स्लेट की चॉक
स्लेट की चॉक
स्लेट की "सफेद बत्ती"
चुपके से खाने वाला प्यार
हुआ था बचपन में बेशुमार
पीठ के पीछे अक़्सर
एक मुट्ठी सी बंधी रहती थी
खाते दिखे गर सफेद चाक
बेलन से मारूँगी,
माँ कहती थी
एक खुफिया अड्डा था
छुपाने के लिये
दोस्त काफी थे,
मार से बचाने के लिए
कुछ सौंधी सी खुश्बू थी
मन को बड़ा ललचाती थी
बहुत छुपाया इधर उधर से
होठ के ऊपर सफ़ेदी लग जाती थी
बत्ती से चाहत भी कमाल थी
बचपना था, जिगरी दोस्त थे,
ओर जिंदगी बेहाल थी।