वक्त
वक्त
नन्हे साहिल के दिल औ दिमाग में काली सफेद फिल्म की तरह सुख दुख के तानें बानों सी बीती हुई जिन्दगी के पल घूम रहे थे। उसके हाथ में एक घड़ी थी जो साढ़े तीन बजा रही थी। समय गुज़रता जा रहा था। आज उसे विद्यालय में यह घड़ी सुबह प्रार्थना से पहले लगानी थी पर घर में माँ की तबियत खराब होने के कारण पिता को घड़ी मरम्मत करनें मे देर हो गयी।
इस वजह से वह जब विद्यालय पँहुचा वहाँ का सन्नाटा देख कर वह समझा कि यहाँ छुट्टी हो गयी है। वहाँ खड़े खड़े उसके विचारो के घोड़े दौड़ लगानें लगे। वह सोचने लगा काश वह भी यहाँ पढ़ पाता। कितनी तमन्ना थी उसकी पढाई करने की पर माँ की बीमारी व घर की माली हालत उसे इस दिशा में सोचने की भी इजाज़त नहीं देती।
एक वक्त ऐसा भी था कि वह बढ़िया विद्यालय में पढ़ रहा था पर वक्त के मिज़ाज के बदलते ही वो लोग अर्श से फ़र्श पर आ गये। अब तो बस पिता के हाथ का हुनर ही है जिसकी वजह से आज सबके मुँह मे दो निवाले पँहुच रहे हैं। यह सोचते हुये उसकी आँखों से दो बूँद आँसू ढुलक पड़े।
तभी विद्यालय का चौकीदार दौड़ता हुआ आया और उसने उसे बताया कि आज शहीदों की शहादत के सम्मान और आतंकवादियों की कायराना हरकत के विरोध में विद्यालय बन्द है। तुम आओ और घड़ी लगा जाओ जिससे कल फिर समय से विद्यालय खुले और सबको सही समय पता चल सके और हाँ हमने तुम्हारे बारे में प्रधानाचार्य महोदय जी को बताया था वो अपनें विद्यालय में तुम्हारा नाम लिखने के साथ ही तुमको पढ़ाई के लिये छात्रवृत्ति देने को तैयार हो गये हैं। अब अपने इन आँसुओं को पोंछ लो और चेहरे पर खुशी की मुस्कान ले आओ। किसी शायर की ये पंक्तियाँ हमेशा याद रखो
“वक्त है फूलों की सेज वक्त है काँटों का ताज,
कौन जाने किस वक्त वक्त का बदले मिज़ाज।“