बरसो घन
बरसो घन
बरसो घन ज़ोर - ज़ोर
बरसो घन ज़ोर - ज़ोर
हिले धरा हिले गगन
गरजो कर शोर - शोर
बरसो घन ज़ोर - ज़ोर
बरसो घन ज़ोर - ज़ोर
बरसो घन ज़ोर - ज़ोर
बरसो घन ज़ोर - ज़ोर
पक्षियों का होगा गान
धरती में आयें प्रान
जमुना के तट पे कूके
मुरली की तान
डाल -डाल कोयल गाये
नाचे वन मोर- मोर
बरसो घन ज़ोर - ज़ोर
बरसो घन ज़ोर - ज़ोर
पन्ने सब पीत पड़े
बर्तन सब रीत पड़े
घने वटवृक्ष ज्यों लगते हैं ठूँठ खड़े
उपवन के आँ
गन को
भर दो तुम पोर-पोर
बरसो घन ज़ोर - ज़ोर
बरसो घन ज़ोर - ज़ोर
विरह में कलपती है
मिलन को तड़पती है
रात किसी नागिन सी
बार बार डसती है
मिलन का प्रभात गीत
गाओ तुम ज़ोर- ज़ोर
बरसो घन ज़ोर - ज़ोर
बरसो घन ज़ोर - ज़ोर
रंग सब बेरंग हुये
प्रेमी सब मंतग हुये
नीर बहते
पीर सहते
नयन ज्यों त्रिभंग हुये
सतरंगी इन्द्रधनुष सँधान हो
हर ओर - ओर
बरसो घन ज़ोर - ज़ोर
बरसो घन ज़ोर - ज़ोर...!