नया परिवार
नया परिवार
अंजली मामी से आज लगभग एक दशक बाद मिलने का अवसर मिला। बचपन में जब जब ननिहाल गए उनका स्नेह और दुलार पाकर हम इतना खुश होते कि घर वापस लौटने का मन ही नहीं करता। हर छुट्टियों में हम वहीं जाने का राग अलापते।बड़े होते होते समझ आया कि उनके कोई संतान नहीं थी। घर परिवार के अन्य बच्चों का पालन पोषण कर अपना मन बहला लेती। बाद में बच्चे बड़े हो कर घर से दूर होते गए उनके माता पिता भी उन के संग चले गए।
बढ़ती उम्र में अकेलापन उन्हें सालने लगा कोई सहारा भी नहीं। यही हम सुनते आए पर अपनी दुनियादारी में व्यस्त मिल भी न सके। आज ऑफ़िस के काम से ही जाना हुआ।
मन में एक अपराध बोध सा लेकर जा रहा था कि इस उम्र में मैं उनको अपने साथ लाने का आग्रह भी नहीं कर सकता था।
लगता था अकेले में शायद उनकी दीन हीन अवस्था होगी। पर घर पहुंचते ही देखा। घर सजा धजा है अंदर से खूब हँसने खिलखिलाने की आवाज़ें आ रही है।अं दर प्रवेश कर मामी से मिला वह भी ठीक ही लग रही थीं। उन्होंने मुझे बिठा कर एक सहायक को चाय नाश्ते का आदेश दिया। मेरी प्रश्न वाचक नज़रों से ही उन्होंने कहा " क्यों आश्चर्य हो रहा है न? "
मैं अब अकेली नहीं हूं। मैंने कई अनाथ और ग़रीब बच्चों को गोद लिया है। धन संपत्ति की कमी तो नहीं थी बस तुम्हारे मामा जी के जाने के बाद परिवार और संतान बिना जीवन व्यर्थ सा लग रहा था। मैंने बिना धर्म जाति का भेद भाव किए अब एक घर परिवार बसाया है"
मै अपनी मजबूरी बताता इससे पूर्व वे बोली " बेटा !अभी तो नहीं पर मेरे बाद इस कुटुंब की देखभाल कर सको तो मैं निश्चिंत हो जाऊंगी"
मैंने उन्हें वचन दिया वसुधैव कुटुंब की जो नींव उन्होंने रखी है मैं सदा उसका ध्यान रखूंगा। इसे बिखरने नहीं दूंगा"
लौटते समय उनकी आँखों में झलकते अश्रु बिदुओं के साथ मेरी ग्लानि भी धुल गई थी।