गुरु -नाम सुखदाई
गुरु -नाम सुखदाई
भजो रे मन ! गुरु नाम सुखदाई ।
यह माया एक झूठा सपना, क्यों करता सब हो जाए अपना।
पाकर भी सुखी ना होगा ,अंत समय बड़ा दुखदाई।। भजो रे मन......
दुनियाँ तो है एक रैन बसेरा, पता नहीं कल होगा सवेरा।
समय रहते अब भी सँभल जा, फिर पीछे पछताई।। भजो रे मन.....
सकल जगत के रिश्ते- नाते, क्यों इतना तुम इन्हें गले लगाते।
स्वार्थ के सब बन्धन होते, इस कारज गुरु से लौ लगाई।। भजो रे मन....
यह तन है किसी और की अमानत, कर ले अब भी उसकी इबादत।
सफल होगा तभी तेरा जीवन, गुरु-शरण में जो है जाई।। भजो रे मन....
संग्रह करते ही जीवन बीता, चला जाएगा तू बनकर रीता।
परोपकार कर, धन्य जीवन होगा, "नीरज" गुरु ही पार लगाई।। भजो रे मन........