अंधविश्वास
अंधविश्वास
जब दिल दिमाग पर फितूर हो जाता हावी
और अज्ञानी भर देते अंधविश्वास की चाबी
फिर मानव अपना बुद्धि विवेक खो देता है
खुद ही निज जीवन पथ में कंटक बो देता है
अंधविश्वास का मकड़जाल उसे घेर लेता है
हाड़ मांस चूस वह तुमसे ही मुंह फेर लेता है
गर्त में धकेलती जाती उसकी नई आकांक्षाएं
मन में जन्म लेने लगती हैं अनेकानेक शंकाएं
अंधविश्वास जग के लिए हलाहल से कम नहीं
बुद्धि विवेक सोच विचार ज्ञान सुधा सम नहीं
कभी रंक से राजा बनवाने का दंभ भरवाता है
अंधविश्वास मानव से बड़ा अनर्थ करवाता है
अन्धविश्वास जब हमारे मन में घर कर लेता है
तब यह ज्ञान बुद्धि विवेक सबको हर लेता है
छीन लेता यह जीवन के सुख चैन सभी हमारे
इसके आगे नतमस्तक हो जाते अज्ञानी सारे।
