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sunanda aswal

Inspirational

4.5  

sunanda aswal

Inspirational

मेरा असली हीरो ' शेरपा तेनजिंग नोर्गे '

मेरा असली हीरो ' शेरपा तेनजिंग नोर्गे '

4 mins
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इस दुनियां में कितने व्यक्तित्व अलग होते हैं, लेकिन,एक रंग ही अच्छा लगता है ...। ऐसा व्यक्ति हो जो अपनी छाप दुनियां में छोड़ देते हैं , ऐसे विरले ही होते हैं ..।कभी- कभी अपने रंगों से सच्चे व्यक्ति अपने कार्यों से महान बन जाते हैं ..!उनमें से एक व्यक्तित्व "शेरपा तेंजिंग नॉरगे" ..!


शेरपा तेनजिंग नोर्गे बेहद प्रतिभावान कर्मठ मेहनती,बहुत सी भाषाओं के ज्ञाता थे...!

ज्ञान व हुनर ना विरासत में मिला ना ही स्कूल में,कभी विद्यालय का मुंह जिसने नहीं देखा, उसे सच्णी लगन और और मेहनत के बल पर मिला था..!


शेरपा नेपाल देश में पैदा हुए.. हरे- हरे पहाड़ों के बीच तेंजिंग बचपन से ही बहुत साहसी थे, बेहद गरीब घर में पैदा हुए..। परंतु यह कौन जानता था एक दिन ये गरीब किसान बालक दुनियां में नाम रौशन करेगा..?पिता बहुत पढ़ने को कहते रहते थे..!


अक्सर पिता कहते," पढ़ो बेटा तुम पढ़ाई में मन नहीं लगाते..। पढ़ाई में मन लगाया करो ,हम गरीब के पास हुनर के सिवा क्या है ..? ना धन ना ज़मीन..।"


तेंजिंग कहते," पिता ..मेरा मन पढ़ाई में नहीं लगता और मुझे अपना पाठ जल्दी याद नहीं होता है !"


 बचपन में पिता किसी और नाम से उन्हें पुकारते थे ..! उन्हें उनका वह नाम पसंद नहीं था ..एक दिन वह बैठे सोच रहे थे ," क्यों ना इसका नाम बदला जाए..? शायद..! ईश्वरीय चमत्कार हो और बालक सुधर जाए..!"परंतु, ऐसा हो ना सका..!फिर भी उन्होंने किसी संत से पूछकर उनका नाम रखा 'तेंजिंग नॉरगे' उनको अपना नाम पसंद ना आया और वे घर छोड़ दार्जिलिंग भाग आए...!


यहाँ पर शेरपा का काम किया ,कोई भी पर्वतरोही आता तो उनका सामान ढोते और नाम के आगे लगा तेंजिन "शेरपा" ..! कोई भी विदेशी पर्वतरोही टीम आती तो, उनको अपने साथ सामान लादकर ऊंचे पर्वत शिखर में चढ़वाते ..।


इसी तरह से उनका जीवन यापन हो रहा था..!


१९४७ में उनको बद्रीनाथ की चढ़ाई करनी थी मात्र सौ गज पर माऊंट एवरेस्ट था ,ऊपर से -६५ डिग्री तापमान कढ़कढ़ाती ठंड..लेकिन किस्मत कै मंजूर नहीं था...रास्ते में तूफान आने से उनको वापसी की रुख करना पड़ा..! उनका मन नही था वापस जाने का. मजबूर थे..!

आगे सन् १९५० को भी सोचा, फिर १९६२ को एक विदेशी कर्नल के साथ गए मात्र उस बार भी डाई सौ गज़ से वापसी करनी पड़ी ऊपर से बर्फीले तूफानी थपेड़े, मान तेंजिग मारकर हार गए ....। उन्हें किसी हाल में कर्नल का आदेश का पालन करना था..!

