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Ayushmati Sharma

Abstract

4.9  

Ayushmati Sharma

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ज़िंदगी

ज़िंदगी

1 min
385


होती है कुछ पलों की ये ज़िंदगी,

आज बचपन,

कल जवानी,

परसो बुढ़ापा फिर ख़तम कहानी।


होता है एक जहां ये ज़िंदगी,

जी भरके रोते है तो करार मिलता है,

इस जहां में कहां सबको प्यार मिलता है,

गुज़र जाती हैं ये ज़िंदगी इम्तिहानों के दौर से,

एक ज़ख्म भरता है,

तो वहीं दूसरा तैयार मिलता है।


वैसे तो एक किताब है ये ज़िंदगी,

पर काश,

फाड़ सकते उन पन्नों को जिन्होंने रुलाया है,

जोड़ सकते उन लम्हों को जिन्होंने हसाया है,

हिसाब लगा पाते की कितना खोया है

और कितना पाया है।


होता है बड़ा अजीब ये ज़िंदगी,

कभी हार तो कभी जीत होती है,

मुस्कुराओ तो लोग जलते है,

ख़ामोश रहो तो सवाल करते है।


एक सुहाना सफर है ये ज़िंदगी,

मत पूछो मंज़िल का पता,

आंखों में आंसू और दिल में ख्वाब रख को,

लंबा सफर है ज़िंदगी का जरूरी सामान रख लो।


अरे ! तुम क्या जानोगे क्या होती है ये ज़िंदगी,

अगर जानना है,

तो कभी किसी भिखारी के कटोरे पे फेंके सिक्के गिन लेना,

कभी अपनी मां की त्याग देख लेना,

कभी किसी मजदूर के हांथ के छाले देख लेना।


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