वन देवी का वरदान
वन देवी का वरदान
डेढ़ कुंतल के गोलमटोल झम्मन लाल को देख कर बाबा रंग रंगीला सुलग उठते थे।
ये मोटा भैंसा जब से आश्रम में आया है तीनों टाइम चार-पाँच लोगों के बराबर खा कर पूरे दिन चारपाई तोड़ता है, किस घड़ी में इसे मोटा सेठ समझ कर आश्रम आने के न्योता दे बैठा, लेकिन अब इस मूर्ख की हरकतें बढ़ती जा रही है अब तो यह मेरी चेलियों पर भी नजरे गड़ाने लगा है, सोच कर बाबा अपनी गंजी खोपड़ी खुजाने लगा।
बहुत सोचने के बाद बाबा ने झम्मन लाल से छुटकारा पाने का एक उपाय सोचा और बोला, "बेटे झम्मन लाल......."
"जी बाबा।" कहते हुए झम्मन लाल ने चारपाई पर पड़े-पड़े ही अंगड़ाई तोड़ी।
"इधर आ जा बेटा आज मैं तुझे कुछ ज्ञान देना चाहता हूँ जिससे तेरी जिंदगी की हर चाह पूरी हो जाएगी।"
"ऐसी क्या बात है बाबा ऐसे ही बता दो......." झम्मन लाल चारपाई से उठते हुए बोला।
"बेटे जा आज के शुभ मुहूर्त में झाड़ू दास की टपरी पर जाकर तपस्या कर अगर देवी माँ प्रसन्न हो गई तो तू उनसे संजीवनी बूटी वरदान में मांग लेना......" रंग रंगीला बाबा गंभीर आवाज में बोले।
"क्या बाबा पंच तंत्र की कहानी में उलझा रहे हो....... आगे यही तो चाहोगे आप की वो संजीवनी बूटी मैं पंचतंत्र के मूर्ख ब्राह्मण की तरह किसी शेर पर ट्राई करूँ और शेर मुझे खा जाए......." झम्मन लाल थोड़ी नाराजगी से बोला।
"बकवास मत कर मूर्ख जा तत्काल जंगल में जाकर तपस्या कर और देवी माँ को प्रसन्न कर उनसे जो चाहे वरदान माँग लेना लेकिन जो भी मिले उसमें से मेरी गुरु दक्षिणा निकाल कर यहाँ दे जाना।" रंग रंगीला बाबा क्रोध से भरी आवाज में बोले।
बाबा की आवाज में क्रोध देखकर झम्मन लाल थोड़ा घबरा गया और बोला, "ठीक है बाबा, जो मिलेगा आधा तुम्हारा।"
झाड़ू दास की टपरी जंगल में ऐसी जगह थी जहाँ एक तालाब था और उसके किनारे झरबेरी के पेड़ लगे थे। एक पेड़ से उसने बेर तोड़े और पेट भर खाये और तालाब से पानी पीकर झम्मन लाल एक घनी छाँव वाले पेड़ के नीचे लेट कर सो गया।
झम्मन लाल को यह जगह जन्नत के समान थी वो तीनों टाइम पेट भरकर बेर खाता और तसल्ली की नींद लेता। एक हफ्ते में उसने आधा से ज्यादा पेड़ो के बेर तोड़ कर खा लिए तो उन पेड़ो के बेरों पर जीवित रहने वाले पशु पक्षी चिंतित हो उठे। परेशान होकर उन्होंने वन देवी का आवाहन कर एक टांग पर खड़े होकर तपस्या शुरू कर दी।
एक हफ्ते बाद कहीं अन्यत्र व्यस्त वन देवी ने पशु पक्षियों की तपस्या पर ध्यान देते हुए उनके समक्ष प्रकट हुई और उनकी समस्या पूछी। पशु पक्षियों ने जब अपनी व्यथा सुनाई तो क्रोधित वन देवी ने सोते हुए झम्मन लाल को लात मरकर उठाया और पूछा, "भुक्खड़ तू इस वन में क्या करने आया है जो इन पशु पक्षियों को इतनी घोर तपस्या करनी पड़ी?"
