नज़रिया
नज़रिया
रूही अपने परिवार की लाड़ली बेटी थी।यद्यपि परिवार धार्मिक और पुराने विचारों का था। घर में लड़कियों का दर्ज़ा गौंड़ था फिर भी रूही की शिक्षा दीक्षा में कोई कमी नहीं थी। इसका श्रेय दादी को जाता था। वह अनपढ़ ही रह गयी थी। उनके ज़माने में लड़कियों को पढ़ाने का रिवाज़ ही नहीं था। अब दादी पोती के साथ साथ पढ़ना चाहती थी और अपने सारे मौखिक ज्ञान, रामायण महाभारत, पुराण आदि की कहानियां रूही को सुनाती रहती थी। उनका कहना था की वे उसे पढ़ने का मौका दिलवा रही हैं पर उसे हमेशा अपनी परम्पराओं, रीति - रिवाज़ों,धार्मिक नीतियों का पालन करना होगा।
समय पर रूही की पढाई -लिखे पूरी हो गयी। उसमें नए विचारों का भी असर दिखने लगा। उसका नजरिया भी बदलने लगा।शादी के समय भी दादी उसे सती सावित्री,अनुसूया, सीता आदि की बातें याद दिलाती रही।
उनका पतिव्रत धर्म, त्याग अपनाने की सीख देती। कभी कभी रूही उनकी बातों का विरोध भी करने लगी।
''अब ये बातें संभव नहीं आज की नारी अपना भला बुरा समझ कर फैसला कर सकती है। ''
शादी के बाद कुछ समय तो हँसी ख़ुशी में बीत गया पर फिर समस्याओं और संघर्षों ने जीना दूभर कर दिया।इस बीच उसके दो बच्चे भी हो गए। पति की शंकालु आदत और व्यसनों के आदी होने से उसे रोज ही अग्नि परीक्षा देनी पड़ती।उसका हँसना - बोलना भी दूभर हो गया।पति का साथ वह विपरीत हालातों में निभा रही थी। पर अब बच्चों के भविष्य का प्रश्न था। रोज के कलह में उनका जीवन अस्त- व्यस्त हो रहा था। उसे अब एक माँ की ज़िम्मेदारी का अहसास हो रहा था। यह भी उसी की एक और परीक्षा का समय था।
वह इस बीच कई बार मायके भी गयी। उसे वहां से कुछ मदद मिलने की उम्मीद होती। हर बार उसे एक मौका और देने और समझौता करने की सीख के साथ वापस भेज दिया जाता।
अब रूही को समझ आ गया कि उसे अपना सलीब खुद ही उठाना है। लोग तो कुछ न कुछ कहेंगे ही। उसने अपनी डिग्रियों को निकाला, कई जगह आवेदन किया संयोग से उसे एक कंपनी में बहुत अच्छे पद पर चुन लिया गया। ज्वाइन करने से पहले उसने अपने पति से अलग होने का फैसला भी कर लिया। वह मायके मिलने आई तो सभी ने उसका विरोध ही किया।
दादी बड़ी मायूसी से बोली 'बिटिया !ये तूने अच्छा नहीं किया। तूने मेरे मन को ठेस पहुँचाई मेरी शिक्षा बेकार गयी ''
''नहीं दादी क्या बात कर रही हो ?तुम हमेशा कहती हो न, औरतों को जन्म भर परीक्षा देनी पड़ती है और उन्हें हर हाल में सफल होना पड़ता है। दुःख सहने पड़ते हैं भागना नहीं होता ''
'आत्म सम्मान भी बनाये रखना पड़ता है ''
''हाँ बेटी पर तूने ''
''हाँ दादी आप हमेशा सीता का उदाहर देती उनके त्याग, अग्नि परीक्षा से लेकर वनवास में परित्याग तक ''
''दादी, पापा मम्मी ! मैंने भी वही अनुसरण किया है।'''
सीता माँ का अनुसरण किया है। अपने बच्चो को एकाकी ही पढ़ा- लिखा कर समर्थ बनाने के लिए ही ये फैसला लिया है ''
रोज रोज की परीक्षाओं से निकल कर अब ये अग्नि परीक्षा के लिए तैयार हुई हूँ। हो सके तो आशीर्वाद दीजिये ''
उसकी बात सुनकर थोड़ी देर चुप्पी रही। फिर दादी ने उसे गले लगा कहा
''हाँ बेटी ! तुम सही कह रही हो..हम तुम्हारे साथ हैं।''