बुरके में खूबसूरती
बुरके में खूबसूरती
शौक नहीं करतीं बड़े-बड़े लेकिन,
किसी सादगी की मूरत लगती है।
चेहरे की सुंदरता छोड़ो मेरी वाली,
तो नकाब में भी खूबसूरत लगती हैं।
तन तो महफूज है एक बुरके में,
पर सिर्फ नैनो से कायल करती है।
नकाब चढ़ा है चेहरे के ऊपर,
फिर भी लफ्जों से घायल करती है।
निगाहों से गर वो मिला ले निगाहें,
तो समझो कयामत सी आ जाती हैं।
हकीकत में तो बड़े सीधी है ,
पर ख्वाबों में जरा सा सताती है।
उस अदाओं का क्या कहना,
जो एक बार रूबरू हो जाए।
अफसानो से बनकर फिर तो,
चारों तरफ सिर्फ वो नजर आए।
शौक से पहनती है वह बुरखा,
बाकी कपड़ों में वह बात कहां ?
नकाब उठाती है वो सामने जैसे,
हर किसी में ऐसा अंदाज कहां ?
ना रूख से उठाया नकाब अब तक,
हिजाब के परदे में ही मिलती है।
चेहरे की सुंदरता छोड़ो मेरी वाली ,
तो नकाब में भी खूबसूरत लगती हैं।