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Charumati Ramdas

Drama

2.4  

Charumati Ramdas

Drama

गाँव - 3.7

गाँव - 3.7

8 mins
424


दुर्नोव्का - हिमाच्छादित, पूरी दुनिया से इतना दूर, स्तेपी की सर्दियों की इस दयनीय शाम को अचानक उसे डरा गया। बेशक ! जल रहा सिर भारी हो गया है, धुँधला गया है, वह अब सोएगा और फिर कभी नहीं उठेगा।बर्फ़ पर फूस के जूतों में चर्र-मर्र करते, हाथों में बाल्टी लिए दुल्हन ड्योढ़ी के पास आई। “बीमार हूँ मैं, दून्यूश्का !” कुज़्मा ने कहा, उससे दो प्यारे बोल सुनने की आशा से।

मगर दुल्हन ने उदासीनता और रूखेपन से जवाब दिया :

“क्या समोवार रखना है।”

और इतना भी नहीं पूछा कि कैसे बीमार हो गया है। इवानूश्का के बारे में भी कुछ नहीं पूछा।कुज़्मा अपने अँधेरे कमरे में लौट आया और पूरी तरह काँपते हुए,डर के मारे कल्पना करते हुए कि अब वह ज़रूरत के वख़्त कहाँ और कैसे जाए, दीवान पर लेट गया।और शामें रातों में बदल गईं, रातें दिनों में, उनकी गिनती भी याद न रही।

पहली रात को, करीब तीन बजे, वह जाग गया और उसने दीवार पर मुट्ठी से दस्तक दी, पानी माँगने के लिए : सपने में प्यास और यह ख़याल उसे सता रहे थे कि स्नेगिर को बाहर फेंक दिया या नहीं। मगर दस्तक का किसी ने जवाब नहीं दिया। दुल्हन नौकरों वाले कमरे में सोने के लिए चली गई थी। कुज़्मा को याद आ गया, यह महसूस हुआ कि वह बहुत बीमार है, उसे ऐसी ग्लानि ने घेर लिया जैसे किसी मकबरे में उसकी आँख खुल गई हो। मतलब, सामने वाला, बर्फ, फूस और घोड़े की ज़ीनो से गन्धाता कमरा खाली था। मतलब, वह बीमार और असहाय है, निपट अकेला है, इस अँधेरे, बर्फीले घर में, जहाँ सर्दियों की अन्तहीन रात की मृतप्राय ख़ामोशी में भूरी खिड़कियाँ टिमटिमा रही हैं और एक अनावश्यक पिंजरा लटक रहा है।

“या ख़ुदा, मेरी हिफ़ाज़त कर, मुझ पर मेहेरबानी कर, ख़ुदा,बस थोड़ी-सी मदद कर देे,” वह फ़ुसफ़ुसाया और काँपते हाथों से अपनी जेबें टटोलने लगा।

वह दियासलाई जलाना चाह रहा, मगर उसकी फुसफुसाहट बुख़ार से तप रही थी, जल रहे सिर में शोर और टनटनाहट हो रही थी, पैर, मानों बर्फ हो गए थे।क्लाशा, उसकी अपनी प्यारी बेटी, उसने दरवाज़ा फ़टाक् से खोला, उसका सिर तकिए पर रखा, दीवान के साथ कुर्सी पर बैठ गई।वह बड़े आदमियों जैसे कपड़े पहने हुए थी : फ़र का कोट, टोपी और हाथमोजे सफ़ेद फ़र के। उसके हाथों से सेंट की ख़ुशबू आ रही थ, आँखें चमक रही थीं, गाल बर्फ के कारण लाल हो गए थे।आह, सब कुछ कितना अच्छा हो गया !” कोई फ़ुसफ़ुसाया, मगर बुरी बात यह थी कि क्लाशा ने न जाने क्यों बत्ती नहीं जलाई, कि वह उसके पास नहीं, बल्कि इवानूश्का की अन्त्ययात्रा के लिए आई थी। वह अचानक अपनी गहरी आवाज़ में गिटार के साथ गाने लगी :

हाज़ बुलात, बहादुर तू,

झोंपड़ी तेरी बदहाल।”

मरणान्तक ग्लानि मे, जो बीमारी के आरंभ में उसकी आत्मा को ज़हरीला किए जा रही थी, कुज़्मा स्नेगिर,क्लाशा, वरोनेझ के नाम बड़बड़ाता रहा, मगर इस प्रलाप में भी यह ख़याल उसका पीछा नहीं छोड़ रहा था कि वह किसी से यह कह रहा था कि मेहेरबानी करके उसे कलोद्येज़ी में न दफ़नाया जाए। मगर, या ख़ुदा, दुर्नोव्का में रहम की उम्मीद करना पागलपन नहीं तो और क्या है ! एक बार सुबह उसे होश आया, जब भट्ठी गरमाई जा रही थी, कोशेल तथा दुल्हन की सीधी-सादी, शान्त आवाज़ें उसे इतनी बेरहम, पराई और अजीब लगीं, जैसी बेरहम, पराई और अजीब बीमारों को तन्दुरुस्त आदमियों की लगती हैं। वह चीख़ना चाहता था, समोवार रखने के लिए कहना चाहता था। मगर उसे मानो काठ मार गया : कोशेल की चिड़चिड़ी फ़ुसफ़ुसाहट सुनाई दी, जो, बेशक, उसी के, मरीज़ के बारे में बात कर रहा था, और दुल्हन का रुक-रुककर दिया गया जवाब :

