मोक्ष् कामी
मोक्ष् कामी
पितृपक्ष के पावन अवसर पर,
सतत् कर्मकाण्डी गंगा तट पर,,
धर्मपरायण उनके धरोहर आते हैं।
अतृप्त आत्मा को तृप्त कराकर,
इहलोक से उनको मुक्ति दिलाने,,
सुनहरे सपने बुनने आते हैं।
पिंडदान, तर्पणादि कर,
दान-पुण्य,ब्राम्ह्णादि भोजन कराकर,,
निश्चंत हो वापस घर जाते हैं।
फिर उन स्मृतियों पर धूल देकर,
अपनी आजीविका का मूल लेकर,,
विशुद्ध अमानवीय कृत्यों में रम जाते हैं।
कोई कुकर्म इनसे नहीं बचता,
झूठ-फरेब पर इनकी सत्ता,,
कहो कैसे पूर्वज इनके खुश हो पाते हैं।
पितर ऐसे खुश नहीं होते,
ना ही इस तरह मोक्ष हैं मिलते।
सुकर्म में आजीवन तपना पड़ता है,
अपना पुण्य उन्हें देना पड़ता है
जब उनको तृृृृृप्ति है मिलती,
तब उनको मुक्ति है मिलती।
तब वो सम्पूर्ण संतुष्ट हो पाते हैं,
फिर वो निश्चिंत हो सुरधाम को जाते हैं।