फिर आखिर सन् १९५३ वर्ष ९ अप्रैल में:अंग्रेजों कर्नल के साथ "एडमंड हिलैरी " ब्रिटिश नागरिक तेंजिंग की तरह जोशीले थे .।


उन्होंने निरंतर -४५ डिग्री तापमान पर चलना शुरू किया, बहुत ऊपर से बहुत सख्त बर्फ ,हथौडों से मार -मार के ..छैनी से और रस्सी से आगे बड़ रहे थे ऊंचाई को छूने को तैयार रहते ..।


जब रास्ते में पहुंचे तब,कर्नल को थकान लगी बोला,"Hello boys ..! Let's move towards down we will soon trape between "ice's storm.!"( हमें वापस मुड़ना चाहिए , क्योंकि लगता है हम बर्फ के तूफान में रास्ते में जल्दी फंस सकते हैं ।)


कप्तान वापस जाना चाहता था परंतु शेरपा ने अपनी शर्त याद दिलाई कहा" I don't want to go back.. remember I bet you before climbing the Everest.!"

( मैं वापस नहीं जाना चाहता,मेरी शर्त यही थी पर्वत पर चढ़ने से पहले।)

Commander," O yes boy you may carry on..we are moving down..! Good luck..!"( ठीक है लड़के तुम जाओ, लेकिन,हम वापस हो रहे हैं)


"शेरपा "ने शर्त रखी थी पहले ही कि किसी हाल में वो वापस नहीं होंगें ,उनको अपने अनुभव से ही बहुत सी भाषाएँ आती थीं ।


उन्हें लगा 'जीत निश्चित है, वो ही पहले व्यक्ति के तौर पर सर्वप्रथम हिंदुस्तान का झंडा फहराएंगे..।'


जब वे ऊपर चढ़ रहे थे,तापमान कम हो चुका था लगभग शून्य से बयालिस ( -४२) नीचे डिग्री नीचे। अब बहुत कदम थक चुके थे फिर भी वे ऐवरेस्ट को चुनौती दे रहे थे ..।


जब वे लगभग दो सौ गज रहें होंगें उनकी ऑक्सीजन सिलेंडर में कम हो गई थी , फिर भी वे चढ़ते रहे,जब उन्होंने घबराए हुए हिलैरी को देखा तो समझाया,' आप चिंता ना करें सर ! ..हम थोड़ा -थोड़ा ही इस्तेमाल कर लेंगें..।"


एक जगह बैठकर दोनों अपना- अपना " ऑक्सीजन सिलिंडर "साफ करने लगे..!तभी उनको दो सिलिंडर वहीं पर्वतीय राह पर पड़े मिले ,यह ईश्वरीय चमत्कार ही था ।


 उन्होंने महसूस किया" मन में विश्वास और सच्ची लग्न से जग भी जीता जा सकता है ..।"


आगे की ओर चलने लगे..बहुत अधिक थकान थी..उधर एक बड़ी कहीं खाई कहीं दर्रा आया दोनों ही घबरा रहे थे , परंतु एक दूसरे को ढांढस बंधाते आगे बढ़ रहे थे ..।


एक बड़ा दर्रा पार करना आवश्यक था, एक दूसरे को दोनों ने नहीं छोड़ा..और तभी:

अचानक ..! एडमैंड जी का पांव दर्रे के बीच आ गया लेकिन ,तेंजिंग ने उनको कसकर पकड़े रहे और उन्हें बचा लिया..!


एडमेंड जी बहुत खुश हुए.. सोचा कि "ये इंसान मेरे साथ बिल्कुल सही है .!"


आखिर उन दोनों को अपनी मंजिल मिल गई और २३ मई सन् १९५३ को भारत ,ब्रिटेन और नेपाल के झंडे ने "माऊंट ऐवरेस्ट" की शोभा बढ़ाई..और उनको टाइम्स मैगजीन के आवार्ड से भी उनको श सुशोभित किया गया...!


8,848 मीटर...कम नहीं है विश्व को जीतने के लिए ..! यह मनुष्य को हमेशा प्रेरणा देती रहेगी ..!सच्ची लगन और आत्मविश्वास की कहानी याद आती रहेगी तब तब शेरपा तेनजिंग नोर्गे याद आएंगे ..।


महान "शेरपा तेंजिंग नॉरगे" हमेशा युवाओं के प्रेरक रहेंगे..!




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