तेरी निशानियाँ
तेरी निशानियाँ
मोहक मन के आँगन में
तब आती है बहार,
बरस जाते हो तुम मौसमे-इश्क़ में
जब-जब होके बेकरारI
रह जाता है शृंगार तुम्हारे जाने के बाद भी
गालों पे तो कभी गरदन पर,
कुछ-कुछ नीले निशान-सा
जैसे सावन होते ही गीत कोई गूँजता हैI
मन में बार-बार बैठे लबों की धार पर
रंग छंटता है हथेलियों में,
जैसे हिना का धुल जाने के बाद भी
लरज़े मेरा तन बदन हया के हिजाब सेI
छोड़ जाती है चाह तुम्हारी,
एक संदली महक लिबास मेंI