अम्मा का संदूक
अम्मा का संदूक
कान में सुनने की मशीन को फिट करते हुए अम्मा अपनी तीनों बहुओं पर जोर से चिल्लाई, "अरी नाश पिटियों, अभी तक बिस्तर पकड़ कर पड़ी हो, सूरज चढ़ आया, "तीन -तीन बहुरी हुई हमार, लेकिन शरीर मा जंक लगा के लाई हैं मायकन से। अम्मा की सुबह-सुबह की कर्कश वाणी, मुर्गे की बाँग से भी खतरनाक थी। कानों में पड़ते ही क्या बेटे क्या बहू सब हाजिरी देने तलब हो जाते।
"ये अम्मा भी न, पाँच बजे कूड़ कूड़ शुरू कर देती है, न तो खुद चैन से सोती है न दूसरों को सोने देती है।
सारी बहुएँ सुबह-सुबह ऐसे ही बड़बड़ाती हुई कमरे से बाहर आतीं। बे मन से ही सही लेकिन रोज सारी बहुएँ सबसे पहले सर में पल्लू रख अम्मा के कमरे में उनके पैर छूने जाती और अम्मा अपनी खटिया में चौधराइन की तरह बैठी हथपंखा झल रही होती।
अम्मा का रौब था ही ऐसा, बेटे बहू उनके सामने मुँह नहीं खोल पाते। कमरे से बाहर निलकते, सब चोर नजर से अम्मा की खटिया के नीचे रहे संदूक को झाँक कर जाते। उस पर लगा बड़ा सा पीतल का ताला, संदूक को अम्मा ने मोटी लोहे ही चेन से लपेट कर खटिया के पाये से कस रखा था और ताले की चाबी में डोरी डालकर अपने गले में पहन रखी थी और जब अम्मा कहीं बाहर भी जाती तो कमरे को भी ताला लगा जाती ..... इतनी सुरक्षा उस संदूक की, बहुओं और बेटों में कोतुहल पैदा करने के लिए काफी थी।
"ये जी, सुनते हो ...अम्मा ने एक दिन बताया था, उस जमाने में उनके मायके से उनको भर -भर के सोना, चाँदी के सिक्के ताँबे के बर्तन मिले थे लेकिन अम्मा ने कभी दिखाया नहीं।" मंझरी बहू ने अपने पति से बोला।
"रखा होगा वहीं संदूक में, तभी तो इतनी पहरेदारी में रखती है संदूक को।"
"काश अम्मा उसमे से थोड़ा हमको दे देती तो कहीं जमीन लेके अपना घर बनवा लेते।"
"तो करो न अम्मा की सेवा, तुम पीछे न रह जाओ।
"बड़ी भौजी को देखो, कैसे उनके आस -पास मंडराती रहती हैं और पटाने में छोटी बहू भी कम न है।"
अपने-अपने कमरों की चारदीवारी में बेटों-बहुओं की यही साजिश चलती कि कौन अम्मा को कितना खुश कर सके। सुबह 5 बजे उठने के साथ ही बहुरियों का अम्मा के कमरे जाकर अम्मा को रिझाना शुरू हो जाता ।
"अम्मा , आज हमारी लाई साड़ी पहनो न बहुत खूब जँचे आप पर।"
"अरी अम्मा, लाओ पैरों में तेल मालिश कर दें, दुख रहे होंगे। आपकी सेवा में जिंदगी गुजार दे हम तो"
"बस अम्मा आप तो हुकूम चलाया करो, सब आपके सामने ला दें।"
अम्मा की इतनी सेवा, और घूंघट की आड़ से नजर संदूक पर।
कमरे से बाहर आते ही सबका आपस में मुँह बनाकर अम्मा को कोसना, "कब मरेगी ये बुढ़िया, दुखी करके रख दिया। एक बार संदूक का माल बाँट देती तो करते इसकी सेवा अच्छे से। जब देखो हुकूम चलाती रहती है सुबह से शाम तक कमर तोड़ मेहनत कराती है। चैन से दो पल आराम भी न करने देती।"
सच कह रही हो जीजी, ये बुढ़िया हिसाब कर देती तो हम भी अलग मकान बनवा लेते, वरना सपना ही देखते रह जाएंगे, नए घर का।
"अरी क्या ख़ुसूर फुसुर कर रहीं, काम न है का घर में, गप्पे मरवा लो इनसे ....काम की न काज की दुश्मन अनाज की।"
अम्मा की बूढ़ी नजऱ हमेशा बहुओं की गतिविधियों में लगी रहती।
बस अम्मा, कर रहे काम, मुँह बनाती सब बहुएँ काम पर लग जाती और अम्मा बेड़े में नीम के पेड़ तले खटिया डाल सबको देखती रहती।
अम्मा को पटाने में बेटे भी कम न थे।
"लो अम्मा, जलेबी लाएं हैं बहुत पसंद है न तुमको, और अम्मा भी बिना रुके, खोकले मुँह से सब गटक जाती।
वो अम्मा कुछ पैसों की जरूरत थी।
"हाँ हाँ क्यों नहीं, मेहनत करो भगवान सब देगा।" बोलकर अम्मा सो जाती और बेटे अपना सा मुँह लेकर लौट आते।
पूरे गाँव में अम्मा प्रसिद्ध थीं कि उनके बेटे-बहू उनकी कितनी सेवा सम्मान करते हैं लेकिन अनुभवी अम्मा से कुछ छुपा न था। उनकी पारखी नजर सबके चेहरे पढ़ लेती थी।
दिन, महीने और साल बीते, बूढा शरीर कब तक टीका रहता। आख़िर एक दिन अम्मा का शरीर भी पंच तत्व में विलीन हो गया। पीछे छोड़ गई अपना अनमोल और रहस्यमयी संदूक।
बेटे-बहुओ में अम्मा के जाने के दुख का तो पता नहीं, लेकिन संदूक के रहस्य को जानने का उत्साह अधिक था।
तेरहवीं के बाद तीनों बेटे बहुओं ने संदूक को खोलने का फैसला किया।
"देखो भैया, अंदर जो भी हो, तीन बराबर हिस्से होने चाहिए। सब ने एक साथ हामी भरी।
ताला तोड़ने के लिए हथौड़ा लाया गया। बहुओं की आँखों में गजब की चमक थी।
दो तीन मार के बाद ताला टूट गया। सबकी नजरें संदूक पर टिकी थी। जैसे ही संदूक खुला, अंदर का नजारा देखकर सबकी आँखें फटी की फटी रह गई।
थोड़ी देर कमरे में खामोशी पसर गई। सब एक-दूसरे की तरफ देखते तो कभी संदूक के अंदर।
अंदर अम्मा के पति का छाता वो भी फटा हुआ, एक जोड़ी चप्पल जिसका एक फीता धागे से बंधा हुआ था, और एक दो पुरानी धोतियाँ। बस यही था, अम्मा का खजाना।
तीनों बेटे-बहू घंटों बेड़े में, अपना-अपना माथा पकड़े शब्द शून्य बैठे रहे और अम्मा इस संदूक के सहारे पूरे जीवन बहू-बेटों के साथ सम्मान की जिंदगी जी के स्वर्ग सिधार गई।