पितृ पूजा(अंधविश्वास विषय पर )
पितृ पूजा(अंधविश्वास विषय पर )
घर से जब चाची का फोन आया कि तीन दिन बाद घर पर कोई पूजा है और तुम्हें आना है तो सुदीपा सोचने लगी की कौन सी पूजा होगी अभी कोई त्यौहार भी नहीं, खैर। उसने हॉस्टल मैट्रन को बता कर जाने की तैयारी कर ली। शाम को घर पहुँच कर देखा सभी व्यस्त हैं। ख़ुशी का माहौल कम दिखा।
पूछने पर चाची बोली। । ’’बिटिया ! यह कोई आम पूजा नहीं है ?’’
असल में चाचा की लम्बी बीमारी, बेटी रूमी की शादी में देरी, और इकलौते बेटे रवि का गलत संगति में पड़ कर भटकना। सभी परेशानियाँ एक साथ आ गयी हैं। इनको दूर करने के लिए पंडित जी ने जो उपाय बताया, वही करना है’’
‘’क्या उपाय है चाची ?’’
‘’उनके अनुसार कई पीढ़ी पहले घर के कोई सदस्य की आत्मा नाराज़ हैं। शायद उनकी आत्मा अतृप्त रह गयी। इसी कारण ये सब हो रहा है। अब पुनः उनका अंतिम संस्कार विधि पूर्वक हो श्राद्ध आदि हो तो आत्मा संतुष्ट हो जाएगी। ’’
अतः वही पितृ पूजा की तैयारी चल रही है।
सुदीपा सुन कर सन्न रह गयी
‘’चाची ! आप तो पढ़ी- लिखी हो, शिक्षिका रह चुकी हो, आप इन बातों को मानती हो ? कई पीढ़ी पहले जो भी रहा हो। मरने के बाद उसकी आत्मा का क्या अपनी ही संतानों का पीछा करती रहेगी ? वह दूसरी योनि में जन्म नहीं ले चुकी होगी?’’
‘’ एक बार सोच कर देखिए। चाचा की बीमारी का कारण उनका सेहत के प्रति लापरवाही, अधिक काम करना, बच्चों को उनकी हर ख्वाहिश पूरी कर उन्हें अधिक स्वच्छंद बना देना नहीं है ?’’
तभी अन्दर कमरे से दादी के कराहने की आवाज़ सुनाई दी। घर में सभी इतने व्यस्त थे कि उनके पास जाने, दो बोल बोलने का समय नहीं था। दयनीय हालत में थीं वे सुदीपा दौड़ती हुई दादी के पास गयी।
उसे अपने पुराने दिन याद आ गए जब सारा परिवार हँसी ख़ुशी साथ रहता था। दो वर्ष पूर्व माँ पापा के एक्सीडेंट में स्वर्गवास होने के बाद उसे हॉस्टल जाना पड़ा और दादी को चाचा -चाची के पास। ।
अचानक वर्तमान में लौटती सुदीपा दुःख और रोष में बोल उठी
‘’चाची! पितृ पूजा छोड़ जीवित दादी की पूजा नहीं। उचित देखभाल ही कर देती आप ? शायद भविष्य में एक आत्मा रुष्ट होने से बच सकती’’ ।
चाची थोड़ी विचार मग्न हो गयी फिर बोली ‘’बात तो सही है बिट्टो ! तूने मेरी आँखें खोल दी मैं यथार्थ को छोड़ अन्धविश्वास को कैसे अपनाने लगी?’’