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Indraj meena

Inspirational Others

1.3  

Indraj meena

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फिर कैसे कहूं मैं ध्वज तले

फिर कैसे कहूं मैं ध्वज तले

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कर्ज में डूबे उस पालक को,

फंदे पर लटकते देखा है।

सांझ ढले उस मजदूर के,

बच्चों को बिलखते देखा है।

फिर कैसे कहूं मैं ध्वज तले,

आजादी को पनपते देखा ह।

,

घर से निकलने को आतुर,

उस नारी को जूझते देखा है।

पहचान बनाने की खातिर,

घर में ही बिखरते देखा है।

फिर कैसे कहूं मैं ध्वज तले

आजादी को पनपते देखा है।


भौतिकता की दौड़ में अब,

परिवारों को टूटते देखा है।

घर के मुखिया को भी अब,

वृद्धाश्रम में सोते देखा है।

फिर कैसे कहूं मैं ध्वज तले,

आजादी को पनपते देखा है।


पद पैसों के मोह में अब,

जमीर को बिकते देखा है।

मंदिर मस्जिद चर्च में अब,

धर्म को मरते देखा है।

फिर कैसे कहूं मैं ध्वज तले,

आजादी को पनपते देखा है।


एक भारत की पहचान को अब,

जातियों में बंटते देखा है।

प्यार प्रेम के बंधन को अब,

फांसी पर लटकते देखा है।

फिर कैसे कहूं मैं ध्वज तले,

आजादी को पनपते देखा है।


आंतक की गोलियों से अब,

मानव को दहशत में देखा है।

घर के भीतर ही दुश्मनों से,

सिंदूर को उजड़ते देखा है।

फिर कैसे कहूं मैं ध्वज तले,

आजादी को पनपते देखा है।


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