मेरा मकसद
मेरा मकसद
मेरा मकसद जलना नहीं, जलाना नहीं !
मेरा मकसद तपना और तपाना है।
मेरा मकसद पिघलना और पिघलाना है।
मेरा मकसद ढलना और ढालना है।
अंततः मेरा मकसद स्वंय का निर्माण है;
चूंकि सतत रूप से सृजनरत रहना ही निर्माण है।
यह सारे गुण मैंने लोहे से सीखा,
क्योंकि लोहा जलता नहीं, ना ही जलाता है।
लोहा तपता और तपाता है।
लोहा पिघलता और तब पिलाता है;
अंतत: लोहा ढलता और ढालता है।
और इस प्रकार निर्माण का कार्य
सतत रूप से जारी रहता है।
ठीक उसी प्रकार मैं भी सतत रूप से
स्वयं के निर्माण कार्य में लगा रहता हूं ।
क्योंकि मेरा भी मकसद निर्माण है।
