यादों की बारिश- पापा
यादों की बारिश- पापा
परत दर परत दब जाती हैं चन्द यादें हृदय की बन्द कोठरी में,
बैठे हों फ़ुर्सत से तो लगती हैं झांकने मचल कर यादों के झरोखे से,
झांक रही हैं पापा की यादें आज उमड़ घुमड़ कर बादलों की भाँति,
बाहर निकल बरस अन्तर्मन को भिगोने को हैं बेक़रार।
है कथा ये स्वतंत्रता पूर्व की जब,
मध्यम वर्गीय परिवार में दे जन्म पापा को निकल पड़ी मां उनकी जीवन के अन्तिम सफ़र पर,
भय से इसके कि मिले न कष्ट विमाता से पुत्र को, चुना पिता ने उनके जीवन अपना एकाकी,
मिला नहीं मार्गदर्शन पिता का परन्तु थे पापा मेधावी और महत्वाकांक्षी,
था जुनून बनने का इंजीनियर जो न था दु:सह स्वप्न से कम राज्य में अंग्रेजों के,
अपनी कड़ी मेहनत लगन एवं ईश्वर व पिता के आशीर्वाद स्वरूप मिला दाख़िला,
थौमसन कॉलेज ऑफ इन्जीनियरिंग रुड़की में, है प्रसिद्ध जो आज आई आई टी रुड़की के नाम से,
हो उत्तीर्ण उच्च श्रेणी में किया गौरवान्वित उन्होंने पिता को अपने,
चुने गये उस समय के सबसे सम्मानित इंजीनियरों की सरकारी नौकरी में।
है घटना ये बहुत पुरानी सुनी हमने अपनी माँ की जुबानी कर गई घर जो हृदय में,
थी मैं छोटी सबसे लाड़ली अपने पापा की, मान लेते सहज ही वह हर बात मेरी,
रहता ध्यान प्रत्येक आवश्यकता का मेरी, हो जातीं जो पूरी चुपके से न जाने कब,
क्रोध देखा ही नहीं करते बस स्निग्ध मुस्कान खिली रहती चेहरे पर कठिनाइयों के मध्य भी,
पहली बार भरा चेहरा अश्रुओं से उनका मेरे विवाह के बाद विदाई पर मेरी,
हो गया था आभास तीन माह पहले ही पापा को शायद अपनी अन्तिम श्वासों के समय का,
चले गये छोड़ हमें बहुत शान्ति से इस दुनिया से लिये वही अपनी स्निग्ध मुस्कान चेहरे पर।
राह थी कठिन, कंटकों से भरी पापा की थे क्योंकि वह विनम्र, ईमानदार, सत्यनिष्ठ व खरे,
प्रभु कृपा से करते रहे पार पापा गुफा अंधेरी मुश्किलों की, हल्के-हल्के ज़ख़्मों से ही बस,
भर गये जो धीमें-धीमें समय के मरहम से करते हुए शिक्षत हम भाई बहनों को,
चुनी राह मैनें भी पापा की, चुनती रही रोडे़ चलती रहीं भुलाते हुए तोहफ़े दर्दों के,
अन्तर्मन को भिगोती हुई पापा की यादों की बारिश कर रही अब भावविह्वल मुझे,
कर रही हूँ बन्द एक बार फिर अपने पापा की यादों को हृदय के भीतर अगली,
यादों की बारिश तक।।