पवित्र रिश्ता
पवित्र रिश्ता
बयां करना तक मुश्किल होता है बहुत
जब अजनबियों का दिल से दिल मिलता है।
एक झलक तक पाने की बेताबियां छा जातीं हैं
और दोनों का दिल अंदर ही अंदर सुलगता है।
माना अक्सर मिलते होंगे तुम्हें दुनिया में काफी
उसकी कुछ अदाओं को तुम कभी नहीं पाओगे।
जिस तरह सरेआम निगाहें छिपाएं देखती हैं तुम्हें
भला तुम ही बताओ उससे दूर कैसे रह पाओगे।
पता है मुझे सोच रहे हो तुम क्या इस वक्त अभी
यही कि ये रिश्ते हैं जिनका कोई नाम नहीं है।
नामवाले रिश्तों को भी देखा है मैंने दुनिया में
जो मतलब के हैं पर दुख में आते काम नहीं है।
यह दिल गुस्ताख है जो ग़लतियाँ करते करते
ना जाने कैसे कैसे ख़्वाब दिखा जाता है।
एक दूजे के बिना जो जहां रह भी नहीं सकते
वही पल-पल जुदा होने का ख़्वाब डराता है।
इसलिए हाथ पकड़ लो सरेआम तुम भी उसका
इस रिश्ते को भी एक पवित्र नाम देना अच्छा है।
बेनाम बनाकर रखा है जिस नाम को बरसों से
दुनिया की नज़रों में साबित कर देना सच्चा हैं।