अंधेरों के बीच
अंधेरों के बीच
सोनी अम्बर के साथ शादी के बाद दूसरे दिन ही पंद्रह दिन के लिए हनीमून पर गयी थी। अभी तो घर के सब सदस्यों के साथ ठीक से जान पहचान भी नहीं हो पाई थी। घर में ख़ुशी का माहौल था।
लौट आने पर वह बहुत खुश थी। सभी के लिए उपहार भी लाई थी। पर घर पहुँचते ही देखा उदासी सी छाई थी। पता चला सासू माँ की तबियत अचानक ख़राब हो गई थी,वह पास में जाकर मिली सास ने उसे गले लगाया और ख़ुशी ज़ाहिर की।
सोनी अचानक बहुत घबरा गयी। उसने अ म्बर को उन्हें तुरंत अस्पताल ले जाने को कहा। माँ मना करती रही पर वह नहीं मानी। अस्पताल पहुँच कर डॉक्टर ने उन्हें तुरंत भर्ती होने की सलाह दी। उनका शुगर लेवल और रक्तचाप बहुत बढ़ा हुआ था। परन्तु सासू माँ को घर की चिंता थी। नई बहू ने तो अभी घर पूरा देखा भी न था। उस पर सारी जिम्मेदारी आ जाएगी।
डॉक्टर ने खतरे का अंदेशा दिया तो मानना ही पड़ा। उसे अस्पताल में भर्ती कर वे घर पहुंचे। अम्बर और उसके पिता जी ने बहू की मदद की। माँ को पूरे हप्ते अस्पताल रहना पड़ा, सोनी ने घर और अस्पताल की दौड़ धूप जारी राखी।
घर में सभी उससे खुश थे। पर सोनी ने देखा और सुना ,जितने भी रिश्तेदार आते या पड़ोस के लोग वे सभी उसे अजीब नज़रों से घूरते। कुछ तो अम्बर ,उअसके पिता जी से कह भी गयी कि '' न जाने कैसे कदम पड़े हैं बहू के आते ही सासू की जान के लाले पड़ गए।''
कुछ औरतें तो अस्पताल में हाल चाल जानने जाती तो बीमार सास के कान भर आतीं।
सोनी अपना कर्तव्य तो कर रही थी पर मन आशंकाओं से घिरने लगा। उसकी आखों में निराशा का अँधेरा छा जाता। सासू माँ के आने पर न जाने क्या होगा ?
जिस दिन वे घर लौटने वाली थी डॉक्टर ने बहुत सी हिदायतें दी। कहा-
''बहुत किस्मत वाली हैं आप ,'अगर आपकी बहू समय पर न लाती तो आप कोमा में जा सकती थीं ''
सासू माँ ने उसे गले लगा कर ढेरों आशीर्वाद दिए, अब जितने भी लोग घर मिलने आते उनके कुछ कहने से पहले ही सासू माँ कहती।
'सोनी ने तो मुझे मरते मरते बचा लिया।अब मुझे कोई चिंता नहीं।''
यह सब सुनकर सोनी के मन से आशंकाओं का अंधकार छंट गया वह खुश रहने लगी। जो बीत गया बीत गया, वे बातें भी बीती रात के फूले कमल दल से उसके मन को सुरभित कर देती।