उम्मीद
उम्मीद
अँधेरा और घिर आया,
ये सवेरे का आगाज
या भोर अभी दूर खड़ी
या बादल की छुपन-छुपाई
ये तो कान्हा ही जाने ।
बहुत लंबी हो गई
यह काली घनी रात
दम तोड़ रही सांस
जाने कहाँ गई आस
धीरे-धीरे खत्म हो रही
जीवन की प्यास ।
आँख के आँसू सूख गए
सपनों के पंख टूट गए ।
फिर भी नैन बिछाए बैठे
उम्मीद की सीढ़ी लगाए बैठे ।
कभी किसी गवाक्ष से
रोशनी की किरण इधर आ जाए,
शायद जुगनू ही नजर आ जाए ।
अँधेरों को चीरता उजाला ले आए ।
उम्मीद पर टिका ये जहान
जाने कब रोशन हो जाए ।
'डूबते को तिनके का सहारा '
जाने कब ये सच हो जाए ।
कब वो हाथ थाम
दुनिया का ताज पहना जाए ।
कब नसीब का द्वार खुल जाए
और कुबेर खजाने की चाबी दे जाए।
कब विष्णुवल्लभा- हंसवाहिनी जी
अपने-अपने वाहनों पर पधार जाए
और अपनी अनुकंपा बरसा जाए।
इसलिए अँधेरों में ध्यान रखना
कहीं उम्मीद का हाथ न छूट जाए।