विकल्प
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विधान चंद जी को गए दो महीने बीत गए। सारा घर परिवार बिखर सा गया था। आगे बढ़ने के लिए कोई सूत्र तो मिले जिसका सिरा पकड़ा जा सके। अभी तक बागडोर दोनों पति पत्नी ने संभाल रखी थी। अब पति के चले जाने से सविता निढाल सी हो गई। बहुत सोच विचार के बाद आज उसने एक फैसला ले ही लिया। अब आगे की जिंदगी उसे अकेले ही निभानी होगी बिना किसी बोझ के। अपने जीवन के सारे उत्तरदायित्व वह निभा चुकी। सारी गृहस्थी का कार्य कलाप, नाते रिश्तेदारी, मेहमान नवाजी पूरी की। अब समय आ गया है कि उत्तरदायित्वों का हस्तांतरण कर दिया जाये। यही सोचकर उसने अपने परिवार के सामने यह बात रखी और उसे पूरा विश्वास था कि बच्चे इस बात को मान लेंगे। उसे आश्चर्य तो तब हुआ जब सभी ने थोड़ी देर तक चुप्पी साध ली। मौन को स्वीकृति समझने के बीच ही बच्चों ने दूसरा विकल्प सुझा दिया। "मां! हम को जिम्मेदारी देने से अच्छा है कि आप बंटवारा कर दें। साथ रहने से परिवार में खट पट अधिक होगी। सभी व्यस्त हैं। आप सबका हिस्सा देकर भी तो निश्चिंत और बोझ मुक्त हो जायेंगी। हम तीनों भाइयों के साथ जब मन करे रह सकती हैं। " मां भी कुछ देर सोच विचार के बाद बोली। " ठीक कहा। आप लोग जिम्मेदारी तो नहीं पर अधिकार की बात कर रहे हैं। एक विकल्प और है । तुम सबको हमने हर तरह से समर्थ बनाया है । अब सभी अपना अपना काम और परिवार संभालें। मैं अपना घर और खुद को संभाल लूँगी। सभी जिम्मेदारी के बोझ से मुक्त रहेंगे। बंटवारा मेरे बाद ही संभव होगा। "