वंसत की छुअन
वंसत की छुअन
अद्भुत प्रेम
प्रेम का मधुर अहसास
मेरे जिस्म के
रोम छिद्र तक महसूस
हो रही थी
जब उसकी
गुदगुदाती अंगुलियों के
स्पर्श से
मेरे नख-शिख तक
झंकृत करने वाली
खुशियों की तार
मेरे विकृत मन की
आवाज को
नया सुर
दे रहा था
मेरी अभिलाषाओं को
हसीं साज दे गयी
वो सहज
शक्ति ही नहीं मेरे लिए एक
आत्मिक शांति था
जो सदियों से
कहीं विलुप्त हो गई थी
जो कभी
तृप्त न हो पाई थी
मेरे भूख को
उसके हाथों का
इक निवाला
उम्र के लिए
भरपाई कर गया
इक सुकून का
चुम्बक मेरे माथे पर
जब किया
तुम नहीं समझोगे
मेरी आँखों से
बहती ,नमी को
इस अद्भुत प्रेम की
जो साक्षी हैं----
वंसत की बेला
आप के स्पर्श से
खिलने लगा मेरा
कोमल सा मन
फुहार प्रेम की छलकने
लगी खिल उठे
मेरा तन और मन।