“आह, उसकी बात छोड़। मर जाएग, दफ़ना देंगे।”

फ़िर ढलती दोपहर का सूरज अकासिया की नंगी टहनियों से खिड़की में झाँकने लगा। तम्बाकू का नीला धुँआ तैर रहा था। पलंग के पास बूढ़ा कम्पाउण्डर बैठा था, जिससे दवाइयों और ताज़ी बर्फ की ख़ुशबू आ रही थीअपनी मूँछों से बर्फ के महीन टुकड़े अलग कर रहा था। मेज़ पर समोवार उबल रहा था और तीखन इल्यिच, ऊँचा, सफ़ेद बालों वाला, कठोर – मेज़ के पास खड़ा होकर ख़ुशबू वाली चाय बना रहा था। कम्पाउण्डर अपनी गायों के बारे, आटे और मक्खन की कीमत के बारे में बात कर रहा था और तीखन इल्यिच बता रहा था कि नस्तास्या पित्रोव्ना को कितनी धूमधाम से दफ़नाया गया था, कि वह बहुत ख़ुश है क्योंकि आख़िरकार दुर्नोव्का के लिए एक अच्छा ख़रीदार मिल गया है। कुज़्मा समझ गया कि तीखन इल्यिच अभी-अभी शहर से आया है, कि वहाँ नस्तास्या पित्रोव्ना स्टेशन पर जाते हुए, रास्ते में अचानक मर गई, वह समझ गया कि उसे दफ़नाने में तीखन इल्यिच ने काफ़ी खर्च किया था और वह दुर्नोव्का के लिए पहले ही पेशगी ले चुका है। और वह पूरी तरह उदासीन रहा।

एक बार बड़ी देर से उठने के बाद, सिर्फ कमज़ोरी महसूस करते हुए वह समोवार के पास बैठा था। दिन बादलों वाला, गर्म था, काफ़ी सारी ताज़ा बर्फ गिर चुकी थी। उस पर फूस के जूतों के छोटे-छोटे सलीबों जैसे निशान बनाते हुए खिड़की के नीचे से सेरी गुज़रा। उसके चारों ओर उसके कोट के जीर्ण-शीर्ण पल्लों को सूँघते हुए कुत्ते दौड़ रहे थे। वह लगाम पकड़कर ऊँचे, गन्दे कुमैत घोड़े को घसीटता हुआ ले जा रहा थ, जो बुढ़ापे और दुबलेपन के कारण बड़ा भौंडा लग रहा था। ज़ीन के कारण उसके कंधों के बाल उड़ चुके, पीठ पर मानो दीमक लगी थी, पूँछ पतली, गन्दी थी। वह तीन टाँगों पर चल रहा था, चौथी, घुटने के नीचे टूट चुकी टाँग को घसीट रहा था। कुज़्मा को याद आया कि दो दिन पहले तीखन इल्यिच आया था और उसने कहा था कि उसने सेरी से कुत्तों को दावत देने के लिए, मतलब, एक पुराने घोड़े को ढूँढ़कर हलाल करने के लिए कहा, कि सेरी पहले भी यह काम कर चुका है। मरे हुए या नाकाम हो चुके घोड़े को उसकी खाल के लिए ख़रीद चुका है। सेरी के साथ, तीखन इल्यिच बता रहा था, हाल ही में एक दुर्घटना हो गई थी, किसी घोड़ी को मारने की तैयारी करते हुए, सेरी उसकी पिछली टाँगें बाँधना भूल गया था, सिर्फ सिर को खींचकर एक ओर बाँध दिया और जैसे ही उसने सलीब का निशान बनाकर उसकी हँसुली पर पतले चाकू से वार किया, घोड़ी उछली और उसने हिनहिनाते हुए दर्द और गुस्से से पीले दाँत बाहर निकाले, बर्फ पर काले ख़ून की धार बहाते अपने हत्यारे पर लपकी और बड़ी देर तक आदमी की तरह उसके पीछे भागती रही, और वह उसे पकड़ ही लेती अगर बर्फ गहरी न होती’ … कुज़्मा को इस घटना से इतना क्षोभ हुआ कि अब, खिड़की से बाहर देखने पर, उसे फ़िर से अपने पैर मन-मन के लगने लगे। वह गर्म चाय के घूँट पीने लगा और कुछ सँभला। कुछ देर तक सिगरेट पी, बैठा रहा।आख़िर वह उठा, बाहर के कमरे में गया और बर्फ़ पिघलने के कारण साफ़ हो चुके खिड़की के शीशे से नंंगे, विरले बगीचे को देखने लगा : बगीच में, बर्फ की सफ़ेद चादर पर कुचले सिर वाला, लम्बी गर्दन, चौड़े पुट्ठों वाला लाल कंकाल पड़ा, कुत्ते झुककर और पँजे माँस में गड़ाए, लालच से आँतें खींचकर निकाल रहे थे, उन्हें फ़ैला रहे थे; दो बूढ़े काले-भूरे कौए एक किनारे से फ़ुदकते हुए सिर के पास आतेऔर जब कुत्ते गुर्राते हुए उन पर लपकते तो उड़ जात, फ़िर से साफ़-पवित्र बर्फ़ पर उतर आते। “इवानूश्का, सेरी, कौए।” कुज़्मा ने सोचा। "ऐ, ख़ुदा, मेहेरबानी कर, हिफ़ाज़त कर, मुझे यहाँ से ले चल !”

