गिलहरी
गिलहरी
उँगलियों को पिरो के
एक दूजे की हथेलियों मे
ये जुम्बिश और कुछ
गहरी कर लें |
इस दरख़्त कभी उस दरख़्त
उछलें, कूदें
फिर गिर जायें
मन को आओ गिलहरी कर लें ||
ग़म के किस्से और
आँसू के साये
अन्दर कोई न आने पाये..|
हम तुम बैठे छोटे से
उस कोने मे बस
और गिर्द मुस्कानों की मसहरी कर लें ||
तन्हाई मे राख हो रहा
बंद पड़े उदास कमरे का चन्दन
खोल दें खिड़की
और अंदर आती, शरमाती
वो धूप सुनहरी कर लें ||
शाम है प्यासी जाने कब से
और भूखी सारी रात पड़ी है |
उठो तुम भी
मैं भी जागूँ
और हम - तुम तोड़ निवाला
आओ अब कुछ सहरी कर लें..||
क्यूँ न तुम कुछ किस्से ले आओ
और मैं भी फिर बातों से बात बनाऊँ...|
कुछ तुम जीतो
कुछ मैं हारूँ
मज़े - मज़े में आओ
ये चौपाल कचहरी कर लें ||
अलसाये लिहाफ़ की सिलवटों मे
कुछ तुम डूबो
कुछ मैं डूबूँ |
जान पहचान करें इक दूजे से
और सर्द काँपती इस सुबह को
आओ क्यूँ न गर्म दोपहरी कर लें ||
अपनी उँगलियों को पिरो के
मेरी हथेली मे
ये जुम्बिश और कुछ
गहरी कर लें...!