पाप का बोझ उठाती गंगा
पाप का बोझ उठाती गंगा


पाप का बोझ उठाती गंगा।
देह के रोग मिटाती गंगा।।
अस्थियाँ पीर बड़ी देती हैं।
आँख से नीर बहाती गंगा।।
सूखते देख गले लोगों के।
कंठ की प्यास बुझाती गंगा।।
कष्ट आघात लिए आँचल में।
कर्म कर्तव्य निभाती गंगा।।
सैकड़ों मील चली ठोकर खा।
पर नहीं घाव दिखाती गंगा।।
जा रहे अंत समय मिलने को।
प्राण का सार पढ़ाती गंगा।।
नीर में डूब नहाते जन-जन।
मैल में नित्य नहाती गंगा।।
माँ कहें लोग इसे सुन कोविद।
गोद में राख झुलाती गंगा।।