Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

Jyotiramai Pant

Drama Inspirational

4.5  

Jyotiramai Pant

Drama Inspirational

नन्हा किरायेदार

नन्हा किरायेदार

9 mins
1.3K


मधु ने ज्यों ही आँखे खोली तो देखा वह अस्पताल में है। उसके सामने नर्स खड़ी थी वह उसे देख कर मुस्कुरा दी। नर्स ने उसे बधाई देते हुए कहा कि डिलीवरी नॉर्मल हुई है, उसने बेटे को जन्म दिया है। मधु ने संतोष की साँस ली। धीरे से अपने हाथों को अपने पेट पर फेरा और आँखे बंद कर मुस्कुराती रही।

उसे समझ नहीं आ रहा था वह कि वह इस बात की ख़ुशी मनाये भी कि नहीं ? आम तौर पर कोई भी स्त्री जब माँ बनती है तब उसकी और उसके परिवार की ख़ुशी का कोई ठिकाना ही नहीं रहता। मानों दुनिया का अनमोल खज़ाना उन्हीं के हाथ लग गया हो। कितनी खुशियाँ मनाई जाती हैं ? पर उसे इन बातों से क्या लेना देना ?

उसने तो किसी और की ख़ुशी के लिए यह सब किया है। वह अपने अतीत की बातों में खो जाती तभी उसकी माँ गोमती आ गई। उन्होंने उसके माथे पर धीरे से हाथ फेरा और प्यार से चूम लिया। उन्हें लगा मधु सो रही है। वह बाहर जाकर इंतजार करने जा ही रही थी कि मधु ने उसका हाथ थाम लिया। माँ की आँखों से आँसू झरने लगे।

आँचल से आँसुओं को पोंछती हुई बोली- कैसी तबियत है बेटी ?

मधु ने क्षीण हँसी के साथ कहा `....ठीक हूँ माँ।`

गोमती ने उसे आराम करने की सलाह दी और स्वयं सामने लगे सोफे पर बैठ गई पर उनका मन असमंजस से घिरा हुआ था...काश ! दस वर्ष पहले अगर ऐसा हुआ होता तो जिंदगी का रुख कुछ और ही होता। किस्मत में क्या है कौन जान सकता है ? मध्यमवर्ग की होने पर भी गोमती ने मधु का विवाह एक अच्छे घर में किया था। कुशाग्र उसे चाहता भी था ....गोमती ने अपनी जिम्मेदारी निभा ली थी बस अब शांति से जीवन बीत जायेगा, यही सोचती थी लेकिन मधु अपने परिवार को वंशज न दे पाई। धीरे-धीरे सारे दोष मधु पर ही मढ़े जाने लगे ...इलाज में कोई कमी नहीं थी और मधु को निर्दोष भी पाया गया। कुशाग्र अपनी जाँच करवाने को माने इससे पूर्व उसकी माँ ने ही उसे रोक दिया। उनके पुत्र में कोई दोष नहीं हो सकता ..मधु को बाँझ कह कर तलाक देने की योजना बना ली गई। सासू माँ सविता देवी ने घर का माहौल ही ऐसा बना दिया कि मधु का रहना दूभर कर दिया। उसकी पीड़ा और अपमान देख कुशाग्र ने मन मार कर मधु से दूरी बना ली और दो तीन वर्षों की ज़द्दोजहद के बाद उन्होंने तलाक ले लिया।

मधु अपनी माँ के पास वापस आ गयी। अकेली बेबस माँ करती भी क्या ? कुछ समय अवसाद और उदासी में बीता पर इससे होना भी क्या था। जीवन रोकर कब तक चलता ? मधु को एक जगह अच्छी नौकरी मिल गई। अब माँ बेटी साथ रहती थीं। माँ चाहती थी कि मधु का घर दुबारा बस जाये, कोई अच्छा रिश्ता मिल जाता पर एक संदेह सताने लगता...पहली शादी टूटने का...कारण...सबसे बड़ी समस्या।

दूसरी ओर मधु थी की मानने को तैयार नहीं। एक बार के अपमान, घृणा और तिरस्कार के घाव अभी भरे नहीं थे। अकेले जीवन बिताएगी पर अब बस शादी नहीं। माँ उसे डाक्टर के पास भी ले गई। मनोचिकित्सकों की राय भी दिलवाई, शारीरिक जाँच भी ताकि बाधा न हो। इसी दौड़ धूप में डॉक्टर शालिनी से बहुत अच्छी जान पहचान हो गई। उनका क्लिनिक पास में ही था। डॉक्टर को अपने बच्चों के लिए किसी ट्यूटर की ज़रुरत थी। मधु ने ऑफिस के बाद शाम के समय सहायता करने की बात कह दी थी ...उसके पास समय बिताने के लिए कुछ न कुछ करते रहना ज़रूरी था। धीरे-धीरे मधु और शालिनी में बहुत अच्छी दोस्ती हो गई। हर तरह के दुःख-सुख की सहभागी बन गई। कई वर्ष बीत गए...

