चले आओ
चले आओ
गली के मोड़ पर ही तुम ठहर गए
मेरी खुश्बू की तलाश में सदियों से भटकते
कुछ कदमों की दूरी तय कर लो ना..!
मिलूँगी तपस्वी सी,
एक धुनी जलती है मेरे आँगन के कोने में,
मखमली सुगंधित धुँआ बहता है,
ना रहता नहीं कोई यहाँ
बस एक आवाज़ बसती है तुम्हें पुकारती
पता मिटा दिया है मैंने
जिस नाम को मिटे ही सदियाँ बीती..!
मेरी रूह बसती है एक इंतज़ार लिए,
सुनती रहती है हर आहट बेचैन सी
पहचानती है तुम्हारे कदमों को,
चले आओ इस धीमी सी बजती
साँसों की सरगम सा
जो सुनाई दे रहा है उस दिशा में,
तुम्हारे बहुत करीब हूँ...!
देखो आज अद्दल वही नज़ारा शमा बाँधे खड़ा है
अमलतास के चार फूल
पीपल के पत्ते पर खिलखिला रहे है,
ये नाग नागिन का जोड़ा
देहरी पर बैठे क्रीड़ा में मस्त है,
उस दिन भी तो साक्षी थे
यही सब हमारे मिलन की जुदाई के..!
तुम्हारे आगोश लेते ही
मेरी साँसों ने साथ छोड़ा था तन का,
अस्थियाँ बहा दी तुमने गंगा धार में
पीछे मुड़कर देखा भी होता
एक आस पड़ी थी प्यासी अकुलाती..!
बस वही तो हूँ मैं जिसकी तुम्हें तलाश है
सदियों से देखो कुछ कदमों की दूरी लाँघकर
फासले तय कर लो कहीं इस बार भी ना खो दूँ तुम्हें।।