भारत-दर्पण
भारत-दर्पण
संस्कृति और परम्परा,
भारत-दर्पण लिए होती है।
वहाँ है आज भी जीवित,
बड़ी पुरानी विरासत होती है।
बड़े ही सादे-साधारण,
प्रकृति के वे पुजारी होते हैं।
भगवान माने खेतों को,
सब उसके पुजारी होते हैं।
कमर पर घड़ा रख,
पानी भरकर आती औरतें।
खेतों से हल और बैल,
लेकर हैं अन्नदाता लौटते।
कच्चा कुआँ मीठा पानी,
तन-मन तृप्त कर देता है।
ताज़ी सब्जी और अन्न,
शरीर स्वस्थ कर देता है।
अपार आनन्द देता है,
पुआल पर बिछ कर सोना।
आनन्द नहीं दे पाएगा,
मखमल के गद्दों पर सोना।
खेतों में दाना कर पैदा,
अर्थव्यवस्था सुदृढ़ होती है।
शहरी व्यस्तता से दूर,
सौहार्द वातावरण जीते हैं।
गुजरने वाले पलों को,
पूरे उत्साह से समेट लेते हैं।
हर त्यौहार को पूरे,
हर्षोल्लास से मना लेते हैं।
सारे गाँवों का आकर्षण,
अब और भी बढ़ता जाता है।
गाँव में होते बदलाव से,
हृदय क्षुब्ध सा हो जाता है।