गोमती चाहती थी कि एक छोटा सा घर बन जाये तो चिंता दूर हो। बाकी तो ठीक चल ही रहा था पर मकानों के बढ़ते किराये से घर का बजट गड़बड़ा जाता लेकिन घर बनाने के लिए बड़ी रकम भी तो चाहिए। उसका भी कोई उपाय तो मिले।

करीब साल भर पहले की बात है मधु और शालिनी ने एक साथ कहीं जाने का प्रोग्राम बनाया था इसलिए मधु क्लिनिक पहुँच गयी पर शालिनी अभी मरीजों के साथ ही व्यस्त थी अतः मधु को उसी के केबिन में बैठना पड़ा। डॉक्टर शालिनी सामने बैठी महिला को जो रोये जा रही थी, समझा रही थी- `अब रोने की बात नहीं आज चिकित्सा विज्ञान की करामात से निःसंतान व्यक्तियों को सन्तति का वरदान मिल सकता है ..आइ.वी. ऍफ़ ..और सरोगेसी(भ्रूण प्रस्थापन ) यानी किसी और की कोख में भ्रूण का प्रस्थापन करके संतान प्राप्त करना।

ये अपनी ही संतान होती है ..गोद ली हुई नहीं ...बस संतान पलेगी किसी और के गर्भ में और इसके लिए कई महिलाएँ आजकल अपनी कोख किराये पर देने को तैयार हैं। किसी की आर्थिक मजबूरी है या कुछ और उन्हें रूपये मिल जाते हैं और किसी को संतान। आपसी सह्रदयता का इससे अच्छा उदहारण नहीं। महिला रोती, सुबकती शांत हो गई फिर बोली- अगर ये बात सच है तो मैं शीघ्र ही अपनी बेटी और दामाद को लेकर आऊँगी. बेटी की गृहस्थी टूटने को है। दामाद न चाहते हुए भी परिवार के दबाव में उसे छोड़ने को मजबूर है।

क्या करें किसी तरह बेटी का जीवन बच जाये। अवसाद में कुछ उल्टा-सीधा काम न कर बैठे। दोनों घरों में भगवान का दिया सब कुछ है पर संतान न होने का दुःख। रूपये पैसे की कोई कमी नहीं होगी ..बस बेटी और दामाद आपसे मिल कर राज़ी हो जाए तो कितनों का जीवन सँवर जाय ..डॉक्टर साहिबा आप तो हमारे लिए देवी से कम नहीं .....कुछ समय बाद शालिनी उन्हें दरवाज़े तक छोड़ कर आई ..लौट कर देखा तो मधु भी रो रही थी। उसे लगा उसी की व्यथा का वर्णन हो रहा था।

बोली..`काश ! मेरा जीवन सँवारने को कोई तुम सा डॉक्टर मिला होता या तुम मुझे पहले मिली होती।` फिर हँस कर बोली अब क्या फायदा ?

तभी शालिनी अचानक बोल उठी...`मधु ! सुनो बुरा मत मानना पर तुम्हारी बात से मेरे मन में एक बात उठी है इसलिए कहे बिना नहीं रहा जा रहा, क्या तुम इसकी बेटी की मदद कर सकती हो ? पहली बात तो यह है जो तुमने भोगा है उसी नरक- यातना से तुम किसी और का उद्धार कर सकती हो। किसी डूबते को उबारना तो पुण्य ही हैं न ? दूसरी बात तुम विवाह नहीं करना चाहती हो पर विवाहिता रही तो हो। संतान न होने से इतनी व्यथा सही है..अब संतान भले ही किसी और की हो पर उसे नौ माह अपनी कोख में पालने का अनुभव ले सकती हो। तीसरी मुख्य बात बदले में तुम्हें धन राशि मिल सकती है, सोचो जरा..

बात हँसी-मजाक से शुरू हुई पर मधु को विचलित कर गयी। अपनी भोगी एक एक पीड़ा, ताने, गाली-गलौज, उपहास और कलंक, ये सभी बातें लगा फिर से भोग रही हो। कई दिन उदासी में बीत गए। गोमती ने एक दिन शालिनी से पूछ ही लिया..शालिनी बेटा..एक बार इसे भी देख लो...न जाने अब क्यों उदास रहती है ?

