अनमोल खत
अनमोल खत
रोमा आज अकेली बैठी अपनी पुरानी यादें टटोल रही थी। उम्र के इस दौर में समय बिताना भी एक समस्या हो जाती है। उसके दोनों बेटे अलग अलग शहरों में अपनी घर गृहस्थी में रम गए हैं.कई कई सालों के बाद ही मिलना जुलना हो पाताहै। पति बीमार रहते हैं अतः घर से बहार भी कम ही निकल पाती है। सारा दिन यूँ ही गुज़र जाता है। उसके पति ने अब छोटे फ्लैट में शिफ्ट होने की सोच बनाई है। इतने बड़े घर का रख रखाव मुश्किल भी है और एकाकीपन भी है.फ्लैट में आस -पास लोग होंगें। इस विचार से इन दिनों ज़रुरत का सामान लेकर नयी गृहस्थीजमानी है। कभी बड़ा घर बनाया था कि सारा परिवार साथ हो.पर अब तो यह मुमकिन नहीं लगता। बहु बेटों पर वो बोझ नहीं बनना चाहते ,खास तौर पर बीमारी की अवस्था में।
इसीलिए घर का फर्नीचर ,किताबें आदि सभी सामान या तो बेचा जा रहा है या किसी ज़रूरतमंद कोदिया जा रहा है। इसी क्रम में आज पुरानी फाइल्सऔर अन्य कागजात देखते हुए उसे रश्मि रुमाल में लिपटा एक खत मिला। कुछ क्षण तो उसे याद नहीं आया। पर खोलते ही वह समय चक्र के बीते दौर में चली गयी।
उसे कॉलेज के वे दिन याद आ गए। जब पहली बार को एडजुकेशन वाले कॉलेज में दाखिला मिला। घरवालों की लाख हिदायतों के बावजूद न जाने कब और कैसे वो अपने सीनियर पल्लवको चाहने लगी थी। उसे वह अपना सपनों का राजकुमार समझने लगी। पर कभी कहने की हिम्मत ही नहीं जुटा पाई। कॉलेज की पढाई पूरी हो गयी। विदा होने से पहले उसने बहुत कोशिश कर एक पत्र लिख ही दिया पर दे कैसे ? उसने नहीं अपनाया तो?घरवालों को पता लगा तो तूफ़ान ही आ जायेगा। उनको नाराज़ भी नहीं कर सकती थी। लिखा तो था पर कभी भेजने की हिम्मत न कर सकी..मन की मन में ही रह गई।
इस बीच विवाह के प्रस्ताव आने लगे। चार वर्ष के बाद जिससे विवाह तय हुआ ,उसने देखने दिखाने से मनाकर दिया . पर
नाम सुन कर भ्रम हो जाता। वह सर झटक देती। विवाह मंडप में देख कर हैरान रह गयी। क्या सच्चा प्यार इसी को कहते हैं ?
ससुराल पहुँचने पर पल्लवके पूछने पर किइस ज़माने में भी बिना देखे मिले तुम कैसे तैयार हुई ? तो उसने वह खत उसे देते हुए सारी सच्चाई बताई।वह और भी आश्चर्य में था कि अगर मेरी जगह कोई और होता ?
फिर उस खत को रेशमी रुमाल में बाँध रख दिया था। जिसे भेजना था वही उसे मिल गया था ''सपनों का राज कुमार।''
रोमा ने कहा ''तुम्हारे नाम का खत सदा मेरे पास रहता।