"देवी माँ मैं तो यहाँ इस वन में आपकी तपस्या करने आया हूँ आप से वरदान माँगने आया हूँ।" झम्मन लाल हाथ जोड़ कर बोला।
पशु पक्षियों की परेशानी देख कर देवी उससे छुटकारा पाने के लिए बोली, "लगता है तुझे उस मूर्ख ब्राह्मण के समान ही संजीवनी बूटी चाहिए ताकि तू भी किसी प्राणी को जीवित कर उसका शिकार बन सके, ये ले संजीवनी बूटी और यहाँ से दफा हो जा।"
संजीवनी बूटी देखते ही झम्मन लाल कांप उठा और रोते हुए बोला, "माफ़ कर दो देवी माँ मैं मरना नहीं चाहता, मुझे नहीं चाहिए ये बूटी, मैं अपने घर जा रहा हूँ।"
"मूर्ख मेरे दिए श्राप या वरदान को तू ठुकरा नहीं सकता........मेरा वरदान ठुकरा कर तूने मेरा अपमान किया है, तू अब भस्म होने के लिए तैयार हो जा।" देवी क्रोध में बोली।
"माँ मेरी इतनी औकात नहीं जो मैं तेरा अपमान कर सकूँ, लेकिन फिर भी माफ़ कर दो मुझे।" झम्मन लाल दहाड़े मार कर रोते हुए बोला।
झम्मन लाल की चीख पुकार से वन देवी का मन व्यथित हुआ और बोली, "मूर्ख ये संजीवनी बूटी तो वापिस नहीं जाएगी लेकिन तुझे इसका प्रयोग करके दो खूंखार प्राणियों को जीवित तो करना ही होगा।"
"और वो प्राणी मुझे खा जाएंगे........" झम्मन लाल चीख कर रो पड़ा।
"रो मत मूर्ख, तुझे एक साल तक उन प्राणियों की भूख मिटानी होगी, मेहनत करके उनका पेट भरना होगा, यदि वो भूखे रह गए तो वो तुझे खा जाएंगे........जाओ रे पशु पक्षियों अभी थोड़ी देर पहले मरे दो भयंकर प्राणी उठा लाओ।"
दस मिनट बाद पशु पक्षी एक भयानक भालू और एक मोटे तगड़े नरभक्षी आदमी को उठा लाए जो थोड़ी देर पहले एक दूसरे से लड़ते हुए मर गए थे।
"चल संजीवनी बूटी से जिन्दा कर इन्हें और एक साल तक पेट भर इनका......" कहकर देवी अंतर्ध्यान होने को हुई थी झम्मन लाल तड़फ कर बोला, "माँ मैं यहाँ अपनी मर्जी से नहीं आया था यहाँ मुझे रंग रंगीला बाबा ने भेजा है और मुझसे वायदा लिया है कि जो भी देवी माँ देगी उसका आधा वो लेगा, माँ इस इनाम में कुछ हिस्सा उसका भी होना चाहिए।"
"हूँ, सही बोला तू, वो चेलिया पालने वाला, विदेशी कार में चलने वाला और ऐ सी आश्रम में रहने वाला तो तुझ से ज्यादा इनाम का हक़दार है, चलो उसे भी इनाम देते है।" कहते हुए देवी माँ ने अपने हाथ से इशारा किया और अगले ही पल रंग रंगीला बाबा एक खूबसूरत चेली से अपने बदन की मालिश कराता धड़ से जमीन पर गिरा। उसे देख कर देवी माँ कुपित हो उठी और गुस्से से बोली, "दुष्ट, मक्कार अभी के अभी इस नरभक्षी आदमी और भालू को जिन्दा करके अपने आश्रम ले जा पहले एक साल तू, ये सुंदरी और झम्मन लाल इनकी सेवा करोगे, दूसरे साल तू और ये सुंदरी इनकी सेवा करोगे और तीसरे साल तू अकेला इन दोनों का पेट भरेगा, जरा भी चूँ चपट की तो नरभक्षियों और भालुओं के ढेर लगा दूंगी तेरे आश्रम में..... चलो तीनों उठाओ संजीवनी बूटी और इन्हें जिन्दा करो।" वन देवी तीनों पर क्रोधित होते हुए बोली।
एक साल बाद
रंग रंगीला गुरु का आश्रम उजड़ा हुआ है, एक कोने में गुरु की चेली एक बड़े से कड़ाह में कोई पकवान बना रही है, गुरु रंग रंगीला बैठा हुआ सब्जियों का ढेर काट रहा है। एक मोटा तगड़ा भालू आश्रम में शान से घूम रहा है और एक उसके जितना ही तगड़ा नरभक्षी आदमी गुरु और उसकी चेली को प्यासी निगाहों से देख रहा है। तभी झम्मन लाल अपना बैग लेकर आश्रम के एक कमरे से निकला और बोला, "अच्छा गुरु तुम्हारे चक्कर में मैं पूरे एक साल से इस मोटे भालू और भयंकर नरभक्षी जंगली आदमी की सेवा कर रहा हूँ, अब मैं चलता हूँ अब तुम जानो और तुम्हारी चेली, अब इससे अपनी भी सेवा कराओ और उन दोनों की भी।"
"भाग जा बदमाश तेरे चक्कर में मेरा आश्रम उजाड़ गया और ये दो भुक्कड़ मेरे पल्ले बंध गए......कसम है वन देवी के इन दो भुक्क्ड़ो की अब इस आश्रम में गुलफाम नगर का कोई प्राणी न घुसने दूँगा।" कहकर गुरु रंग रंगीला सब्जी का ढेर काटने में लग गया।