नासाज़ तबियत ने और भी कई दिनों तक कुज़्मा का साथ न छोड़ा। बसन्त का ख़याल उसे ख़ुशी और ग़म दे जाता।जितनी जल्दी हो सके दुर्नोव्का से भाग जाने का मन होता था। वह जानता था कि अभी सर्दियों का अन्त नज़र नहीं आ रहा, मगर बर्फ पिघलनी शुरू हो गई थी। फ़रवरी का पहला हफ़्ता अँधेरा, कोहरे से भरा था। कोहरे ने खेतों को ढाँक दिया था और वह बर्फ खाने लगा था। गाँव काला नज़र आने लगा, गन्दे बर्फ़ के ढेरों के बीच पानी दिखाई दे रहा था। पुलिस का अफ़सर एक बार घोड़े की लीद से सनी गाँव की सड़क से गुज़रा। मुर्गे बाँग दे रहे रोशनदान से बसन्त की गुदगुदाने वाली नमी भीतर आ रही थी।ज़िन्दा रहने को अभी भी दिल चाह रहा था – ज़िन्दा रहने को, बसन्त का इंतज़ार करने को, शहर में जाने को, जीने को, भाग्य के सामने घुटने टेकते हुए, और जो भी मिले वह काम करने को, सिर्फ रोटी के एक टुकड़े के बदले और बेशक,भाई के पास; जैसा कि वह है। भाई ने उससे, बीमार से, कहा था कि आकर वर्गोल में बस जाए।

“मैं कहाँ भगाऊँगा तुझे !” उसने कुछ सोचकर कहा था। “मैं तो घर-बार के साथ-साथ दुकान भी पहली मार्च से छोड़ रहा हूँ। जाएँगे, भाई मेरे, इन जल्लादों से दूर, बहुत दूर !”

और सच ही था : जल्लाद ! अद्नाद्वोर्का आई थी और उसने सेरी के साथ हाल ही में हुई घटना सुनाई। देनिस्का तूला से लौट आया था और वह निठल्ला घूमता रहता, यह शेख़ी मारते हुए कि वह शादी करना चाहता है, कि उसके पास पैसे हैं और वह जल्दी ही ऐशो-आराम की ज़िन्दगी बिताएगा। गाँव में पहले तो सबने इसे फ़ालतू की बकवास समझा, फ़िर देनिस्का के इशारों से उन्होंने असली बात भाँप ही ली और उस पर यकीन करने लगे। सेरी ने भी यकीन कर लिया और बेटे की ख़ुशामद करने लगा। मगर घोड़े को मारने के बाद तीखन इल्यिच से एक रूबल पाकर और घोड़े की खाल को पचास कोपेक में बेचकर वह इतराने लगा और उसका दिमाग़ आसमान पर चढ़ गया : वह दो दिनों तक पीता रहा। उसने अपना पाइप गुमा दिया और वह भट्ठी पर सोने के लिए चढ़ गया। सिर फ़टा जा रहा था, कश लगाने के लिए कुछ था ही नहीं। सिगरेट बनाने के लिए वह छत खुरचने लगा, जिस पर देनिस्का ने अख़बार और तरह-तरह की तस्वीरें चिपकाई थीं। वह, बेशक, चुपके से खुरचता था, मगर एक बार देनिस्का ने उसे रंगे हाथों पकड़ लिया। पकड़ लिया और लगा गरजने। नशे में घूमते हुए सेरी भी दहाड़ने लगा और देनिस्का ने उसे भट्ठी से नीचे घसीट लिया और तब तक बेदम मारता रहाा, जब तक पड़ोसी दौड़कर न आ गए। मगर कुज़्मा ने सोचा, तीखन इल्यिच भी जल्लाद ही तो है, जो किसी सिरफ़िरे जैसे अड़ियलपन से दुल्हन की शादी इन्हीं में से एक जल्लाद के साथ करने पर ज़ोर दे रहा था।


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