खुद जलना पड़ता है
खुद जलना पड़ता है
कुंदन बनने के लिये जैसे हमको तपना पड़ता है
वैसे रोशनी के लिये पहले खुद जलना पड़ता है
यूँ ही इस दुनिया मे न बन जाता है,कोई दीपक,
दीपक बनने के लिये वर्षों तक जलना पड़ता है
हजारों चरागों में कोई चराग ही सूर्य हो पाता है,
सूर्य के लिये भीतर ज्वालामुखी रखना पड़ता है
कुंदन बनने के लिये जैसे हमको जलना पड़ता है
वैसे ही रोशनी के लिये पहले खुद जलना पड़ता है
संसार मे उसे ही मिलता है,सफलता का हार,
जो बजाता रहता लक्ष्य के लिये,मेहनत गिटार,
ज़माना की मरुभूमि में वो पुष्प जैसा खिलता है,
जो जुनूँ से पर्वतों में भी मांजी जैसे रस्ता करता है
कुंदन बनने के लिये जैसे हमको जलना पड़ता है
वैसे ही रोशनी के लिये पहले खुद जलना पड़ता है
पत्थर क्या?,वो रुई भी भवसागर मे डूब जाती है,
जो घमंड की अपने भीतर रखता बड़ी छाती है
जिंदगी के दरिया में वो ही मोती ढूंढा करता है
जो अपनी पतवार खुद के हाथ रखा करता है
वो शख्स साखी तैरकर भी डूब जाया करता है,
जो पतवार,दूसरों के दिमाग से चलाया करता है
इसलिये खुद को जमाने मे वो ही जिंदा रखता है
जो अपने जमीर को फ़लक जैसा ऊंचा रखता है
वो ही शख्स आईने में खुद को सही देखा करता है,
जो अपने आप को झूठी दुनिया से दूर रखता है।