राख नहीं समझो उनको
राख नहीं समझो उनको
राख नहीं समझो उनको जो ख़ाक हुए हैं सरहद पर
जैसे किसी परिंदे ने अपने पर डाला बरगद पर।
देश धर्म के ख़ातिर जिनने प्राणों का बलिदान किया,
मरते दम तक खड़े रहे बन्दूक लिए अपनी जद पर।
तन की ऊँचाई से कुछ भी हासिल नहीं किया जिनने,
जिन्हें रहा विश्वास हमेशा अपने ही नाटे कद पर।
भारत माँ की सेवा ख़ातिर मान किए जो बैठें हैं,
हमको भी हो मान हमेशा उनके इस ऊँचे मद पर।
चाहे कितनी तेज धार हो नौका नहीं बही उनकी,
हाथों में लेकर पतवारें हिम्मत से जाते नद पर।
भारत माँ के वीर सपूतों पर दुश्मन का रौब नहीं,
जोर नहीं चल पाया था जैसे रावण का अंगद पर।
सूरज पश्चिम से निकले या अस्त पूर्व में हो जाए,
आँच नहीं आने देते वे प्राण प्रतिष्ठा औ' पद पर।
हिन्दू मुस्लिम इक दूजे पर भरसक अब विश्वास करें,
अहमद को हो राजू पर औ' राजू को हो अहमद पर ।
एक तिरंगा ही फहरेगा दूजा कोई और नहीं,
कैसे कोई पाँव रखे रहते अपने, अपने हद पर।
आग छुपी होती है हमको राख समझने वाले सुन,
चिंगारी भड़केगी जब पछताएगा अपने मद पर।
सत्य अहिंसा भाईचारे पर है हमको गर्व सदा,
राख नहीं पड़नेे देंगे हम तो अपनी इन आमद पर।