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Ratna Kaul Bhardwaj

Abstract

5.0  

Ratna Kaul Bhardwaj

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वह माँ ही है

वह माँ ही है

2 mins
334


सींचा अपनी सांसों से

हमारी उभरती साँसों को, 

रखकर गर्भ में महीने नौ

इस दुनिया में लाया जो

वह माँ ही है।


प्रसव की चाहे स्तन की

हर अनुभव को रूप दिया

सब पीड़ा सहकर जिसने

सिर्फ आनंद व्यख्त किया

वह माँ ही है।


आँचल उसका आश्रय है

चाहे तपती धूप या ठंडी हवाएं

जिसके वक्ष स्थल के साये मे 

हम पल पल आगे बढ़ते गए

वह माँ ही है।


आँचल पकड़कर जिसका हमने 

चलना सीखा, सीखा बोलना,

त्यागती रही हमारे सुख की खातिर, 

जो सदा सर्वस्व अपना

वह माँ ही है।


हमारी ख़ुशी से जिसके मुख से

दुवाएं निकलती है अपार,

एक छोटी सी आह पर हमारे

दिल जिसका मचाए हाहाकार,

वह माँ ही है।


झोली उठे  हर मज़ार पर

सुख की कामना करे हर चोखट पर 

विनती करे ईश्वर से बारंबार

कोई विपदा न उनके बच्चों पर

वह माँ ही है। 


जब बहके या लुढ़के हम,

आंचल अपना थमा देती है

एक एक सफलता पर हमारे 

जश्न खूब मनाती है

वह माँ ही है। 


नज़र न लगे किसी की

करती रहती है टोटके हजार

आंख उठाए जो कोई बच्चों पर 

जिसकी मात्र शक्ति में है ललकार

वह माँ ही है। 


झूठे बहाने देकर पापाजी को मनाना

हमारी गलतियों को थोड़ा छुपाना

हमारी कामयाबी पर चौड़ा होना

और खुशी के आंसुओं को रोकना

वह माँ ही है।

 

जिंदगी के सफर में अक्सर 

बंट जाते हैं आजकल परिवार 

विचारों में मतबेद आता है

जो बड़ने नहीं देती दरार

वह माँ ही है।


वक्त और परिसिथितियाँ  

झुकाती है उसे, या थका देती है

सुख दुख का जीवन का सफर

जो बिना शिकायत काट देती है

वह माँ ही है। 


माँ जन्मदायिनी है हमारी

बिन उसके पहचान कहां

धड़कन हमारी जिसकी ऋणी है

हर सांस की जिससे ही थाह 

वह मां ही है


सृष्टि के हर रूप में, कर कोने में " माँ" शब्द 

अमृत पावन है 

जो हर गुनाह मुआफ कर दे, निश्छल प्रेम बरसाए,

वह सिर्फ माँ का मन है। 


जिसकी सूरत में, सीरत में, कोई और न बसता सिर्फ 

खुद भगवन है

कुर्बानियों की मिसाल है,

है सहनशीलता का एक विशाल स्वरुप 

उस माँ को मेरा शत शत नमन है।


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