़े से टिन के शेड के नीचे मिटटी खुदे अखाड़े में मिटटी में सने कुश्ती लड़ रहे थे टिन शेड से निकल कर आए और उनमे से एक बोला, "क्या हुआ मम्मी?"
"कुछ नहीं बेटा ये पगला काम करने से मना कर रहा है, मै सफर से थकी हुई हूँ तुम लोग ही निपटो इससे।
दो मिनट बाद देवदास टिन शेड के नीचे अखाड़े में उन तीनों पहलवानों में से एक के साथ कुश्ती लड़ रहा था और वो पहलवान उसके ऊपर कुश्ती का हर दांव आजमा रहा था और बीच-बीच में उसे राईस मिल में काम करने और रहने के बारे में भी समझा रहा था। पंद्रह मिनट की कुश्ती के बाद देवदास का पूरा नशा उतर चुका था और वो मिल में हर काम करने के लिए तैयार था।
दस मिनट बाद वो मिल के दूसरे मजदूरों के साथ मिलकर एक ट्रक से निकाल कर अपनी पीठ पर लाद कर धान की बोरियां मिल के गोदाम में पहुँचा रहा था। रात को उसे मजदूरों के साथ एक बड़े से खाली गोदाम में रहा और डिनर में मिली चावलों की खिचड़ी।
अब धान और चावलों की बोरियां ढोना देवदास की जिंदगी बन चुकी थी। दो बार उसने मिल से निकल कर भागने की कोशिश भी की, वो भाग तो न सका लेकिन सजा के रूप में उन पहलवानों से उसे अखाड़े में कुश्ती लड़कर अपनी दुर्गति करवानी पड़ी। डिप्पी जो मिल का सुपरवाइजर था उसने देवदास को बताया वो तीनों पहलवान पारो के बेटे है और बहुत जालिम है।
कभी-कभी उसे पारो भी दिख जाती जो उसकी तरफ हमेशा मुस्करा कर देखती और पूछती, " क्यों अब भी कहेगा- तू है पारो मैं देवदास पारो मैं देवदास?"
देवदास हर बार उसकी तरफ हसरत और तमन्ना भरी निगाह से देखता रह जाता।
एक महीने तक खिचड़ी खा-खा कर और मजदूरी कर-करके देवदास जब थक गया तो वो पारो के पैरो में गिर गया और बोला, "बख्श दे मेरी अम्मा, मेरे सिर से आशिकी का भूत उतर चुका है, अब मुझे जाने दो, मै अपने गाँव में जाकर बैल की जगह हल में लग जाऊँगा लेकिन मुझे जाने दो।"
पारो हँस कर बोली, "जाओ........"
देवदास को अपने कानो पर विश्वास न हुआ और वो राईस मिल से भाग निकला और भागते-भागते कसम खाई, जहन्नुम में चला जाऊँगा लेकिन भूले से भी गुलफाम नगर में नहीं आऊँगा।