वाह शास्त्री जी
वाह शास्त्री जी
वाह शास्त्री जी, वाह !
मेरे स्कूल के मित्र जिन्हें हम सब शास्त्री जी कह कर बुलाते थे, एन.सी.सी. कैम्प में हमारे साथ थे। कैम्प हमारे शहर में ही था। एक दिन सभी कैडेट्स को दो घंटे घर जाने की अनुमति मिली परन्तु मैं नहीं गया। शास्त्री मेरे घर के पास रहता था इसलिए उसे मेरे घर से कुछ सामान लाने को कहा। घर से वापस कैम्प में आने पर शास्त्री ने सभी मित्रों को बेसन की बर्फियाँ बाँटना शुरू कर दिया। उसने मुझे भी दो बर्फी दी और सभी मित्रों के सामने मुझसे कहा कि ये बर्फियाँ मैं तुम्हारे घर से लाया हूँ, तुम्हारी मम्मी ने तुम्हारे लिये भेजी हैं। शास्त्री के यह बताने पर सभी मित्रों ने मेरी और मेरी मम्मी की प्रशंसा की। फिर भी यह सब सुन कर मन ही मन बहुत गुस्सा आया कि शास्त्री ने बिना मुझसे पूछे मेरे घर से लाई बर्फियाँ कैसे बाँट दी ? परन्तु शास्त्री अच्छा मित्र था इसलिए उसे कुछ नहीं कह सका। कैम्प खत्म होने पर घर आकर सारी बात बताई और आगे से कोई भी चीज भेजने से मना किया।
यह सुन कर सभी घरवाले मुझ पर हँस पड़े और बताया हमनें कोई बर्फी-वर्फी नहीं भेजी थी। इतना सुनकर मुझे बहुत हैरानी हुई कि ऐसा कैसे हो सकता है ? शास्त्री ने तो बताया था कि वो मेरे घर से बर्फियाँ लेकर आया था परन्तु घर वाले मना कर रहे हैं। यह सब सोच कर मन ही मन आत्मग्लानि महसूस हुई और शास्त्री के प्रति सम्मान का भाव बढ़ा। इसके बाद मैं यह बात मेरे मित्र शास्त्री को भी नहीं बता पाया। यही तो सोच का फर्क है। जीवन में ऐसी घटनाओं के बाद हम सोचने पर मजबूर हो जाते हैं कि क्या मैं ऐसा हूँ? नहीं, मैं ऐसा तो नहीं हूँ। फिर विचारों और सोच में इतना फर्क कहाँ से आया? इन सब बातों पर गहनता से सोचना जरूरी है। तभी हम जीवन में वैचारिक बदलाव ला सकेंगे। सचमुच इस घटना ने जीवन में बहुत बड़ी सीख दी। आज जब भी इस बात को सोचता हूँ मन ही मन अपने पर हँसी भी आती है और बोलने को मन करता है, वाह शास्त्री जी, वाह !