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Rahul Shrivastava

Drama Inspirational

1.9  

Rahul Shrivastava

Drama Inspirational

गिलहरी

गिलहरी

1 min
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उँगलियों को पिरो के

एक दूजे की हथेलियों मे

ये जुम्बिश और कुछ

गहरी कर लें |


इस दरख़्त कभी उस दरख़्त

उछलें, कूदें

फिर गिर जायें

मन को आओ गिलहरी कर लें ||


ग़म के किस्से और

आँसू के साये

अन्दर कोई न आने पाये..|


हम तुम बैठे छोटे से

उस कोने मे बस

और गिर्द मुस्कानों की मसहरी कर लें ||


तन्हाई मे राख हो रहा

बंद पड़े उदास कमरे का चन्दन

खोल दें खिड़की

और अंदर आती, शरमाती

वो धूप सुनहरी कर लें ||


शाम है प्यासी जाने कब से

और भूखी सारी रात पड़ी है |

उठो तुम भी

मैं भी जागूँ

और हम - तुम तोड़ निवाला

आओ अब कुछ सहरी कर लें..||


क्यूँ न तुम कुछ किस्से ले आओ

और मैं भी फिर बातों से बात बनाऊँ...|

कुछ तुम जीतो

कुछ मैं हारूँ

मज़े - मज़े में आओ

ये चौपाल कचहरी कर लें ||


अलसाये लिहाफ़ की सिलवटों मे

कुछ तुम डूबो

कुछ मैं डूबूँ |

जान पहचान करें इक दूजे से

और सर्द काँपती इस सुबह को

आओ क्यूँ न गर्म दोपहरी कर लें ||


अपनी उँगलियों को पिरो के

मेरी हथेली मे

ये जुम्बिश और कुछ

गहरी कर लें...!


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