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Diksha Sharma

Inspirational

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Diksha Sharma

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मजदूर मां

मजदूर मां

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चिलचिलाती धूप में,

कांधे पर बोरी लिए।

गोद में था एक नवजीवन,

उरोज को मुख में लिए।


चार दिन की सौरी उसकी,

पर घर भी न ठहरी।

बच्चे भूखे थे उसके,

थी हालत जैसे भुखमरी।


कामुक नज़रों से बचती,

आंचल को ढकती हुई।

मस्तक के स्वेद को,

हाथों से पोछती हुई।


भूखे पेट रहकर भी,

वो कर्म में लीन है।

समाज के नियमों से दूर

वो खुद ही स्वाधीन है।


वो एक मां है जिसने,

कोई खुशी नहीं चाही।

बच्चों को छांव देकर,

खुद उसने धूप सही।



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