प्रकृति
प्रकृति
प्राकृतिक सौन्दर्य का विचरड़ करना खुद में ही अद्धभुत महसूस कराता है,
जल गिरता है जब बून्द बनकर बदल से तो भीगता है हर कड,
हवा से हिलता पत्ता भी गिरते हुए पौधे के फूल पर सुंदर लगता है,
मिटी उड़ती हुई हर किसान को पसंद आती है तो गीली होने पर वो महकाती है हर घर।
पर अब कहाँ रहा वो साफ पानी और बहुत सारी हरयाली,
वो गीली मिट्टी और हवा सुहानी।
सब लुप्त हो चुका है इस पानी मे जो जल्द ही बनेगा विशव युद्ध का कारण,
उन फैक्टरियों में जिन्होंने किया जंगलो का अंत,
वो गीली मिटी अब सुखी हो चली है,
और हवा प्रदुषित होने लगी है।
क्योकि भूल जाते है हम की हम भी तो है जो इस प्रकृति की सौन्दर्य को करने लगे है नष्ट,
हमें रुकना होगा और रोकने होंगे यह बड़ते गलत कदम।