बातों-बातों में शालिनी ने बता दिया सब कुछ .....पहले तो गोमती बहुत नाराज़ हो गई ..शालिनी पर ही बरस पड़ी ..फिर न जाने क्या हुआ .? बोली बेटा बात तो सही लगती है पर ज़माना क्या कहेगा। हम दोनों को ? पहले ही तलाक के नाम से बहुत कुछ सहा और सुना जबकि गलती किसकी थी... किसी ने जानने की कोशिश भी नहीं की।

शालिनी बोली- `ज़माने की चिंता किसी का भला नहीं करती। कितने लोगों ने आपकी मदद की ? फिर मैं तो कहती हूँ जब आपकी स्वस्थ बेटी को ही वन्ध्या कहा गया...समाज में नारी के प्रति सबसे बड़ा धब्बा लगाया गया तब कितनों ने साथ दिया ? उसके पति में भी दोष हो सकता है ? किसी ने यह माना क्यों नहीं ? मैंने तो सिर्फ एक बात शुरू की थी पर मधु अपने कलंक को भी धो सकती है, हालांकि अब इस बात का कोई मोल नहीं पर उसके ससुराल वाले शर्मिंदा ज़रूर होंगे जब कहीं से उनके कानों तक यह समाचार पहुँचेगा और आंटी जी ! मैं कौन सा काम ज़बरदस्ती करवा रही हूँ, यह तो मधु उस समय वहाँ उपस्थित थी वर्ना ऐसे कई केस होते हैं आज तक तो मैंने नहीं बताया न ?`

इस बात को बीते कई दिन हो गए....शालिनी के पास वह महिला अपने दामाद और बेटी को लेकर मिली। वे संतुष्ट होकर चले गए अब शालिनी को ही किसी ऐसी महिला को ढूँढने का जिम्मा सौंप गए। अब उन्हें कई तरह के जाँच-टेस्ट करवाने के लिए आते रहना था। एक दिन मधु ने फिर जिज्ञासा वश पूछ ही लिया....मधु ने इस काम को स्वीकार करने का निश्चय कर लिया। `अपना जीवन अब सिर्फ जैसे-तैसे गुजार रही हूँ कोई मकसद तो है नहीं ...जान पहचान वाले हमेशा खोट ही देखते हैं या दिखावे की सहानुभूति दिखा जाते हैं ..अतीत को भूलना चाहूँ भी तो भूलने नहीं देते ....फिर एक नेक काम कर लूँ तो क्या बुराई है ? उसने माँ को भी समझा लिया। फिर डॉक्टर शालिनी को सहमति दे दी।

कई टेस्ट ...जाँच की परीक्षाएँ पास कर आज वह सफल हुई थी। एक बेटे की माँ बन गई थी। बेशक उसे वह अपना नहीं कह पाएगी। अपना कोई अधिकार नहीं जता पाएगी पर उसकी एक इच्छा है जो वह शालिनी को कहेगी। शर्त के अनुसार असली माता -पिता से परिचय ज़रूरी तो नहीं ...पर उस संतान को उन्हें सौंपने से पहले वह उसे एक बार सिर्फ, एक बार देखना चाहेगी और हाथों में लेकर गले लगा सकेगी और उसे आँखों में बसा लेगी। उसकी कोख के उस नन्हे से किरायेदार को जो नौ महीने तक वहाँ रहा और उसकी वीरान सी जिंदगी में कल्पनाओं के बीज बोता रहा।

अगली सुबह इससे पहले वह शालिनी से अपनी विनती करती कि नर्स नवजात शिशु को लेकर आई और उसके पीछे वह महिला बेटी और दामाद के साथ उसके चारों ओर खड़े हो गए। आँसू भरे नेत्रों से उसे देखकर गदगद हो गए। महिला ने मधु को कहा ..तुम मेरी बेटी समान हो, तुमने हमारा घर खुशियों से भर दिया। हम तुमसे मिले बिना नहीं जा सकते थे। तुम्हारे बारे में सब जान चुकी हूँ...बेटी तुमने अपनी कोख ही किराये पर नहीं दी बल्कि हमारे घर को ख़ुशी का भंडार दिया है ..तुम इस अमानत को अपने हाथों से ही अपनी छोटी बहन की गोद में दोगी तो हमें बहुत अच्छा लगेगा।

गोमती के सारे संशय दूर हो गए थे। मधु तो अचंभित थी जिस नन्हे किरायेदार के बारे में वह सोच रही थी उसने कितने नए रिश्ते दे दिए एक साथ ... पर क्या उसे अपनी इन खुशियों का किराया लेना चाहिए ....उसे डा.शालिनी से बात करनी होगी।।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Drama